नई दिल्ली . भारत में लागू होने जा रहे नए श्रम कानून ने कॉरपोरेट सेक्टर में हलचल मचा दी है। वर्षों से चली आ रही उस व्यवस्था पर सरकार ने अब पूर्ण विराम लगा दिया है, जिसमें कर्मचारी को इस्तीफा देने के बाद अपना फुल एंड फाइनल सेटलमेंट पाने के लिए हफ्तों—कई बार महीनों—तक इंतज़ार करना पड़ता था। नए नियम के अनुसार, किसी भी कर्मचारी के इस्तीफा देने, बर्खास्त होने, छंटनी होने या कंपनी बंद होने की स्थिति में दो वर्किंग डे के भीतर उसके सभी बकाये का भुगतान अनिवार्य कर दिया गया है। यही दो दिन की शर्त कंपनियों और उनके एचआर विभागों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर सामने आई है।
कॉरपोरेट दुनिया में यह खबर मिनटों में वायरल हो गई और सोशल मीडिया पर भी इसकी खूब चर्चा हो रही है, क्योंकि इसे भारत के श्रमिक अधिकारों में दशकों बाद आया सबसे बड़ा सुधार माना जा रहा है। खासकर निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए, जो अक्सर इस्तीफे के बाद 45 से 60 दिनों तक भुगतान का इंतज़ार करते रहे हैं, यह नियम बेहद राहत देने वाला है।
विशेषज्ञ बताते हैं कि उद्योग-धंधों में अब तक भुगतान के लेट होने को एक “पुरानी संस्कृति” की तरह स्वीकार लिया गया था। लेकिन 2019 की मजदूरी संहिता की धारा 17(2) के अंतर्गत लागू इस नए प्रावधान ने साफ कर दिया है कि अब न देरी चलेगी, न बहाना। कर्मचारी के आखिरी कार्य दिवस से 48 घंटे के भीतर पूरा सेटलमेंट देना ही होगा।
दिलचस्प बात यह है कि इस तरह का नियम पुराने कानूनों में भी मौजूद था, लेकिन उसका दायरा बेहद सीमित था। पुराने Payment of Wages Act 1936 के तहत यह प्रावधान केवल उन कर्मियों पर लागू होता था जिन्हें कंपनी नौकरी से निकाल देती थी और जिनका वेतन 24,000 रुपये प्रतिमाह से कम होता था। यानी अधिकांश प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारी पूरी तरह इस दायरे से बाहर थे।
नया कोड इस सीमा को खत्म करता है और सभी कर्मचारियों को एक समान सुरक्षा देता है।
लेकिन इस नियम से सबसे अधिक दबाव छोटे और मध्यम दर्जे की कंपनियों पर आने वाला है, जिनके पास न बड़ा एचआर सेटअप होता है और न ही हाई-टेक पेरोल सिस्टम। अचानक फुल एंड फाइनल को 48 घंटे में पूरा करने की बाध्यता उनके लिए प्रशासनिक और वित्तीय दोनों जटिलताएँ बढ़ा देगी। एक HR विशेषज्ञ के अनुसार, “छोटी कंपनियों में तो अक्सर HR, Payroll, Finance, IT सब कुछ दो–तीन लोग ही संभालते हैं। ऐसे में इस्तीफे के तुरंत बाद पूरी राशि निकालना आसान नहीं होगा।”
वहीं, बड़ी कंपनियों को भी अपने वर्कफ्लो, डेटा इंटीग्रेशन और सिस्टम अपडेट करने पड़ेंगे। नेक्सडिग्म के निदेशक रामचंद्रन कृष्णमूर्ति के अनुसार, HRMS सिस्टम के बिना यह समयसीमा पालना मुश्किल होगा।
उन्हें पेरोल, संपत्ति प्रबंधन, उपस्थिति, लीव रिकॉर्ड और फाइनेंस को एकीकृत प्लेटफॉर्म पर लाना ही होगा, ताकि कर्मचारी के आखिरी दिन ही उसका पूरा बकाया कैलकुलेट और प्रोसेस हो सके।
नए कोड में देरी पर सजा भी उतनी ही कड़ी है। दो दिन की समय सीमा का पालन न करने पर कंपनी पर 50,000 रुपये तक जुर्माना लगाया जा सकता है। सिर्फ इतना ही नहीं, किसी भी श्रम कोड के उल्लंघन पर अलग से 20,000 रुपये तक के दंड का प्रावधान भी है। और यदि कंपनी बार-बार नियमों की अवहेलना करती है, तो कार्रवाई और भी सख्त होगी।
सरकार का दावा है कि इन प्रावधानों का लक्ष्य कर्मचारियों की वित्तीय सुरक्षा को मजबूत करना है—खासकर उन स्थितियों में जब नौकरी अचानक छूट जाए और तुरंत पैसों की ज़रूरत पड़े। फुल एंड फाइनल में लंबा इंतज़ार अक्सर कर्मचारियों को कर्ज लेने या आर्थिक संकट झेलने पर मजबूर कर देता है।
अब सरकार चाहती है कि “जॉब लॉस का झटका लगे, लेकिन आर्थिक झटका न लगे।”
नई व्यवस्था को लेकर कर्मचारी उत्साहित हैं, लेकिन उद्योग जगत में चिंताएँ भी कम नहीं हैं। कंपनियां कह रही हैं कि दो दिन की समयसीमा “अत्यधिक कम” है और इससे उनके ऑपरेशनल सिस्टम पर भारी दबाव पड़ेगा। लेकिन सरकार का रुख स्पष्ट है—“कर्मचारी के अधिकारों पर देरी अब बर्दाश्त नहीं होगी।”
कुल मिलाकर, नया श्रम कानून भारत की कार्यस्थल संस्कृति में एक बड़े बदलाव का संकेत देता है। यह व्यवस्था न केवल कॉरपोरेट सेक्टर को अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी बनाएगी, बल्कि कर्मचारियों को सुरक्षा और भरोसा भी देगी कि नौकरी छोड़ने के बाद उनका हक़ अब टलने वाला नहीं है।
नियम लागू होने के बाद देखना होगा कि कंपनियां इस नई चुनौती का सामना कैसे करती हैं—लेकिन अभी के लिए, सोशल मीडिया की भाषा में कहें तो—“48 Hours Rule ने HR विभाग में सचमुच हलचल मचा दी है।”

































