इसरो की बड़ी उपलब्धि….चंद्रयान-2 ने की सूर्य की किरणों के चंद्रमा पर पड़ने वाले असर की खोज

10
Advertisement

नई दिल्ली। दिवाली (Diwali) के शुभ मौके से पहले चंद्रयान (Chandrayaan) ने भी एक खुशखबरी भेजी है। ISRO के मुताबिक चंद्रयान-2 मिशन (Chandrayaan-2 mission) ने अपने वैज्ञानिक उपकरणों की मदद से पहली बार यह पता लगाया कि सूरज से निकलने वाली कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई) (Coronal Mass Ejection (CME) का चंद्रमा पर क्या असर पड़ता है। सूर्य और चंद्रमा के बीच रिश्ते को लेकर यह बड़ी खोज मानी जा रही है।

इसरो ने कहा, इस जानकारी से चंद्रमा के बाह्यमंडल, चंद्रमा के बहुत पतले वायुमंडल और उसकी सतह पर अंतरिक्ष मौसम के प्रभाव को समझने में मदद मिलेगी। श्रीहरिकोटा से 22 जुलाई 2019 को जीएसएलवी-एमके3-एम1 रॉकेट के जरिये प्रक्षेपित किए गए चंद्रयान-2 में आठ वैज्ञानिक उपकरण थे और 20 अगस्त 2019 को चंद्रयान-2 सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा में पहुंचा।

यहां भी पढ़े:  उत्तराखंड में लव जिहाद, हिंदू बनकर लड़की को होटल ले गया युवक; फर्जी पहचान पत्र भी

इसरो की एक विज्ञप्ति के अनुसार, चंद्रयान-2 पर लगे उपकरणों में से एक— ‘चंद्राज एटमॉस्फेरिक कॉम्पोजिशनल एक्सप्लोरर-2’ (सीएचएसीई-2) ने सूरज से निकलने वाली कोरोनल मास इजेक्शन का चंद्रमा के बाहरी वायुमंडल पर पड़ने वाला असर रिकॉर्ड किया है। सीएचएसीई-2 उपकरण का मुख्य उद्देश्य चंद्रमा के तटस्थ बाहरी वायुमंडल (न्यूट्रल एक्सोस्फीयर) की संरचना, उसका विस्तार और उसमें होने वाले बदलावों का अध्ययन करना है।

यहां भी पढ़े:  मिशन शक्ति फेज 5.0 के अन्तर्गत सर्वोदय इण्टर कालेज की कक्षा 11 की छात्रा माही सिंह को एक दिवस का क्षेत्राधिकारी लम्भुआ बनाया गया ।*

क्या होता है कोरनल मास इजेक्शन
कोरोनल मास इजेक्शन सौरमंडल में वाले वाले शक्तिशाली विस्फोट होते हैं। इस दौरान सूर्य हीलियम और हाइड्रोजन आयन छोड़ता है। चांद पर इसका काफी असह होता है। इसका कारण है कि चांद पर वायुमंडल नहीं है और यहां कोई बड़ा चुंबकीय क्षेत्र भी नहीं है।

यहां भी पढ़े:  अवैध शराब बरामद होने पर 02 अभियुक्तों के विरुद्ध थाना को0 जरवा पर सुसंगत धाराओं में अभियोग पंजीकृत कर विधिक कार्यवाही की गई।

चंद्रयान के डेटा से पता चला है कि कोरनल मास इजेक्शन के चंद्रमा से टकराने के बाद यहां के पतले वायुमंडल पर दबाव एक हजार गुना बढ़ गया। चंद्रमा के पास पहुत पतला वायुमंडल है जिसे एक्सोस्फीयर कहते हैं। यहां गैस के अणु मौजूद हैं। यह चंद्रमा की सतह से सटा हुआ है इसलिए इसे सतह सीमा एक्सोस्फीयर कहते हैं। उल्कापिंडों के टकराने या फिर सूर्य की किरणों और सौर हवा से यह एक्सोस्फीयर बनता है।

Advertisement