मुंबई. पवई इलाके में गुरुवार को तीन घंटे तक चली बंधक स्थिति का अंत उस समय हुआ जब पुलिस ने 50 वर्षीय रोहित आर्य को गोली मार दी. आर्य ने महावीर क्लासिक बिल्डिंग के आरए स्टूडियो में 17 बच्चों को बंधक बना लिया था. सभी बच्चों को सुरक्षित निकाल लिया गया, लेकिन आर्य को अस्पताल ले जाया गया जहां उसने दम तोड़ दिया. घटना ने पूरे शहर को झकझोर दिया, वहीं अब उसके परिजनों और परिचितों के बयान सामने आ रहे हैं जो इस त्रासदी के पीछे की जटिल कहानी बयान करते हैं.
रोहित आर्य की पत्नी, अंजलि आर्य के मुताबिक, वह पिछले कई महीनों से मानसिक रूप से टूट चुका था क्योंकि सरकार की एक परियोजना में किए गए काम का भुगतान उसे नहीं मिला था. “वह ‘पीएलसी स्वच्छता मॉनिटर प्रोजेक्ट’ का नेतृत्व कर रहा था. केसरकर साहब ने काम की सराहना की थी और ₹2 करोड़ की मंजूरी का आश्वासन दिया था. काम पूरा हो गया, लेकिन उसे न पैसा मिला, न कोई औपचारिक मान्यता,” अंजलि ने कहा.
घटना की शुरुआत उस समय हुई जब आर्य कुछ बच्चों को ऑडिशन के बहाने आरए स्टूडियो बुलाकर अंदर बंद हो गया. उसके पास एक एयर गन और ज्वलनशील स्प्रे था. उसने दरवाजा बंद कर खुद को और बच्चों को अंदर से barricade कर लिया. पुलिस ने तुरंत पूरे इलाके को घेर लिया और बातचीत शुरू की, जो करीब साढ़े तीन घंटे तक चली. इस दौरान आर्य ने एक वीडियो भी जारी किया जिसमें उसने कहा — “मेरी मांगें सरल, नैतिक और उचित हैं. मैं कोई आतंकी नहीं हूं. मैं किसी से पैसे नहीं मांग रहा, बस न्याय चाहता हूं.”
वीडियो में वह साफ कहता है कि उसे ₹2 करोड़ की राशि सरकारी प्रोजेक्ट के तहत दी जानी थी जो अब तक नहीं मिली. उसने यह भी कहा कि उसकी कोई हिंसक मंशा नहीं है, बस उसकी बात सुनी जाए. पुलिस के अनुसार, स्थिति तब नियंत्रण से बाहर हो गई जब आर्य ने ज्वलनशील स्प्रे को सक्रिय किया और पुलिस ने बच्चों की सुरक्षा के लिए गोली चलानी पड़ी.
पुलिस ने सभी बच्चों को सुरक्षित निकालने के बाद आर्य को घायल अवस्था में अस्पताल पहुंचाया, जहां उसने दम तोड़ दिया. पुलिस का कहना है कि आर्य को पहले समझाने की पूरी कोशिश की गई, लेकिन वह “अत्यधिक उत्तेजित अवस्था” में था और किसी की बात नहीं मान रहा था.
घटना के बाद रोहित आर्य के मुंबई और पुणे दोनों जगह के परिचितों ने अविश्वास व्यक्त किया. पुणे में उसका एक छोटा कैफे ‘जैलीज़ कैफे’ था, जो कुछ महीने पहले बंद हो गया था. पास के दुकानदारों ने बताया, “वह हमेशा शांत और संयमी व्यक्ति था. हमें इस खबर पर यकीन नहीं हो रहा. वह रोज़ सामान्य तरीके से ‘हाय-हैलो’ करता था.” एक अन्य दुकानदार ने बताया कि आर्य ने कभी मुंबई में किसी आंदोलन में शामिल होने की बात की थी, पर यह नहीं बताया कि वह किस बारे में है.
उसके पुराने पड़ोसी ने भी कहा, “वह बहुत सामान्य आदमी था. धीरे बोलता था, हमेशा शांत रहता था. मुझे नहीं लगा था कि वह कुछ ऐसा करेगा.” एक अन्य निवासी ने कहा, “वह एक संयमी व्यक्ति था. मुझे संदेह है कि जो कहानी बाहर आई है, वह पूरी सच्चाई है या नहीं.”
इस बीच, महाराष्ट्र के पूर्व स्कूल शिक्षा मंत्री और शिवसेना नेता दीपक केसरकर ने बताया कि आर्य ने ‘स्वच्छता मॉनिटर प्रोजेक्ट’ पर काम किया था, लेकिन ₹2 करोड़ बकाया होने की बात असत्य है. “मैंने उसे परियोजना का पायलट चलाने को कहा था. पिछले साल उसने शिकायत की थी कि विभाग भुगतान नहीं कर रहा, तो मैंने व्यक्तिगत रूप से कुछ धनराशि दी थी,” केसरकर ने कहा.
पुलिस सूत्रों के मुताबिक, आर्य पिछले एक साल से शिक्षा विभाग और मंत्रालय के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहा था. जुलाई से अक्टूबर 2024 के बीच उसने कई बार आज़ाद मैदान और केसरकर के निवास के बाहर धरना दिया था. उसका कहना था कि सरकार ने उसके विचार और प्रोजेक्ट को अपनाया, लेकिन उसका श्रेय या भुगतान नहीं दिया गया.
घटना के बाद सोशल मीडिया पर भी इस मामले ने बहस छेड़ दी है. कुछ लोग आर्य की हताशा को एक प्रशासनिक अन्याय का परिणाम बता रहे हैं, जबकि अन्य इसे आत्मनियंत्रण खोने की त्रासदी कह रहे हैं. ट्विटर (एक्स) पर एक यूज़र ने लिखा, “यह घटना दिखाती है कि जब सिस्टम किसी की मेहनत को अनदेखा करता है, तो व्यक्ति किस हद तक टूट सकता है.”
पुलिस ने फिलहाल घटना की जांच शुरू कर दी है. अधिकारियों का कहना है कि वे यह पता लगा रहे हैं कि आर्य की सरकारी प्रोजेक्ट से जुड़ी वित्तीय शिकायतों में कितनी सच्चाई है.
पवई की यह घटना न केवल एक व्यक्ति की व्यक्तिगत हताशा की कहानी है, बल्कि यह सवाल भी उठाती है कि सरकारी तंत्र में काम करने वाले स्वतंत्र पेशेवरों और सामाजिक परियोजनाओं से जुड़े लोगों के साथ व्यवहार कितना न्यायपूर्ण है. रोहित आर्य की मौत ने यह बहस छेड़ दी है कि जब सिस्टम में संवाद की जगह दीवारें खड़ी हो जाएं, तो एक संवेदनशील व्यक्ति किस हद तक टूट सकता है.

















