पश्चिम रेलवे के यात्री एक बार फिर से अपने रोजाना के सफर को सहज बनाने के लिए टाइम टेबल रिशफलिंग (फेर-बदल) का इंतजार कर रहे हैं। आखिरी बार अक्टूबर २०२२ में टाइम टेबल में बदलाव किया गया था, जबकि रेलवे की परंपरा के मुताबिक़, हर साल अगस्त में इसका रिशफलिंग होना चाहिए। हालांकि, कोविड-१९ के कारण २०१८ के बाद से यह नियम टूट चुका है और तब से यात्रियों को लंबे इंतजार का सामना करना पड़ रहा है। स्लो ट्रैक पर सफर करने वाले यात्रियों को सबसे अधिक परेशानी हो रही है।

इन यात्रियों का कहना है कि पीक आवर्स के दौरान उन्हें फास्ट ट्रेनों और एसी स्पेशल ट्रेनों के चलते कई बार लंबा इंतजार करना पड़ता है। लेडीज स्पेशल ट्रेनों की टाइमिंग भी स्लो ट्रैक की ट्रेनों पर प्रभाव डालती है। ३५ वर्षीय सीमा पाटील, जो रोजाना वसई से चर्चगेट तक स्लो ट्रेन से यात्रा करती हैं, वे कहती हैं कि एसी और फास्ट ट्रेन की वजह से हमें अपनी स्लो ट्रेन के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। वहीं रेलवे अधिकारियों का कहना है कि रिशफलिंग एक नियमित प्रक्रिया है, यह यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए की जाती है। रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हम यात्रियों की समस्याओं से वाकिफ हैं, और जल्द ही टाइम टेबल में सुधार किया जाएगा। वहीं दूसरी ओर कुछ यात्री ऐसे भी हैं जो मानते हैं कि हर साल रिशफलिंग होने से ट्रेनों के संचालन में बाधा हो सकती है। रोजाना विरार से चर्चगेट आने वाले राकेश शाह कहते हैं कि हर साल टाइम टेबल बदलने से हमारे रूटीन पर भी असर पड़ता है। हमें न सिर्फ नई टाइमिंग्स से एडजस्ट करना पड़ता है, बल्कि कई बार प्लानिंग में भी दिक्कत होती है।

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