अटल जी की वो एक सलाह जिसने बदल दी नीतीश की राजनीति; जानें दोनों के बीच की वो अनकही कहानी

7
News Desk
Advertisement

Nitish Kumar and Atal Bihari Vajpayee Relation: भारतीय राजनीति में गठबंधन आते-जाते रहते हैं, विचारधाराएं बदलती हैं और दोस्त दुश्मन बन जाते हैं. लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दिल में एक शख्सियत ऐसी है, जिसके प्रति उनकी श्रद्धा कभी कम नहीं हुई, और वो हैं भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी. 25 दिसंबर को जब देश अटल जी की जयंती मना रहा है, तो नीतीश कुमार के जेहन में फिर से वो यादें ताजा हो गई हैं, जो केवल राजनीति की नहीं, बल्कि अटूट भरोसे और पिता-तुल्य स्नेह की हैं.

जब अटल के भरोसे ने बनाया ‘सुशासन बाबू’
नीतीश कुमार आज भले ही गठबंधन की राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाते हों, लेकिन उनके प्रशासनिक कौशल को तराशने का श्रेय अटल बिहारी वाजपेयी को जाता है. 90 के दशक के आखिर में जब नीतीश केंद्र की राजनीति में सक्रिय हुए, तो अटल जी ने उनकी प्रतिभा को पहचान लिया था. यही वजह थी कि उन्होंने नीतीश को कृषि, रेलवे और भूतल परिवहन जैसे भारी-भरकम मंत्रालयों की जिम्मेदारी सौंपी.

यहां भी पढ़े:  जॉब प्रमोशन और धन प्रवाह चाहते हैं? इन वर्कस्पेस टिप्स को अपनाकर बदलें प्रोफेशनल लाइफ और पाएं तरक्की

नीतीश अक्सर याद करते हैं कि अटल जी के मंत्रिमंडल में काम करना किसी स्कूल में सीखने जैसा था. वहां केवल आदेश नहीं दिए जाते थे, बल्कि संवाद और सम्मान का माहौल था.

वो 7 दिन और हार न मानने का जज्बा
नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन का सबसे भावुक मोड़ साल 2000 में आया था. बिहार विधानसभा चुनाव के बाद अटल जी के अटूट विश्वास के चलते नीतीश ने पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. हालांकि, बहुमत की कमी के कारण यह सरकार सिर्फ 7 दिन में गिर गई.

वह हार किसी भी नेता को तोड़ सकती थी, लेकिन नीतीश बताते हैं कि उस वक्त अटल जी ने ही उन्हें ढांढस बंधाया. उस 7 दिन की असफलता ने ही 2005 के ‘सुशासन’ की नींव रखी. नीतीश मानते हैं कि अटल जी का आशीर्वाद ही था कि वे बिहार में ‘जंगलराज’ के टैग को मिटाकर विकास की राह पर चल सके.

यहां भी पढ़े:  “राज्यसभा में ‘वंदे मातरम्’ पर महासंग्राम…अमित शाह ने कांग्रेस को धो डाला…खड़गे बोले- नेहरू पर निशाना क्यों? जानें सदन में क्या हुआ हंगामा

जब अटल जी भी भावुक हो गए
नीतीश और अटल बिहारी का रिश्ता सिर्फ कुर्सी का नहीं था. 1999 में जब पश्चिम बंगाल के गैसल में दर्दनाक रेल हादसा हुआ, तो नीतीश कुमार ने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे दिया. अटल अपने इस प्रिय मंत्री को खोना नहीं चाहते थे, उन्होंने इस्तीफा नामंजूर करने की कोशिश की, लेकिन नीतीश अपनी बात पर अड़े रहे. यह घटना दिखाती है कि दोनों नेताओं के लिए राजनीतिक शुचिता और नैतिक मूल्य पद से ऊपर थे.

गठबंधन कोई भी हो, ‘अटल’ भक्ति अटूट
नीतीश कुमार की राजनीति में कई उतार-चढ़ाव आए. वे भाजपा के साथ रहे, फिर अलग हुए, फिर साथ आए. लेकिन एक चीज जो कभी नहीं बदली, वह थी अटल जी के प्रति उनकी निष्ठा. आज भी जब नीतीश कुमार ‘सदैव अटल’ स्मारक पर जाकर शीश झुकाते हैं, तो उनके चेहरे पर वही पुरानी श्रद्धा दिखती है.

यहां भी पढ़े:  प्रदोष व्रत से होगी नए साल की शुभ शुरुआत, 1 जनवरी को शिव–विष्णु पूजन का दुर्लभ योग

राजनीतिक गलियारों में चर्चा रहती है कि नीतीश आज भी मौजूदा राजनीति की तुलना अटल-आडवाणी के दौर से करते हैं. उनके लिए अटल जी केवल एक प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि एक ऐसी ढाल थे जिन्होंने गठबंधन की राजनीति में छोटे दलों को सम्मान देना सिखाया.

यादों की विरासत
आज के दौर में जहां राजनीति में कटुता बढ़ रही है, नीतीश और अटल जी का यह संबंध हमें याद दिलाता है कि आपसी मतभेदों के बीच भी एक-दूसरे के प्रति सम्मान कैसे बनाए रखा जाता है. नीतीश के लिए अटल बिहारी वाजपेयी एक ऐसी मशाल की तरह हैं, जिसकी रोशनी में उन्होंने बिहार को नई दिशा दी.

Advertisement