मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर करें लाल बाती का ये उपाय, जीवन में सुख, समृद्धि और तरक्की के खुलेंगे रास्ते

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मार्गशीर्ष मास का अंतिम दिन, पूर्णिमा तिथि—जिसे पारंपरिक तौर पर चंद्र-पूजन, लक्ष्मी-आराधना और शुभ कार्यों का समय माना जाता है—इस वर्ष 4 दिसंबर 2025 को पड़ रहा है। पंचांग के अनुसार पूर्णिमा तिथि सुबह 8 बजकर 37 मिनट से आरंभ होकर अगले दिन तड़के 4 बजकर 43 मिनट तक रहेगी। धार्मिक मान्यताओं में मार्गशीर्ष का यह दिन केवल चंद्रमा की शीतलता और देवी-देवताओं की कृपा के कारण ही पावन नहीं माना जाता, बल्कि लोक-विश्वास यह भी है कि इस तिथि पर किए गए उपाय जीवन में रुके हुए कार्यों को गति देते हैं, आर्थिक तंगी दूर करते हैं और परिवार में सुख-समृद्धि के द्वार खोलते हैं। यही कारण है कि जैसे-जैसे यह दिन करीब आता है, लोगों की उत्सुकता बढ़ने लगती है कि आखिर इस पूर्णिमा पर कौन से उपाय ऐसे हैं जिनसे घर की नकारात्मक परिस्थितियों का अंत हो सके और आर्थिक स्थिति में स्थायी सुधार आए।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मार्गशीर्ष मास भगवान श्रीकृष्ण को अत्यंत प्रिय है। श्रीकृष्ण स्वयं गीता में इसे ‘मासानां मार्गशीर्षोऽहम्’ कहकर अपना प्रिय महीना बताते हैं। माना जाता है कि इस मास में उनकी उपासना करने से जीवन की बाधाएं दूर होती हैं और सुख-संपत्ति का मार्ग खुलता है। इसी मास की पूर्णिमा में देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की संयुक्त पूजा का विशेष फल मिलता है। शाम को चंद्रोदय के समय भगवान चंद्र को अर्घ्य देने से मन की अशांति, मानसिक परेशानियाँ और चंद्रदोष शांत होते हैं। यही वह आधार है जहाँ जन-आस्था यह विश्वास करती है कि यदि इस दिन श्रद्धा से किए गए उपायों को दैनिक जीवन में अपनाया जाए, तो आर्थिक और पारिवारिक तनाव धीरे-धीरे समाप्त होने लगते हैं।

लोगों की जिज्ञासा का मुख्य केंद्र इस समय वे पारंपरिक उपाय हैं जिन्हें परिवारों में पीढ़ियों से अपनाया जाता रहा है। इनमें सबसे चर्चित उपाय है कमलगट्टे की माला मां लक्ष्मी को अर्पित कर श्री सूक्त का पाठ करना। इस उपाय को धनवृद्धि में अत्यंत प्रभावी माना जाता है। कहा जाता है कि कमल से उत्पन्न लक्ष्मी को कमल-सम्बंधित वस्तुएँ अर्पित करने से उनकी कृपा सहज रूप से प्राप्त होती है। इसी तरह हर पूर्णिमा पर चंद्रमा को अर्घ्य देना भी शुभ फलदायी माना गया है। जल में चीनी, चावल और कच्चा दूध मिलाकर चंद्रमा को अर्पित करने से आर्थिक संकट कम होने और मानसिक शांति बढ़ने की बात कही जाती है। कई लोगों का अनुभव यह रहा है कि नियमित रूप से चंद्र अर्घ्य देने से घर के वातावरण में स्थिरता और सौहार्द बढ़ता है।

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पूर्णिमा के दिन हल्दी और पानी का पेस्ट बनाकर घर के मुख्य द्वार पर स्वास्तिक या ‘ॐ’ बनाना भी सकारात्मक ऊर्जा आकर्षित करने का पुराना उपाय है। हल्दी को समृद्धि का प्रतीक माना गया है और इसे घर के प्रवेश द्वार पर लगाना शुभ संकेतों को आमंत्रित करने जैसा माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि इस क्रिया से घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश रुकता है और सकारात्मकता बढ़ती है, जिससे पारिवारिक वातावरण स्थिर बनता है और कार्यों में सफलता मिलती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर यह प्रक्रिया सुबह के समय करने पर विशेष फलदायी मानी जाती है।

इसी तरह कलावे (मौली) की बाती बनाकर माता लक्ष्मी के सामने दीपक जलाने की परंपरा बेहद प्रचलित है। लाल और पीले रंग के मिश्रित धागे को कल्याणकारी माना जाता है। इस धागे की बाती से जलाया गया दीपक मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने वाला माना जाता है। कहा जाता है कि इससे घर में स्थायी समृद्धि बनी रहती है और धन की हानि रुकती है। कई परिवार शुक्रवार और पूर्णिमा दोनों दिन इस विधि को नियमित रूप से करते हैं और इसे सुख-शांति का आधार मानते हैं।

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धार्मिक मान्यताओं में दान का महत्व सर्वोपरि बताया गया है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर असमर्थ और जरूरतमंद लोगों को भोजन कराना विशेष पुण्य कर्म माना गया है। कहा जाता है कि माता लक्ष्मी वहीं निवास करती हैं जहाँ करुणा और सेवा की भावना होती है। इस दिन दीपदान करने की भी परंपरा है। मंदिरों में, पीपल वृक्ष के पास या जल के किसी स्रोत के किनारे दीपदान करने से दरिद्रता दूर होने का विश्वास लोकआस्था में गहराई से जुड़ा हुआ है।

कई परिवार इस दिन सत्यनारायण कथा का आयोजन भी करते हैं। यह कथा विष्णु-लक्ष्मी की संयुक्त उपासना का रूप मानी जाती है। कथा के माध्यम से घर-परिवार की उन्नति, मानसिक शांति और कार्यों की बाधा हटने की कामना की जाती है। माना जाता है कि इस कथा के आयोजन से न केवल परिवार में सद्भाव बढ़ता है, बल्कि गृहस्थ जीवन में आने वाली अनपेक्षित कठिनाइयाँ भी कम होने लगती हैं। समाज के वरिष्ठ जनों का कहना है कि सत्यनारायण कथा घरों में संस्कार, अनुशासन और समृद्धि का वातावरण निर्मित करती है।

पूरे मार्गशीर्ष मास में भक्ति, दान और संयम को सबसे महत्वपूर्ण गुण माना गया है, और इसी का प्रतिफल है कि पूर्णिमा के दिन लोग अधिक सजग होकर आध्यात्मिक उपायों की ओर आकर्षित होते हैं। शहरों से लेकर गांवों तक मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ जाती है और कई परिवार अपने घरों में शाम के समय विशेष पूजन करते हैं। इस वर्ष पूर्णिमा का चंद्रोदय शाम 4 बजकर 35 मिनट पर होगा, और पंडितों का कहना है कि इसी समय अर्घ्य देना सबसे अधिक शुभ माना गया है। ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि मार्गशीर्ष पूर्णिमा अपनी प्रकृति में ऐसी है कि इसमें किया गया पूजन मन और चित्त को तुरंत शांत करने वाला होता है और परिवार में सौहार्द और स्थिरता का संचार करता है।

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लोकआस्था चाहे जितनी प्राचीन क्यों न हो, उसका सामाजिक मनोविज्ञान आज भी उतना ही जीवंत है। परिवारों में यह विश्वास गहराई से रचा-बसा है कि जीवन के तनाव, आर्थिक तंगी या अचानक आने वाली कठिनाइयों के समय आध्यात्मिक सहारा मन में सकारात्मकता और साहस पैदा करता है। यही कारण है कि मार्गशीर्ष पूर्णिमा के उपाय केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा हैं जो पीढ़ियों से लोगों को आश्वस्ति और विश्वास प्रदान करती रही हैं।

जैसे-जैसे 4 दिसंबर की तिथि निकट आती जा रही है, लोग एक बार फिर इन पारंपरिक उपायों को अपनाने की तैयारी में जुट गए हैं। चाहे वह चंद्रमा को अर्घ्य देने की सरल विधि हो या घर के द्वार पर स्वास्तिक बनाने की रस्म, चाहे कमलगट्टे की माला चढ़ाना हो या लक्ष्मी के दीप में कलावे की बाती जलाना—हर कदम के पीछे एक ही आस्था जुड़ी है कि इस पावन दिन पर किया गया छोटा सा प्रयास भी जीवन में सुख, स्थिरता और आर्थिक समृद्धि के नए रास्ते खोल सकता है।

मार्गशीर्ष मास की यह पूर्णिमा एक बार फिर लोगों को वही संदेश दे रही है—श्रद्धा, संयम और सकारात्मकता के साथ किया गया हर अच्छा कर्म किसी न किसी रूप में फल अवश्य देता है। और संभवतः यही कारण है कि भारत के घर-आंगनों में इस दिन जलने वाला एक छोटा-सा दीपक भी उम्मीद की एक बड़ी किरण बनकर चमक उठता है।

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