छोटे किसानों के लिए तकनीक की शुरुआती लागत अभी भी चुनौती है। हालांकि सरकारी सब्सिडी, स्टार्टअप्स और घटती तकनीकी लागत से आने वाले समय में यह बाधाएं दूर होंगी।
भारतीय कृषि वर्ष 2025 में एक ऐतिहासिक बदलाव के दौर से गुजर रही है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के बीच अब किसान परंपरागत खेती से आगे बढ़कर तकनीक आधारित खेती की ओर बढ़ रहे हैं। स्मार्ट फार्मिंग और प्रिसिजन एग्रीकल्चर अब प्रयोगशाला से निकलकर खेतों में उतर चुका है, जिससे उत्पादन क्षमता बढ़ रही है, लागत घट रही है और किसानों की आमदनी में सुधार हो रहा है।
2025 में अनुमान है कि 30% से अधिक भारतीय खेतों में प्रिसिजन फार्मिंग तकनीक अपनाई जाएगी। यह तकनीक सिंचाई, उर्वरक और कीटनाशक जैसे इनपुट्स को सूक्ष्म स्तर पर नियंत्रित करती है, जिससे संसाधनों का बेहतर उपयोग होता है और पैदावार बढ़ती है।
कृषि में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग
एआई और मशीन लर्निंग किसानों के लिए सबसे बड़ा बदलाव साबित हो रहे हैं। एआई-आधारित प्लेटफॉर्म मौसम, मिट्टी और फसल स्वास्थ्य से जुड़े विशाल डाटा का विश्लेषण कर किसानों को मोबाइल पर ही व्यक्तिगत सलाह देते हैं। इससे इनपुट्स की बचत, कर्ज में कमी और आर्थिक स्थिरता जैसे सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं।
ड्रोन, सैटेलाइट और रिमोट सेंसिंग
ड्रोन और हाई-रिज़ॉल्यूशन सैटेलाइट इमेजरी से फसलों की निगरानी, पैदावार का अनुमान और पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन आसान हुआ है। कई कंपनियां मोबाइल ऐप्स के माध्यम से यह सेवाएं किसानों तक पहुंचा रही हैं, जिससे खेती अधिक डेटा-आधारित और टिकाऊ बन रही है।
डिजिटल प्लेटफॉर्म और ई-मार्केटप्लेस
किसान सुविधा जैसे मोबाइल ऐप्स किसानों को मौसम पूर्वानुमान, कीट अलर्ट और बाजार भाव की जानकारी स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध कराते हैं। ई-मार्केटप्लेस किसानों को सीधे खरीदारों से जोड़ते हैं, जिससे बिचौलियों पर निर्भरता घट रही है और किसानों को उचित मूल्य मिल रहा है। 2025 तक 60% से अधिक किसान डिजिटल प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करने लगे हैं।
ब्लॉकचेन और जियोस्पेशल टेक्नोलॉजी
ब्लॉकचेन तकनीक सप्लाई चेन में पारदर्शिता और ट्रेसबिलिटी सुनिश्चित कर रही है, जिससे निर्यात के नए अवसर खुल रहे हैं। वहीं जीआईएस और रिमोट सेंसिंग तकनीक से आपदा पूर्वानुमान और प्रतिक्रिया में सुधार हुआ है।
सरकारी पहल और नीतिगत सहयोग
भारत सरकार ने 2024 में डिजिटल एग्रीकल्चर मिशन शुरू किया, जिसके तहत ‘एग्रीस्टैक’ जैसी परियोजनाओं पर काम हो रहा है। इसका उद्देश्य किसानों की डिजिटल प्रोफाइल, भूमि अभिलेख और फसल परामर्श को एकीकृत करना है। ₹2,817 करोड़ की लागत वाले इस मिशन के जरिए एआई, ब्लॉकचेन, आईओटी और जियोस्पेशल तकनीक को बड़े पैमाने पर अपनाया जा रहा है।
चुनौतियां और भविष्य की राह
छोटे किसानों के लिए तकनीक की शुरुआती लागत अभी भी चुनौती है। हालांकि सरकारी सब्सिडी, स्टार्टअप्स और घटती तकनीकी लागत से आने वाले समय में यह बाधाएं दूर होंगी।
तकनीक से नई हरित क्रांति
स्मार्ट फार्मिंग अब सपना नहीं बल्कि हकीकत बन चुकी है। किसान बढ़ी हुई आमदनी, कम बर्बादी और जलवायु चुनौतियों से लड़ने की बेहतर क्षमता के साथ आगे बढ़ रहे हैं। आने वाले वर्षों में यह तकनीक-आधारित खेती भारत को अधिक टिकाऊ, आत्मनिर्भर और खाद्य सुरक्षा से मजबूत बनाएगी।