बेंगलुरु। कर्नाटक की राजनीति में फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर खींचतान तेज हो गई है। उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार द्वारा हाल ही में दिए बयानों ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया गुट में हलचल पैदा कर दी है। कांग्रेस स्थापना दिवस के मौके पर शिवकुमार ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि सत्ता स्थायी नहीं होती, इस बयान को सीधे तौर पर सिद्धारमैया के लिए एक कड़े संदेश के रूप में देखा जा रहा है। डिप्टी सीएम शिवकुमार ने इतिहास का हवाला देकर कहा कि सिकंदर महान और सद्दाम हुसैन जैसे शक्तिशाली लोग भी हमेशा के लिए नहीं रहे। उनके इस बयान के पीछे दो प्रमुख संकेत छिपे हैं। जहां शिवकुमार यह जताना चाहते हैं कि ढाई साल का कार्यकाल (मिड-टर्म) पूरा होने के बाद अब नेतृत्व परिवर्तन का समय आ गया है। उन्होंने मल्लिकार्जुन खरगे से मुलाकात के बाद कहा कि वे केवल भाषण देने वाले नेता नहीं हैं, बल्कि उन्होंने पार्टी के लिए जमीनी स्तर पर काम किया है। यह सिद्धारमैया की तुलना में खुद को अधिक निष्ठावान पार्टी कैडर दिखाने की कोशिश है। 2023 के विधानसभा चुनाव में जीत के बाद से ही सत्ता-साझाकरण समझौते की चर्चाएं जोरों पर हैं। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री पद का गुप्त समझौता हुआ था। मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की है कि वे अपना पांच साल का पूरा कार्यकाल निभाएंगे। उन्होंने हाल ही में एक गुप्त समझौते की ओर इशारा किया है, हालांकि उन्होंने इसके विवरण साझा नहीं किए।
भले ही दोनों नेता कैमरे के सामने एकजुट होने का दावा करते हों, लेकिन शिवकुमार की टिप्पणियां साफ करती हैं कि कांग्रेस के अंदर सब कुछ ठीक नहीं है। नेतृत्व के इस भ्रम से शासन व्यवस्था और पार्टी की छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। अब सबकी निगाहें कांग्रेस आलाकमान पर टिकी हैं कि क्या वे 2026 की शुरुआत में किसी बड़े बदलाव की अनुमति देगा या यथास्थिति बनाए रखेगा।

































