तड़प-तड़पकर मर गया फिर भी इस हिंदू राजा ने नहीं कबूला इस्लाम, मुगलिया सल्तनत को याद दिला दी नानी

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नई दिल्ली: आज 11 मार्च 2025, हिंदवी स्वराज्य के वीर योद्धा छत्रपति संभाजी महाराज की पुण्यतिथि पर पूरा देश उन्हें नमन कर रहा है। मराठा साम्राज्य के दूसरे छत्रपति के रूप में उन्होंने न केवल अपने पिता छत्रपति शिवाजी महाराज की विरासत को आगे बढ़ाया, बल्कि अपने साहस और बलिदान से इतिहास में अमर हो गए। संभाजी महाराज को प्यार से “छावा” कहा जाता है, जिसका अर्थ है शेर का बच्चा।

संघर्ष और स्वराज्य की रक्षा
संभाजी महाराज का जन्म 14 मई 1657 को पुरंदर किले में हुआ था। वे शिवाजी महाराज और सईबाई के पुत्र थे। छोटी उम्र में ही उनकी माता का निधन हो गया, जिसके बाद राजमाता जिजाबाई ने उन्हें संस्कार और नेतृत्व की शिक्षा दी। बचपन से ही उन्होंने शस्त्र और शास्त्र दोनों में महारत हासिल की। उन्हें संस्कृत, मराठी और कई अन्य भाषाओं का भी ज्ञान था. इसके ही साथ उन्होंने ‘बुधभूषण’, ‘नायिकाभेद’ जैसे ग्रंथों की रचना भी की।

1681 में जब शिवाजी महाराज का निधन हुआ, तब संभाजी ने सत्ता संभाली। उनके शासनकाल में उन्होंने 100 से अधिक युद्ध लड़े और एक भी नहीं हारे। उन्होंने न केवल मुगलों को करारी शिकस्त दी, बल्कि गोवा में पुर्तगालियों और दक्षिण में अंग्रेजों को भी चुनौती दी। उनकी युद्धनीति और वीरता ने शत्रुओं में खौफ भर दिया था।

बलिदान जिसने इतिहास बदल दिया
संभाजी महाराज का अंत विश्वासघात के कारण हुआ। 1689 में उनके ही एक रिश्तेदार ने उन्हें मुगलों के हाथों पकड़वा दिया। औरंगजेब ने उन्हें इस्लाम कबूल करने का प्रस्ताव दिया, जिसे उन्होंने दृढ़ता से ठुकरा दिया। इसके बाद उन्हें 40 दिनों तक क्रूरतम यातनाएं दी गईं. इस दौरान उनकी आंखें निकाली गईं, नाखून उखाड़े गए, चमड़ी उधेड़ी गई लेकिन उनके मुंह से केवल “हर हर महादेव” और “जय भवानी” के नारे गूंजते रहे। 11 मार्च 1689 को उनकी हत्या कर दी गई और उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर भीमा नदी में फेंक दिए गए।

संभाजी महाराज के बलिदान ने मराठा साम्राज्य को और मजबूत कर दिया। औरंगजेब का सपना था कि मराठा शक्ति को समाप्त कर दिया जाए, लेकिन संभाजी की शहादत ने मुगल साम्राज्य के पतन की नींव रख दी। उनकी वीरता आज भी हर भारतीय के लिए प्रेरणा है।