भगवान कृष्ण को तीर किसने मारा था, मोहन मुरारी ने कहां त्यागा था देह, उनकी मृत्यु का क्या है रहस्य

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जब-जब धरती पर धर्म की हानि होती है परब्रह्म परमेश्वर मानव रूप में अवतरित होते हैं. भगवान कृष्ण भी इसी तरह मानव रूप में द्वापर का आखिर में आए और धर्म की स्थापना के साथ इस धरती से विदा हो गए. इस धरती पर भगवान कृष्ण सर्वगुण संपन्न रूप में अवतरित हुए. उनके पास अलौकिक शक्ति तो थी ही, वे धर्म, राजनीति, रहस्य, कला, गीत, संगीत, प्रेम, भक्ति और अनगिनत गुणों से परिपूर्ण थे. इसलिए भगवान कृष्ण को ईश्वर का पूर्ण अवतार माना जाता है. लेकिन क्या आपको पता है कि इतने शक्ति संपन्न होते हुए भी भगवान कृष्ण को एक व्यक्ति ने तीर मारकर हत्या कर दी. आखिर इसके पीछे का क्या रहस्य है. आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं.
भगवान कृष्ण को तीर किसने मारा

बहुत कम लोग जानते हैं कि भगवान कृष्ण को वैकुंठ प्रस्थान से पहले एक साधारण मनुष्य ने मृत्यु को प्राप्त कराया था लेकिन इस कहानी के पीछे कई राज है. चलिए पहले यह जान लेते हैं कि भगवान कृष्ण को तीर किसने मारी थी. जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया तब भगवान कृष्ण द्वारका चले गए. द्वापर युग में जहां-जहां अधर्म था लगभग सबका अंत उन्होंने कर दिया. जब हर जगह शांति होने लगी तब भगवान कृष्ण स्वयं मृत्यु को प्राप्त करने के लिए वन में जाकर ध्यान और तपस्या में लीन होने का निर्णय लिया. एक दिन वे एक पेड़ के थोड़ा उपर बैठ गए. इससे उनके दोनों पैर लटक गए. इस बीच एक बहेलिया शिकार करने उसी वन में आ गया. पत्तों की झुरमुट के बीच भगवान कृष्ण के दोनों पैर को देखकर जरा नाम का एक बहेलिया को लगा कि यह हिरण हो सकती है. उसने तुरंत वाण चलाया. तीर सीधे श्रीकृष्ण के पैरों में जाकर लगा. भगवान मुर्छित हो गए. अपनी भूल का एहसास होते ही जरा वहां दौड़कर आया और क्षमा मांगने लगा. भगवान ने जरा का माफ कर दिया. जरा को यह पता चला कि इस समय भगवान श्रीकृष्ण का पृथ्वी से जाना नियत है. वही साधन बनकर उन्होंने कृष्ण के वैकुंठ गमन का मार्ग प्रशस्त कर दिया.आइए अब जानते हैं इसके पीछे की कहानी.

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पूर्व जन्म में बाली था जरा

वास्तव में त्रेता युग में भगवान राम के रूप में आए थे. सीता की खोज में जब भगवान राम और लक्ष्मण निकले तो रास्ते में सुग्रीव जैसा साथी मिला. सुग्रीव की भी एक समस्या थी. सुग्रीव की पत्नी का उसके बड़े भाई बाली ने हरण कर लिया था. भगवान राम ने उन्हें उनकी पत्नी को बाली से मुक्त कराने का वचन दिया था. इस वचन को पूरा करने के लिए भगवान राम ने महाबली बाली का पीछे से तीर मारकर बध किया था.भगवान पर यह ऋण था.यही बाली द्वापर युग में जरा नाम का साधारण बहेलिया बना. इस तरह भगवान ने स्वयं यह लीला रची थी. जरा ने जब भगवान कृष्ण को तीर मारी तो उनका त्रेता युग वाला ऋण पूरा हो गया और भगवान ने जरा को इस तरह क्षमा दान दे दिया.

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गांधारी का श्राप
महाभारत युद्ध के दौरान भगवान कृष्ण अर्जुन के सारथी थे. युद्ध में सभी कौरवों के मारे जाने के बाद कौरवों की माता गांधारी कृष्ण को ही इसके लिए उत्तरदायी मानती थी. इससे उनपर बहुत क्रोधित थी. इसलिए जब कृष्ण विदा होते समय गांधारी के सामने आए तो अपने पुत्रों की मृत्यु के लिए कृष्ण को दोषी मानते हुए उन्होंने उन्हें श्राप दिया कि आने वाले 36 वर्षों में उनकी पूरी यदु वंश की प्रजा आपस में ही लड़कर नष्ट हो जाएगी और कृष्ण सब कुछ असहाय होकर देखते रह जाएंगे. धीरे-धीरे श्राप सच होने लगा. जो यदुवंशी पहले समृद्ध और सदाचारी थे, वे अनैतिक आचरण करने लगे. कृष्ण सब देख रहे थे, परंतु यह दिव्य योजना थी, इसलिए उन्होंने हस्तक्षेप नहीं किया. समय के साथ आपसी वैमनस्य बढ़ता गया और समृद्ध यदु वंश विनाश की ओर बढ़ने लगा.
एक बार कुछ यदुवंशी पुरुष मदहोश होकर नदी किनारे एक-दूसरे का मजाक उड़ाने लगे. बात बढ़ गई और वे आपस में युद्ध करने लगे. अंत में उन्होंने एक-दूसरे की हत्या कर दी और पूरा वंश नष्ट हो गया.

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