दशहरा : रावण दहन के बाद क्यों घर लाई जाती है उसके पुतले की राख, क्या है परंपरा?

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दशहरा पर रावण दहन और उसकी राख को घर लाना धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से शुभ माना जाता है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश देता है और समाज में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।

आज देशभर में बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में दशहरा का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस दिन रावण, मेघनाद और कुंभकरण के पुतलों का दहन किया जाता है और पुतले की राख को घर लाने की परंपरा प्रचलित है। इस परंपरा के पीछे कई धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। आइए जानते हैं…

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रावण की राख का महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सोने की लंका का निर्माण धनपति कुबेर ने करवाया था। दशहरा पर रावण के पुतले के दहन के बाद उसकी राख को घर लाने से यह माना जाता है कि घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। धन और समृद्धि का आगमन होता है, विशेषकर जब राख को तिजोरी में रखा जाए।

घर में सुख-शांति बनी रहती है और नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश रोका जाता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, रावण की राख को घर में रखना अस्थियों का प्रतीक होने के कारण धन-धान्य में वृद्धि और जीवन में अच्छे गुणों के विकास का संकेत देता है।

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धार्मिक और सामाजिक महत्व

दशहरा नवरात्रि महापर्व का अंतिम दिन होता है। इस दिन माता दुर्गा की पूजा की जाती है, जो शक्ति और साहस की प्रतीक हैं। रावण की अस्थियों को घर लाना बुराई पर अच्छाई की विजय और जीवन में अपने अंदर की बुराइयों को दूर करने का प्रतीक माना जाता है।

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दशहरा केवल धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव भी है। यह लोगों को एकत्रित करता है, समाज में एकता और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देता है और सामूहिक खुशी मनाने का अवसर प्रदान करता है।

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