डेयरी ने जुलाई 2025 से राधनपुर में अपने दूध चिलिंग सेंटर पर एक पायलट प्लांट शुरू किया है, जहां गोमूत्र को प्रोसेस करके ‘भूमि अमृत’ नाम से दो उत्पाद बनाए जा रहे हैं।
भारत की सबसे बड़ी डेयरी संस्था बनास डेयरी ने अब ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में एक और अनोखी पहल शुरू की है। दूध और गोबर खरीदने के बाद, अब डेयरी किसानों से गोमूत्र (cow urine) भी ₹5 प्रति लीटर की दर से खरीद रही है।
पायलट प्रोजेक्ट से किसानों को सीधा फायदा
बनास डेयरी ने यह पायलट प्रोजेक्ट कच्छी कांकराज नस्ल की देसी गायों वाले किसानों से शुरू किया है। फिलहाल 150 पशुपालक इससे जुड़े हैं। किसानों का कहना है कि पहले तक गोमूत्र का कोई व्यावसायिक उपयोग नहीं था, लेकिन अब इससे उन्हें हर दिन ₹50-60 की अतिरिक्त आय होने लगी है, जो दूध बेचने से होने वाली आमदनी (₹100-150 प्रतिदिन) के साथ मिलकर पशुपालन को आत्मनिर्भर बना रही है।
गोमूत्र से बने जैविक उत्पाद
डेयरी ने जुलाई 2025 से राधनपुर में अपने दूध चिलिंग सेंटर पर एक पायलट प्लांट शुरू किया है, जहां गोमूत्र को प्रोसेस करके ‘भूमि अमृत’ नाम से दो उत्पाद बनाए जा रहे हैं —
जैविक ग्रोथ प्रमोटर : अमोनिया-समृद्ध गोमूत्र और समुद्री शैवाल से बना बायो-स्टिमुलेंट, जो फसलों की वृद्धि तेज करता है।
मृदा सुधारक : गोमूत्र और समुद्री शैवाल के मिश्रण से तैयार, जो बंजर या थकी हुई जमीन को फिर से उपजाऊ बनाता है।
दोनों उत्पाद एक-लीटर पैकिंग में उपलब्ध हैं और किसानों के बीच लोकप्रिय हो रहे हैं।
सर्कुलर इकॉनमी का मॉडल
बनास डेयरी के चेयरमैन शंकर चौधरी ने कहा, “दूध, गोबर और गोमूत्र से एक चक्र बनता है। गोबर और गोमूत्र मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं, जिससे घास और चारा उगता है, जिसे गाय खाती है और फिर दूध व उप-उत्पाद देती है। यही असली सर्कुलर इकॉनमी है।” उन्होंने यह भी बताया कि गोबर और गोमूत्र को मूल्यवान बनाने का विचार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘गौ-धन’ की परिकल्पना से प्रेरित है।
डेयरी का विस्तार और नई योजनाएं
बनास डेयरी ने 2024-25 में 100 लाख लीटर प्रतिदिन दूध संग्रह का रिकॉर्ड बनाया।
गोबर पर पहले से ₹1 प्रति किलो की दर से खरीद जारी है।
बनास ने NDDB और सुजुकी मोटर कॉर्पोरेशन की भारतीय इकाई SRDI के साथ करार किया है, जिसके तहत गुजरात में चार नए गौबर-आधारित CBG प्लांट बनाए जा रहे हैं।
यह प्रोजेक्ट सफल होता है तो जल्द ही उत्तर गुजरात के किसानों के लिए करोड़ों रुपये की नई ग्रामीण अर्थव्यवस्था तैयार हो सकती है।