(हिन्दी अर्थ सहित सम्पूर्ण)
*देशकालौ ततः स्मृत्वा गणेशं तत्र पूजयेत्।*
*पुण्याहं वाचयित्वाऽथ नान्दीश्राद्धं समाचरेत्।।१।।*
अर्थ-
उचित देश और काल का स्मरण करके सबसे पहले गणेशजी की पूजा करें। इसके बाद “पुण्याह वाचन” (शुभता की घोषणा) और नान्दी श्राद्ध (पूर्वजों का तर्पण) करें।
*वेदवाद्यादिनिर्घोषैः विष्णुमूर्तिं समानयेत्।*
*तुलस्या निकटे सा तु स्थाप्या चान्तर्हिता घटैः।।२।।*
अर्थ-
वेदी पर वेदघोष, शंख, मृदंग आदि के मंगल नाद के साथ विष्णु मूर्ति को लाएँ। तुलसी देवी के निकट मूर्ति को स्थापित करें, बीच में घड़े आदि प्रतीक रूप में रखें।
*आगच्छ भगवन् देव अर्हयिष्यामि केशव।*
*तुभ्यं ददामि तुलसीं सर्वकामप्रदो भव।।३।।*
अर्थ-
हे भगवन् केशव! कृपा करके यहाँ पधारिए। मैं आपको तुलसी देवी को अर्पण करता हूँ- आप सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाले हों।
*दद्याद् द्विवारमर्घ्यं च पाद्यं विष्टरमेव च।*
*ततश्चाचमनीयं च त्रिरुक्त्वा च प्रदापयेत्।।४।।*
अर्थ-
दो बार अर्घ्य, पाद्य (पाँव धोने का जल), आसन, और तीन बार आचमनी जल अर्पित करें।
*पयो दधि घृतं क्षौद्रं कांस्यपात्रपुटे घृतम्।*
*मधुपर्कं गृहाण त्वं वासुदव नमोऽस्तु ते।।५।।*
अर्थ-
दूध, दही, घी, शहद और घृत से युक्त मधुपर्क (मधुर मिश्रण) अर्पित करें- “हे वासुदेव! नमस्कार, इसे स्वीकार करें।”
*ततो ये स्वकुलाचाराः कर्तव्या विष्णुतुष्टये।*
*हरिद्रालेपनाभ्यङ्गः कार्यः सर्वं विधाय च।।६।।*
अर्थ-
इसके बाद अपने कुलाचार (परिवार के रीति) के अनुसार विष्णु की प्रसन्नता हेतु सभी कर्म करें- जैसे हल्दी का लेप और अभ्यंग (स्नानादि)।
*गोधूलि समये पूज्यौ तुलसीकेशवौ पुनः।*
*पृथक्पृथक्ततः कार्यौ सम्मुखं मङ्गलं पठेत्।।७।।*
अर्थ-
गोधूलि बेला (साँझ) में तुलसी और केशव दोनों की पुनः पूजा करें। उन्हें आमने-सामने रखकर मंगल गीत (विवाह गीत) गाएँ।
*इष्टदेशे भास्वरे तु सङ्कल्पं तु समर्पयेत्।*
*स्वगोत्रप्रवरानुक्त्चा तथा त्रिपुरुषादिकम्।।८।।*
अर्थ-
विवाह स्थान को प्रकाशित कर, वहाँ संकल्प लें- अपना गोत्र, प्रवर, और तीन पीढ़ियों के नाम स्मरण कर संकल्प करें।
*अनादिमध्यनिधन त्रैलोक्यप्रतिपालक।*
*इमां गृहाण तुलसीं विवाहविधिनेश्वर।।९।।*
अर्थ-
हे अनादि, अनन्त, त्रिलोक के पालनकर्ता प्रभो! विवाह विधि के अनुसार आप इस तुलसी देवी को स्वीकार करें।
*पार्वती बीजसम्भूतां वृन्दाभस्मनि संस्थिताम्।*
*अनादिमध्यनिधनां वल्लभां ते ददाम्यहम्।।१०।।*
अर्थ-
हे प्रभो! यह तुलसी देवी पार्वती के बीज से उत्पन्न हैं, वृन्दा देवी के भस्म पर स्थित हैं, अनादि- अनन्त और आपकी प्रिय हैं- मैं इन्हें आपको समर्पित करता हूँ।
जो व्यक्ति प्रतिवर्ष इस तुलसी विवाह का आयोजन करता है, वह सभी कार्यों में सिद्धि प्राप्त करता है और परम शुभ फल पाता है।
आध्यात्मिक फल-
*इह लोके परत्रापि विपुलं सद्यशो भवेत्।*
*प्रतिवर्षं तु यः कुर्यात् तुलसीकरपीडनम्।*
*भक्तिमान् धनधान्यैश्च युक्तो भवति निश्चितम्।।३०।।*
अर्थ-
जो भक्त हर वर्ष तुलसी- विष्णु विवाह करता है, वह इस लोक और परलोक दोनों में यश, भक्ति, धन और समृद्धि प्राप्त करता है। वह निश्चय ही भगवद्प्रसाद का पात्र बनता है।
समापन-
*इति सनत्कुमारसंहितान्तर्गतम् वृन्दावनद्वादशीव्रतम् सम्पूर्णम्।*
अर्थ-
इस प्रकार सनत्कुमार संहिता में वर्णित वृन्दावन द्वादशी व्रत (तुलसी- विष्णु विवाह विधि) पूर्ण होती है।
सारांश-
तुलसी–विष्णु विवाह कार्तिक शुक्ल एकादशी- द्वादशी के संयोग में किया जाता है। यह विवाह स्वयं वृन्दा देवी (तुलसी) और श्रीविष्णु (शालिग्राम) के मिलन का प्रतीक है।
जो भक्त इस विवाह को श्रद्धा से करता है- वह अपने घर में लक्ष्मी-नारायण की अनन्त कृपा प्राप्त करता है, और पापों से मुक्त होकर वैकुण्ठ लोक का अधिकारी बनता है।
*इमां गृहाण तुलसीं विवाहविधिनेश्वर।”*
।। कार्तिक शुक्ल द्वादशी तुलसी विवाह पूजा ।।
*_प्रारंभिक संकल्प एवं ध्यान*-
*कार्तिके शुक्लद्वादश्यां वृन्दावने* *महाविष्णुं तुलसीं च पूजयेत्।*
*तुलसी समीपे महाविष्णु प्रतिमा निधाय, विघ्नेशं सम्पूज्य !*
अर्थ-
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष द्वादशी को तुलसी और भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। तुलसी के समीप विष्णु की प्रतिमा स्थापित कर, पहले गणेश जी की पूजा करें ताकि सभी विघ्न दूर हों।
*शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।*
*प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये।।*
अर्थ-
श्वेत वस्त्रधारी, चतुर्भुज, चन्द्र के समान श्वेतवर्ण, प्रसन्न मुख विष्णु का ध्यान करो- जो सभी विघ्नों का नाश करते हैं।
संकल्प-
श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं शुभे … तिथौ तुलसी महाविष्णु प्रसादसिद्ध्यर्थं तुलसी महाविष्णुपूजां करिष्ये।
अर्थ-
परमेश्वर श्री हरि की प्रसन्नता और तुलसी-विष्णु विवाह से प्राप्त पुण्य और कृपा के लिए मैं तुलसी और भगवान महाविष्णु की पूजा करूँगा।
ध्यान-
तुलसी ध्यानम्-
ध्यायामि तुलसीं देवीं श्यामां कमललोचनाम्।
प्रसन्नवदनाम्भोजां वरदामभयप्रदाम्।।
अर्थ-
मैं देवी तुलसी का ध्यान करता हूँ- जिनका वर्ण श्यामल है, नेत्र कमल समान, मुख प्रसन्न है, जो वर और अभय प्रदान करने वाली हैं।
विष्णु ध्यानम्-
ध्यायामि विष्णुं वरदं तुलसीप्रियवल्लभम्।
पीताम्बरं पद्मनेत्रं वासुदेवं वरप्रदम्।।
अर्थ-
मैं भगवान विष्णु का ध्यान करता हूँ- जो तुलसी के प्रिय हैं, पीताम्बर धारण करते हैं, कमल के समान नेत्र वाले हैं, और वर देने में आनंदित रहते हैं।
आवाहन एवं आसन-
आगच्छागच्छ देवेश तेजोराशे जगत्पते।
क्रियमाणां मया पूजां वासुदेव गृद्दाण भोः।।
अर्थ-
हे देवेश, हे जगत्पति वासुदेव! कृपया मेरे द्वारा की जा रही इस पूजा को स्वीकार करें और सन्निहित हों।
नानारत्नसमायुक्तं… आसनं कृपया विष्णो तुलसि प्रतिगृह्यताम्।
अर्थ-
हे विष्णु और तुलसी! रत्नों से जड़े इस आसन को कृपया स्वीकार करें। आप दोनों को नमस्कार कर आसन समर्पित करता हूँ।
पाद्य, अर्घ्य, आचमन-
गङ्गादिसर्वतीर्थेभ्यो… पाद्यार्थं प्रतिगृह्यताम्।
अर्थ-
गंगा आदि पवित्र नदियों से लाया गया यह जल आपके चरणों को धोने के लिए है- इसे स्वीकार करें।
अर्घ्यं गृहाण देवि त्वं… अक्षय्यफलदायिनि।
अर्थ-
हे देवी तुलसी! यह अर्घ्य (स्वागत जल) अक्षत आदि से युक्त है, कृपया इसे स्वीकार करें- यह अक्षय पुण्य देने वाला है।
कर्पूरवासितं तोयं… आचम्यतां जगन्नाथ।
अर्थ-
हे जगन्नाथ! कपूर से सुगंधित यह आचमन जल भक्तिपूर्वक स्वीकार करें।
मधुपर्क, पञ्चामृत, स्नान, वस्त्र-
मधुपर्कं गृहाणेदं मधुसूदनवल्लभे।
अर्थ-
हे मधुसूदन की प्रिया तुलसी! मधु, दधि, घृत से बना यह मधुपर्क स्वीकार करें।
पञ्चामृतं गृहाणेदं… दामोदरकुटुम्बिनि।
अर्थ-
हे तुलसी! यह दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से बना पञ्चामृत है- इसे स्वीकार करें।
स्नानं-
गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती आदि नदियों से लाया गया यह स्नान जल आपको समर्पित है।
वस्त्रं-
पीताम्बर वस्त्र धारण करें, जो सभी पापों का नाश करने वाला है।
आभरणानि-
हे तुलसीश्वर! स्वर्णमुकुट, हार, केयूर, कटक आदि दिव्य आभूषण स्वीकार करें।
गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य-
गन्धं स्वीकुरुतं देवौ रमेशहरिवल्लभे।
चन्दन, अगुरु, कर्पूर, कस्तूरी से युक्त सुगंध।
पुष्पैः अर्चये तुलसीहरी।
मल्लिका, मन्दार, चम्पा, शतपत्र, कमल आदि फूलों से पूजा।
धूपं गृहाण वरदे…
धूप प्रज्ज्वलित कर दोनों देवों को अर्पित करें।
दीपं देवि गृहाणेमं…
तीन बाती वाला गोघृत दीपक अर्पण करें।
नैवेद्यं गृह्यताम्-
विविध फल, क्षीर (दूध), घृत, भोज्य पदार्थों का नैवेद्य अर्पण।
ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्-
कर्पूर, पूगफल और पान के साथ ताम्बूल अर्पण।
नीराजन, प्रदक्षिणा, नमस्कार-
नीराजनं गृहाणेदं कर्पूरैः कलितं मया।
कपूर आरती से भगवान को नीराजन।
प्रदक्षिणा मन्त्र-
प्रकृष्टपापनाशाय प्रकृष्टफलसिद्धये।
युवां प्रदक्षिणी कुर्वे तुलसीशौ प्रसीदतम्।।
अर्थ-
सर्वश्रेष्ठ पापों के नाश और उत्तम फल की सिद्धि हेतु मैं आप दोनों की प्रदक्षिणा करता हूँ- कृपया प्रसन्न हों।
प्रार्थना और समर्पण-
नमोऽस्तु पीयूषसमुद्भवायै… नमस्तुलस्यै जगतां जनन्यै।।
अर्थ-
अमृत से उत्पन्न, जगत् की जननी तुलसी देवी को नमस्कार। जन्म और मृत्यु के भय को नाश करने वाली आपको प्रणाम।
शङ्खचक्रगदापाणे द्वारकानिलयाच्युत।
रक्ष मां शरणागतम्।।
अर्थ-
हे शंख, चक्र, गदा धारण करने वाले द्वारकावासी अच्युत! मैं शरण में आया हूँ- मेरी रक्षा करें।
पुष्पाञ्जलि एवं फलाश्रुति-
पुष्पाञ्जलिं गृहाणेदं… नताभीष्टफलप्रदे।
अर्थ-
हे देवी तुलसी! यह पुष्पाञ्जलि स्वीकार करें और भक्त को इच्छित फल प्रदान करें।
आयुरारोग्यमतुलमैश्वर्यं पुत्रसम्पदः।
देहि मे सकलान्कामान् तुलस्यमृतसम्भवे।।
अर्थ-
हे अमृत से उत्पन्न तुलसी! मुझे दीर्घायु, आरोग्य, ऐश्वर्य, पुत्र-संतान और सभी इच्छाएँ प्रदान करें।
उपसंहार-
कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा… नारायणायेति समर्पयामि॥
अर्थ-
मैं अपने शरीर, वाणी, मन और इन्द्रियों से जो कुछ भी करता हूँ, वह सब नारायण को ही समर्पित करता हूँ।
ॐ तत्सत- यह सत्य और पूर्णता का सूचक है।
सारांश-
यह पूजा तुलसी और भगवान विष्णु के दिव्य विवाह की लीला का प्रतीक है। इससे घर में सुख, सौभाग्य, आरोग्य और वैकुण्ठ तुल्य वातावरण बनता है। जो व्यक्ति कार्तिक शुक्ल द्वादशी को यह पूजन करता है, उसे सैकड़ों यज्ञों का फल और मोक्ष का अधिकार प्राप्त होता है।

































