जयंती स्पेशल आडवाणी से खटास, BJP छोड़ नई पार्टी बनाने की योजना

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News Desk
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नई दिल्ली । भारतीय जनता पार्टी (BJP) के दो मजबूत स्तंभ माने जाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी (AtalBihariVajpayee)और लालकृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani)की जोड़ी भारतीय राजनीति(Indian politics) में दशकों तक अटूट मानी जाती रही, लेकिन एक समय ऐसा भी आया था जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी अलग राजनीतिक पार्टी बनाने पर गंभीरता से विचार किया था। यह खुलासा वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी ने बुधवार को प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय में आयोजित एक सार्वजनिक व्याख्यान(public speaking) के दौरान किया। यह व्याख्यान अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती की पूर्व संध्या पर आयोजित किया गया था और इसका विषय था- “अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन और योगदान (contributions)।
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नीरजा चौधरी के अनुसार, जब 1984 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सिर्फ दो सीटें मिली थीं और वाजपेयी ग्वालियर से चुनाव हार गए थे। उसी दौर में आडवाणी पार्टी के भीतर तेजी से उभर रहे थे। इससे आहत होकर वाजपेयी ने कुछ समय के लिए भाजपा से अलग होकर नई पार्टी बनाने का मन बनाया था, हालांकि यह विचार ज्यादा समय तक नहीं टिका और उन्होंने भाजपा के साथ ही बने रहने का फैसला किया।

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पोखरण-2 और आडवाणी की पीड़ा
नीरजा चौधरी ने अपने व्याख्यान में पोखरण-2 परमाणु परीक्षण (1998) से जुड़ा एक संवेदनशील प्रसंग भी साझा किया, जिसने दोनों नेताओं के रिश्तों में आए तनाव को उजागर किया। उन्होंने बताया कि अटल बिहारी वाजपेयी ने परमाणु परीक्षण की जानकारी अपने प्रधान सचिव बृजेश मिश्रा और तीनों सेना प्रमुखों के साथ साझा की थी, लेकिन लालकृष्ण आडवाणी को इस फैसले में शामिल नहीं किया गया। निरजा चौधरी के मुताबिक, मंत्रिमंडल के अन्य सदस्यों को भी परीक्षण से सिर्फ दो दिन पहले सूचना दी गई, वह भी बिना तारीख बताए।

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उन्होंने याद करते हुए कहा कि 11 मई 1998 को जब वह नॉर्थ ब्लॉक में आडवाणी से मिलने पहुंचीं, तो वे पार्टी कार्यकर्ताओं से घिरे होने के बजाय अकेले बैठे थे और बेहद आहत नजर आ रहे थे। उनकी आंखों में आंसू थे। आडवाणी को इस बात का गहरा दुख था कि दशकों की मित्रता और पार्टी की पुरानी प्रतिबद्धता के बावजूद उन्हें भरोसे में नहीं लिया गया।

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1990 के दशक में बढ़ता वाजपेयी का प्रभाव
नीरजा चौधरी ने कहा कि 1990 के दशक में अटल बिहारी वाजपेयी की सर्वमान्य छवि और सभी दलों से अच्छे संबंधों ने उन्हें बेहद प्रभावशाली बना दिया था। उन्होंने यह भी बताया कि वाजपेयी और पूर्व प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिंह राव के बीच भी करीबी संबंध थे। इसके पीछे या तो दोनों का ब्राह्मण होना था या फिर 1977 में विदेश मंत्री रहते हुए वाजपेयी के समय से दोनों की पुरानी जान-पहचान।

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