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मनरेगा का ‘चमत्कार’: बिस्तर पर लेटे मरीज और कॉलेज के अनुचर कर रहे हैं फावड़े से खुदाई

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*रोजगार सेवक स्नेहलता शुक्ला की यह ‘जादुई कलम’ बना चर्चा का विषय।*

रिपोर्ट:हेमंत कुमार दुबे।

निचलौल (महाराजगंज): सरकार कहती है “काम मांगो तो काम मिलेगा”, लेकिन निचलौल ब्लॉक की ग्राम सभा विशुनपुरा में सिस्टम ने एक नया मंत्र ईजाद किया है— “काम मत करो, फिर भी हाजिरी लगेगी!” यहाँ भ्रष्टाचार की ऐसी ‘सर्जरी’ हुई है कि विज्ञान और हकीकत दोनों शर्मसार हैं। ग्राम सभा में रोजगार सेवक और सिस्टम की जुगलबंदी ने उन लोगों को भी ‘कर्मठ मजदूर’ बना दिया है, जो खुद अपने पैरों पर खड़े होने तक के लिए लाचार हैं।

*तू डाल-डाल, मैं पात-पात तकनीक पर भारी भ्रष्टाचार।*
सरकार ने भ्रष्टाचार रोकने के लिए जियो-टैगिंग से लेकर ऑनलाइन हाजिरी तक के हथकंडे अपनाए, लेकिन विशुनपुरा की रोजगार सेवक स्नेहलता शुक्ला और विभागीय तंत्र “तू डाल-डाल, मैं पात-पात” की कहावत को चरितार्थ कर रही हैं। यहाँ कागजों पर पसीना बहाने वालों की लिस्ट में ऐसे नाम शामिल हैं, जिन्हें देखकर हैरत होती है।

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*केस नंबर 1: एक्सीडेंट में टूटी एड़ी, पर मनरेगा में ‘दौड़’ रहे राजाराम!*
विशुनपुरा निवासी राजाराम गुप्त पुत्र फेकू गुप्त का बीती 30 नवम्बर 2025 को भीषण एक्सीडेंट हुआ था। चमनगंज पुल के पास हुए इस हादसे में उनकी एड़ी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई और सर्जरी के बाद वे आज भी बिस्तर पर पड़े हैं। जो व्यक्ति नित्यक्रिया के लिए भी दूसरों का सहारा ले रहा है, उसे रोजगार सेवक ने मनरेगा के मस्टर रोल में फावड़ा चलाते हुए ‘उपस्थित’ दिखा दिया। यह किसी दैवीय चमत्कार से कम नहीं है कि बिस्तर पर लेटा मरीज सरकारी फाइलों में मिट्टी ढो रहा है!

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*केस नंबर 2: कॉलेज में ड्यूटी और मनरेगा में मजदूरी, ‘सुपरमैन’ अंगद भारती।*
दूसरा कारनामा अंगद भारती का है, जो एक निजी इंटर कॉलेज में अनुचर (चपरासी) के पद पर तैनात हैं। वे दिन भर कॉलेज में घंटी बजाते हैं या फाइलें इधर-उधर करते हैं, लेकिन रोजगार सेवक की कृपा से उनकी हाजिरी मनरेगा के मास्टर रोल में भी ‘हरे रंग’ से चमक रही है।
हैरत की बात तो यह है कि जब कॉलेज प्रबंधन से इस बारे में पूछा गया,तो उन्होंने अपने कर्मचारी के ‘दोहरे व्यक्तित्व’ को बचाने के लिए सफेद झूठ का सहारा लिया। प्रबंधन का कहना है कि जिस दिन अंगद मनरेगा में काम करते हैं, उस दिन स्कूल नहीं आते। सवाल यह है कि क्या एक कर्मचारी सरकारी लाभ के लिए एक साथ दो नावों पर सवारी कर सकता है? या फिर यह सिर्फ सरकारी धन की बंदरबांट का संगठित खेल है?

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*सिस्टम की मेहरबानी, जनता की बदहाली।*
रोजगार सेवक स्नेहलता शुक्ला की यह ‘जादुई कलम’ चर्चा का विषय बनी हुई है। आखिर किसके संरक्षण में यह खेल चल रहा है? जब धरातल पर काम कम और कागजों पर भ्रष्टाचार अधिक हो, तो समझा जा सकता है कि विकास की गंगा कहाँ जा रही है। क्या आला अधिकारी इन ‘अदृश्य मजदूरों’ और ‘भ्रष्ट सिस्टम’ पर नकेल कसेंगे या फिर विशुनपुरा का यह ‘जादुई मॉडल’ यूं ही जारी रहेगा।इस महाघोटाले में जब ग्रामीणों ने उच्चाधिकारियों से शिकायत किया तो जवाब में जांचकर कार्यवाही का आश्वासन मिला।

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