Devshayani Ekadashi 2024: इस दिन है देवशयनी एकादशी, 148 दिन तक योग निद्रा में रहेंगे भगवान विष्णु, महादेव संभालेंगे कार्यभार, पढ़ें पूजा विधि व व्रत कथा

95

Devshayani Ekadashi 2024: हिंद धर्म में एकादशी का विशेष महत्व माना जाता है. यह तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है. इस दिन पूरे विधि-विधान से नारायण की पूजा करने का विधान है. वर्ष में 24 एकादशी पड़ती हैं, एक कृष्ण पक्ष और दूसरी शुक्ल पक्ष को. आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु 4 महीने की योग निद्रा के लिए चले जाते हैं इस दौरान श्रृष्टि का सारा कामकाज भगवान शंकर देखते हैं. वहीं श्री हरि विष्णु कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निद्रा से जागते हैं उसे देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है.

देवशयनी एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त Devshayani Ekadashi Date and Shubh Muhurat)

एकादशी तिथि 16 जुलाई को शाम 8 बजकर 33 मिनट पर शुरू होगी और 17 जुलाई को रात्रि 9 बजकर 2 मिनट पर रहेगी. इस बार देवशयनी एकादशी का व्रत 17 जुलाई बुधवार का रखा जाएगा.

देवशयनी एकादशी व्रत और पूजा विधि (Devshayani Ekadashi Puja Vidhi)

1. व्रत के दिन सुबह स्नान के बाद देवशयनी एकादशी व्रत और पूजा का संकल्प करें. इसके लिए आप हाथ में जल, अक्षत् और फूल लेकर संकल्प करें.

2. प्रात: से ही रवि योग है. ऐसे में आप प्रात: स्नान के बाद देवशयनी एकादशी व्रत की पूजा कर सकते हैं. इसके लिए भगवान विष्णु की शयन मुद्रा वाली तस्वीर या मूर्ति की स्थापना करें क्योंकि यह उनके शयन की एकादशी है.

3. अब आप भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें. भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, फल, चंदन, अक्षत्, पान का पत्ता, सुपारी, तुलसी के पत्ते, पंचामृत आदि अर्पित करें. इस दौरान ओम भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का उच्चारण करते रहें.

4. फिर माता लक्ष्मी की विधिपूर्वक पूजा करें. उसके पश्चात विष्णु चालीसा, विष्णु सहस्रनाम और देवशयनी एकादशी व्रत कथा का पाठ करें. पूजा का समापन भगवान विष्णु की आरती से करें.

5. ​दिनभर फलाहार पर रहें. भगवत वंदना और भजन-कीर्तन में समय व्यतीत करें. संध्या आरती के बाद रात्रि जागरण करें.

6. अगली सुबह स्नान के बाद पूजन करें. किसी ब्राह्मण को अन्न, वस्त्र और दक्षिण देकर संतुष्ट करें.

7. इसे पश्चात पारण समय में पारण करके व्रत को पूरा करें. इस प्रकार से देवशयनी एकादशी को करना चाहिए.

देवशयनी एकादशी व्रत कथा (Devshayani Ekadashi Vrat Katha)

एक बार युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण जी से आषाढ़ शुक्ल एकादशी व्रत के महत्व को बताने को कहा. तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि इसे देवशयनी एकादशी के नाम से जानते हैं. एक बार नारद मुनि ने ब्रह्मा जी से आषाढ़ शुक्ल एकादशी के महत्व और विधि के बारे में पूछा था. वह कथा तुम्हें बताते हैं.

नारद जी के पूछने पर ब्रह्मा जी ने कहा कि नारद, तुमने मनुष्यों के उद्धार के लिए अच्छा प्रश्न किया है. इस व्रत को पद्मा एकादशी भी कहते हैं. इस व्रत को करने से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं. इसकी कथा इस प्रकार से है—

सूर्यवंश में एक महान प्रतापी राजा मांधाता हुए, जो एक चक्रवती राजा थे. वह अपनी प्रजा का पूरा देखभाल करते थे. उनका राज्य धन धान्य से परिपूर्ण था. उनके राज्य में कभी अकाल नहीं पड़ा था. एक समय की बात है. लगातार तीन साल तक बारिश नहीं हुई और अकाल पड़ गया. अकाल के कारण उनकी प्रजा काफी कष्ट में रह रही थी, वे सभी दुखी थे. अन्न और धान्य की कमी के कारण यज्ञ जैसे धार्मिक कार्य भी बंद हो गए.

प्रजा परेशान होकर राजा के दरबार में पहुंची और कहा कि हे राजन! इस अकाल से चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है. बारिश के अभाव में अकाल पड़ गई है. इस वजह से मनुष्य भी मर रहे हैं. इसका कुछ उपाय खोजना होगा. राजा ने कहा कि ठीक है. वे एक दिन अपने कुछ सैनिकों के साथ जंगल में गए और अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचे और ऋषि को प्रणाम किया. ऋषि ने आने का कारण पूछा, तो राजा ने सबकुछ बताया.

तब अंगिरा ऋषि ने राजा मांधाता को आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत करने को कहा. इसे व्रत को करने से सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं. तुम अपने सभी मंत्रियों और प्रजा के साथ इस व्रत को करो. समस्या का समाधान हो जाएगा. ऋषि अंगीरा के सुझाव के अनुसार ही राजा मांधाता ने पूरी प्रजा के साथ देवशयनी एकादशी का व्रत विधिपूर्वक किया. उस व्रत के प्रभाव से वर्षा हुई. अकाल से मुक्ति मिली और फिर से राज्य धन-धान्य से संपन्न हो गया. देवशयनी एकादशी व्रत के कथा को सुनने से समस्त पापों का नाश होता है. इस व्रत को करने से मोक्ष की भी प्राप्ति होती है.