हाल के वर्षों में हृदय रोग और अचानक हार्ट अटैक के मामलों में तेज़ी से वृद्धि देखी जा रही है. युवा वर्ग से लेकर मध्यम आयु तक, हर उम्र के लोग इस जोखिम के घेरे में आ रहे हैं. चिकित्सा विज्ञान जहाँ इसे जीवनशैली, तनाव, खानपान और अनुवांशिक कारणों से जोड़ता है, वहीं भारतीय ज्योतिष भी इसकी अपनी दृष्टि प्रस्तुत करता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, व्यक्ति की कुंडली में कुछ विशेष योग या ग्रहों की स्थितियाँ हृदय रोग की संभावना को बढ़ा सकती हैं.
ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि हृदय का संबंध चतुर्थ भाव और सूर्य से सबसे गहरा माना जाता है. चतुर्थ भाव जीवन में स्थिरता, मानसिक शांति और शारीरिक सुख का सूचक है, जबकि सूर्य शरीर की ऊर्जा, रक्त संचार और हृदय का प्रतीक ग्रह है. जब इन दोनों में कोई ग्रहदोष उत्पन्न होता है, तो व्यक्ति को हृदय संबंधी परेशानियाँ होने की आशंका बढ़ जाती है.
ज्योतिष विद्या के अनुसार, यदि कुंडली के चतुर्थ भाव पर क्रूर या पाप ग्रहों—जैसे शनि, मंगल या राहु—की दृष्टि या युति हो, तो हृदय की कार्यप्रणाली प्रभावित हो सकती है. ऐसे जातक प्रायः मानसिक तनाव, रक्तचाप की असंतुलनता या अचानक हार्ट अटैक के शिकार हो सकते हैं. विशेष रूप से जब चतुर्थ भाव का स्वामी भी किसी अशुभ प्रभाव में आ जाए, तो यह स्थिति और गंभीर मानी जाती है.
इसके अतिरिक्त, सूर्य का पीड़ित होना भी हृदय रोग का प्रमुख संकेत माना गया है. सूर्य जब शनि या राहु के प्रभाव में आ जाता है, तो व्यक्ति की शारीरिक ऊर्जा कमज़ोर होने लगती है और रक्त संचार प्रभावित होता है. यदि सूर्य नीच राशि तुला में स्थित हो या जल तत्व की राशियों—कर्क, वृश्चिक या मीन—में हो, तो यह स्थिति हृदय के लिए और अधिक संवेदनशील मानी जाती है. सूर्य का अष्टम (8वें) या द्वादश (12वें) भाव में होना भी दुर्बलता का प्रतीक है, जो हृदय रोग की संभावना को बढ़ाता है.
चंद्रमा को मन और भावनाओं का कारक ग्रह माना जाता है, लेकिन जब यह ग्रह पाप ग्रहों—शनि, राहु या केतु—के साथ स्थित हो, या नीच राशि वृश्चिक में हो, तो व्यक्ति भावनात्मक रूप से अस्थिर और मानसिक रूप से तनावग्रस्त रहता है. यह तनाव धीरे-धीरे हृदय पर प्रभाव डाल सकता है. चंद्रमा और सूर्य दोनों के एक साथ पीड़ित होने पर व्यक्ति में हृदय रोग की संभावनाएँ कई गुना बढ़ जाती हैं.
कुछ ज्योतिषीय संयोजन अचानक हार्ट अटैक जैसी घटनाओं से भी जुड़े माने जाते हैं. उदाहरण के लिए, राहु का सिंह राशि में स्थित होना—जो कि सूर्य की राशि है—हृदय में अचानक और अप्रत्याशित तकलीफ का संकेत दे सकता है. इसी प्रकार, यदि राहु लग्न में स्थित हो तो व्यक्ति को जीवन में अचानक स्वास्थ्य संकटों का सामना करना पड़ सकता है.
इसी तरह मंगल का अष्टम या द्वादश भाव में होना भी हृदय से जुड़ी अचानक होने वाली घटनाओं, जैसे हार्ट अटैक या रक्तचाप की तीव्र वृद्धि, का संकेत देता है. मंगल अग्नि तत्व का ग्रह है, और जब यह अशुभ भावों में आता है, तो यह शरीर में अधिक गर्मी और बेचैनी उत्पन्न करता है, जिससे हृदय पर दबाव बढ़ सकता है.
कुछ ज्योतिषाचार्य इस बात पर भी सहमति जताते हैं कि शनि, गुरु और सूर्य का चतुर्थ भाव में एक साथ होना भी एक प्रकार का असंतुलन पैदा करता है. शनि जहाँ मंदता और रुकावट का प्रतीक है, वहीं गुरु विस्तार का. इन दोनों के बीच सूर्य की स्थिति हृदय पर दबाव बढ़ा सकती है. यह संयोजन विशेष रूप से तब अधिक प्रभावी होता है जब चतुर्थ भाव का स्वामी भी अशुभ दशा में हो.
ज्योतिष शास्त्र में यह भी कहा गया है कि दशा और गोचर (planetary transit) की स्थिति हृदय रोग के समय को प्रभावित कर सकती है. उदाहरण के लिए, जब सूर्य की महादशा या अंतर्दशा के दौरान राहु या शनि की प्रभावशाली दशा चल रही हो, तो व्यक्ति को अचानक हृदय संबंधी परेशानी हो सकती है.
वर्तमान में चिकित्सा विज्ञान के साथ-साथ वैदिक ज्योतिष का भी यह मानना है कि तनाव, अनुशासनहीन दिनचर्या, जंक फूड का सेवन और नींद की कमी हृदय के लिए नुकसानदेह हैं. ज्योतिषीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो ग्रहों का प्रभाव इन आदतों को और प्रबल बना देता है, जिससे व्यक्ति के भीतर असंतुलन बढ़ता है.
इस विषय पर ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद मिश्रा का कहना है, “हृदय रोग केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक और ऊर्जात्मक असंतुलन का परिणाम भी होता है. जब सूर्य और चंद्रमा दोनों कमजोर हों, तो व्यक्ति आत्मविश्वास खो देता है, तनाव बढ़ता है और वही तनाव शरीर के हृदय पर दबाव डालता है.”
हालाँकि विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि ज्योतिषीय योग संभावनाएँ मात्र दिखाते हैं, वे निश्चित परिणाम नहीं होते. यदि व्यक्ति अपनी जीवनशैली को संतुलित रखे—समुचित आहार, नियमित व्यायाम और सकारात्मक सोच अपनाए—तो ग्रहों के अशुभ प्रभाव को भी काफी हद तक कम किया जा सकता है.
कई विद्वान ज्योतिष में उपायों की भी सलाह देते हैं, जैसे—सूर्य की आराधना, आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ, जल में तांबे के पात्र से अर्घ्य देना और नियमित ध्यान या प्राणायाम करना. इन उपायों से व्यक्ति की आंतरिक ऊर्जा और हृदय की स्थिरता दोनों में सुधार होता है.
ज्योतिषीय दृष्टि से देखें तो आज के समय में राहु, शनि और मंगल जैसे ग्रहों की स्थिति विश्व स्तर पर भी मानसिक और शारीरिक तनाव बढ़ाने वाली मानी जा रही है. इसलिए जो लोग हृदय रोग के प्रति संवेदनशील हैं, उन्हें सावधानी बरतनी चाहिए.
आख़िर में विशेषज्ञ यही कहते हैं कि ज्योतिष का उद्देश्य भय पैदा करना नहीं, बल्कि चेतावनी देना है. कुंडली में यदि ऐसे योग दिखाई दें, तो यह संकेत है कि व्यक्ति को अपने जीवन में अधिक अनुशासन, संयम और आत्म-देखभाल की आवश्यकता है.
क्योंकि चाहे विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए या ज्योतिष की—हृदय वही स्वस्थ रहता है, जो शांत, सन्तुलित और प्रेमपूर्ण रहता है.

































