नौकरी चाहिए, वादा नहीं: नीतीश‑तेजस्वी के वादों के बीच Gen Z ने रखी अपनी शर्तें और उम्मीदें

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News Desk
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नई दिल्‍ली । बिहार(Bihar) विधानसभा चुनावों(assembly elections) में इस बार रोजगार का मुद्दा(employment issue) सबसे बड़ा और ज्वलंत सवाल(Burning Question) बनकर उभरा है। 2020 के चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) नेता तेजस्वी यादव ने पहली कैबिनेट बैठक में 10 लाख सरकारी नौकरियों का वादा किया था, जिसने युवाओं को खासा आकर्षित किया।

 

इसके जवाब में, NDA को 20 लाख नौकरियों के सृजन की घोषणा करनी पड़ी थी। पांच साल बाद भी सरकार और विपक्ष दोनों के बड़े-बड़े वादों के बावजूद, अबकी बार बिहार की युवा पीढ़ी (Gen Z) इन घोषणाओं पर आसानी से यकीन नहीं कर रही है। पिछले पांच वर्षों में राज्य में भर्ती परीक्षाओं के रद्द होने, पेपर लीक होने और कई मौकों पर छात्रों और पुलिस के बीच झड़पों को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन देखे गए हैं।

इस बार तेजस्वी यादव ने सत्ता में आने पर हर परिवार में एक सरकारी नौकरी देने का वादा किया है, जबकि NDA ने अगले पांच वर्षों में 2 करोड़ सरकारी नौकरियों और नए निवेश के माध्यम से उद्यमिता को बढ़ावा देने का वादा किया है। इसके बावजूद, युवाओं में गहरी नाराजगी है और वे इन वादों को केवल चुनावी ‘जुमला’ मान रहे हैं।

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बिहार के 7.43 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 3.78 करोड़ मतदाता 20 से 40 वर्ष की आयु के हैं, जो कुल वोटरों का 51% हिस्सा हैं। इनका उबलता आक्रोश राज्य में सरकार बनाने वाले किसी भी दल के लिए परेशानी का संकेत है।

मुजफ्फरपुर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) से बीटेक कर चुके अरुण गुप्ता (34) भी सरकारी शिक्षक की नौकरी की तैयारी कर रहे हैं। इकोनॉमिक टाइम्स से बात करते हुए वे कहते हैं, “सरकारी नौकरी तो सरकारी नौकरी होती है। सरकार ने TRE-3 तो पूरा कर लिया, लेकिन TRE-4 की घोषणा करके भी हम अभी तक इंतजार कर रहे हैं। हम बदलाव चाहते हैं, लेकिन किसे चुनें? सब एक जैसे हैं।” उनके दोस्त मनीष यादव इसे खोखला वादा बताते हुए सवाल करते हैं कि करोड़ों नौकरियों का वादा करने वाले यह बताएं कि उन्होंने पिछले पांच साल में क्या किया?

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वादा या ‘जुमला’? युवा पूछ रहे सवाल

पूर्णिया के अभिषेक कुमार BPSC की तैयारी कर रहे हैं। इकोनॉमिक टाइम्स से बात करते हुए कहते हैं कि सभी पार्टियों ने अब चुनाव के दौरान ‘जुमला’ इस्तेमाल करना सीख लिया है। तेजस्वी यादव हर परिवार को एक सरकारी नौकरी देने की बात कह रहे हैं। मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि इसका पैमाना क्या होगा? SC/ST में साक्षरता दर 10% से भी कम है और पूर्णिया में महिला साक्षरता दर 51% है। आप इन अनपढ़ परिवारों को किस तरह की नौकरी देंगे?

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खगड़िया के विकास कुमार के लिए समय पर और लीक-प्रूफ परीक्षाएं ही प्राथमिकता हैं। वे कहते हैं, “हमें NDA द्वारा वादा की गई 2 करोड़ नौकरियां नहीं चाहिए, लेकिन कम से कम परीक्षा समय पर और बिना धांधली के सुनिश्चित हो। हम गरीब परिवार से हैं और बाहर जाकर प्रोफेशनल कोर्स नहीं कर सकते। सरकारी नौकरी ही एकमात्र विकल्प है।” पटना में रहने के लिए हर महीने करीब 9,000 का खर्च चलाने के लिए विकास हर दिन तीन-चार घंटे ऊबर बाइक भी चलाते हैं।

बिहार के Gen Z का संदेश स्पष्ट और जोर से है। रोजगार केवल एक चुनावी नारा नहीं, बल्कि उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा सवाल है। वे अब कोरे वादों पर यकीन करने को तैयार नहीं हैं।

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