त्रिस्पृशा महायोग दिलाएगा हजार एकादशियों का फल, इस दुर्लभ व्रत से खुलेंगे मोक्ष के द्वार

6
Advertisement

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी इस वर्ष एक अत्यंत दुर्लभ और विशेष संयोग लेकर आ रही है. ज्योतिषीय गणनाओं और धर्मशास्त्रों के अनुसार, 02 नवंबर 2025, रविवार को त्रिस्पृशा देवउठनी-प्रबोधिनी एकादशी का महायोग बन रहा है. यह वह अद्वितीय तिथि है, जिसके मात्र एक उपवास से व्रती को एक हजार एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है. यह महायोग मोक्ष की कामना रखने वाले साधकों और भक्तों के लिए स्वर्ग का द्वार खोलने जैसा है.

शुभ मुहूर्त और व्रत का निर्धारण: पंचांग के अनुसार, एकादशी तिथि का आरंभ 01 नवंबर 2025, शनिवार को सुबह 09:13 बजे हो रहा है, जिसका समापन अगले दिन 02 नवंबर 2025, रविवार को सुबह 07:33 बजे होगा. शास्त्रीय विधान के अनुसार, एकादशी का व्रत (उपवास) उस दिन रखा जाता है, जब सूर्योदय के समय एकादशी तिथि हो, जिसके चलते व्रत का संकल्प 02 नवंबर, रविवार को लिया जाएगा. इसी दिन यह दुर्लभ त्रिस्पृशा महायोग भी बन रहा है.

यहां भी पढ़े:  दिवाली के दिन करें वास्तु के ये उपाय, दौड़ी चली आएंगी मां लक्ष्मी, नहीं होगी पूरे साल धन-धान्य की कमी!

त्रिस्पृशा महायोग का शास्त्र सम्मत महत्व: ‘पद्म पुराण’ में इस त्रिस्पृशा एकादशी की महिमा का विस्तार से वर्णन है. देवर्षि नारदजी ने स्वयं भगवान शिवजी से इस व्रत का माहात्म्य पूछा था. महादेवजी ने इसे ‘वैष्णवी तिथि’ कहा, क्योंकि देवाधिदेव भगवान विष्णु ने मोक्ष की प्राप्ति के लिए स्वयं इस व्रत की सृष्टि की थी.

भगवान माधव ने गंगाजी को पापमुक्ति के बारे में बताते हुए कहा था कि जब एक ही दिन में एकादशी, द्वादशी और रात्रि के अंतिम प्रहर में त्रयोदशी तिथि का स्पर्श (स्पृशा) होता है, तब वह ‘त्रिस्पृशा’ कहलाती है. इस प्रकार तीन तिथियों का स्पर्श होने के कारण यह महायोग धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्रदान करने वाला है.

सौ करोड़ तीर्थों से भी अधिक फलदायी: धर्मग्रंथों में इस त्रिस्पृशा एकादशी को सौ करोड़ तीर्थों से भी अधिक महत्वपूर्ण बताया गया है. मान्यता है कि इस दिन व्रत करने वाला पुरुष अपने पितृ कुल, मातृ कुल तथा पत्नी कुल के सहित भगवान विष्णु के परमधाम विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है. यह एकादशी केवल पुण्य ही नहीं देती, बल्कि समस्त पाप-राशियों का शमन करनेवाली, बड़े से बड़े दुःखों का विनाश करनेवाली और सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली है.

यहां भी पढ़े:  India, Srilanka discuss new ferry route between Rameshwaram and Talaimanna

ब्रह्महत्या जैसे महापाप का शमन: इस त्रिस्पृशा के उपवास का एक और बड़ा माहात्म्य यह है कि इसके प्रभाव से ब्रह्महत्या जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं. इसके साथ ही, व्रती को एक हजार अश्वमेघ और सौ वाजपेय यज्ञों का अद्भुत फल प्राप्त होता है. यह स्पष्ट है कि जिसने इस एकमात्र व्रत का अनुष्ठान कर लिया, उसने मानो सम्पूर्ण अन्य व्रतों का अनुष्ठान कर लिया.

यहां भी पढ़े:  महाराष्ट्र में भीषण बारिश का कहर, मुंबई समेत कई जिलों में रेड अलर्ट जारी, समुद्र में उठेंगी 11 फीट ऊँची लहरें

जागरणा और द्वादशाक्षर मंत्र का जाप: इस एकादशी पर रात्रि जागरण (पूरी रात जागकर भजन-कीर्तन करना) का विशेष महत्व है. जो साधक इस एकादशी को रात में जागरण करता है, वह सीधे भगवान विष्णु के स्वरूप में लीन हो जाता है. जागरण के दौरान और पूरे दिन द्वादशाक्षर मंत्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय) का श्रद्धापूर्वक जप करना चाहिए.

इस पवित्र और दुर्लभ तिथि पर भगवान विष्णु के साथ-साथ अपने सदगुरु की पूजा करने का भी विधान बताया गया है. गुरु और भगवान दोनों के प्रति समर्पण भाव से किया गया यह व्रत जीवन को सुख-समृद्धि और अंत में मोक्ष की ओर ले जाता है.

यह महायोग हर किसी को नहीं मिलता. इसलिए, सभी सनातन धर्म प्रेमियों से अनुरोध है कि वे इस दुर्लभ त्रिस्पृशा एकादशी का लाभ उठाएँ और अपनी आध्यात्मिक उन्नति सुनिश्चित करें.

Advertisement