नई दिल्ली: लक्जरी फैशन ब्रांड प्रादा (Prada) एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार अपने डिज़ाइन के लिए नहीं, बल्कि एक बेहद साधारण एक्सेसरी की अविश्वसनीय कीमत के लिए। वर्ष की शुरुआत में लगभग $1,400 (लगभग ₹1.2 लाख) में भारत की पारंपरिक 'कोल्हापुरी चप्पल' का महंगा संस्करण बेचकर विवादों में घिरे इस इतालवी फैशन हाउस ने अब एक साधारण से 'सेफ्टी पिन' (Safety Pin) ब्रोच को $775, यानी भारतीय मुद्रा में ₹38,000 से अधिक की कीमत पर बाज़ार में उतारकर लोगों के गुस्से और निराशा को हवा दे दी है।
प्रादा की वेबसाइट पर सूचीबद्ध, 'गोल्ड-कलर मेटल ब्रोच' नामक यह वस्तु मात्र एक बड़ा सेफ्टी पिन है, जिसके लिए ग्राहकों को $775 (लगभग ₹38,662.72) चुकाने होंगे। सोशल मीडिया पर एक यूज़र ने इस असामान्य रूप से ऊँची कीमत पर अपनी निराशा व्यक्त करते हुए इसे 'धन का दुरुपयोग' बताया। यूज़र ने सवाल किया, "आइए प्रादा के नवीनतम उत्पाद की जाँच करें। यह $775 का सेफ्टी पिन ब्रोच है। मैं एक बार फिर अमीर लोगों से पूछूंगी: आप अपने पैसे के साथ क्या कर रहे हैं? क्योंकि अगर आप कुछ नहीं सोच पा रहे हैं, तो मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ कि हम बाकी लोग सोच सकते हैं।" यूज़र ने आगे अपनी हताशा व्यक्त करते हुए कहा कि प्रादा की इन हरकतों पर उन्हें हँसना चाहिए या रोना, यह अक्सर उनका जवाब होता है।
indianexpress.com ने इस वायरल दावे की पुष्टि के लिए प्रादा की आधिकारिक वेबसाइट की जाँच की और पाया कि यह 'गोल्ड-कलर मेटल ब्रोच' वास्तव में 380 EUR (लगभग ₹38,662.72) में सूचीबद्ध है। इसकी अत्यधिक कीमत का कोई तार्किक कारण खोजने के लिए जब उत्पाद विवरण (Product Details) खंड को देखा गया, तो वहाँ केवल इतना ही लिखा था: "समकालीन शैली के साथ इस धातु के ब्रोच को न्यूनतम रेखाएं परिभाषित करती हैं, जो उत्कीर्ण अक्षरों वाले लोगो से सजा है।" इस विवरण में न तो किसी कीमती धातु का उल्लेख है, न ही किसी विशेष शिल्प कौशल का, सिवाय ब्रांड के उत्कीर्ण लोगो के, जो स्पष्ट रूप से इसकी एकमात्र 'लग्जरी वैल्यू' प्रतीत होती है।
यह पहला मौका नहीं है जब प्रादा ने 'महंगे साधारण सामान' की इस बहस को छेड़ा है। इसी साल की शुरुआत में, जब प्रादा ने भारतीय फुटवियर 'कोल्हापुरी चप्पल' के अपने संस्करण को $1,400 की भारी कीमत पर बेचा था, तब भी देश भर में लोगों ने ब्रांड पर संस्कृति को चुराने और उसकी अत्यधिक कीमत वसूलने का आरोप लगाया था। इस बार, यह विवाद भारत से बाहर भी फैल गया है, जहाँ अंतरराष्ट्रीय यूज़र्स भी एक साधारण सेफ्टी पिन की कीमत में एक महीने का किराया या आवश्यक किराने का सामान खरीदने की बात कहकर ब्रांड की आलोचना कर रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि प्रादा जैसे लक्जरी ब्रांड जानबूझकर ऐसे 'साधारण' उत्पादों को बेहिसाब कीमतों पर पेश करते हैं। यह रणनीति केवल अति-धनवान ग्राहकों के लिए विशिष्टता का भ्रम पैदा करने के लिए होती है, जहाँ वे केवल उस 'लोगो' और 'ब्रांडिंग' के लिए भारी कीमत चुकाते हैं, जो उन्हें भीड़ से अलग महसूस कराता है। यह घटना एक बार फिर दिखाती है कि लक्जरी फैशन उद्योग अक्सर ऐसे उत्पादों की कीमत सामग्री की लागत के बजाय ब्रांड मूल्य और सामाजिक प्रतिष्ठा के आधार पर तय करता है। फिलहाल, सोशल मीडिया पर प्रादा के इस सेफ्टी पिन की तस्वीरें वायरल हैं और यूज़र्स इसे 'पूंजीवादी मज़ाक' बताकर मज़ाक उड़ा रहे हैं।
'कोल्हापुरी' चप्पल विवाद
इतालवी लक्जरी फैशन ब्रांड प्रादा (Prada) द्वारा ₹38,000 से अधिक में सेफ्टी पिन बेचने के हालिया विवाद से पहले, यह ब्रांड भारतीय पारंपरिक शिल्प की नकल और उसका असाधारण मूल्य निर्धारण करने को लेकर एक बड़े सांस्कृतिक विनियोग विवाद में फँस चुका था। यह विवाद भारत की सदियों पुरानी, हस्तनिर्मित 'कोल्हापुरी चप्पल' से जुड़ा था, जिसे प्रादा ने अपने फैशन शो में पेश किया और उसकी कीमत लगभग ₹1.2 लाख रखी, जबकि इसकी मूल कीमत भारतीय बाज़ार में मात्र ₹250 से ₹1000 तक होती है।
विवाद तब शुरू हुआ जब प्रादा ने मिलान फैशन वीक में अपने 'मेन स्प्रिंग/समर 2026' कलेक्शन में 'लेदर सैंडल' नाम से फुटवियर प्रदर्शित किए। ये सैंडल डिज़ाइन और बनावट में हूबहू महाराष्ट्र और कर्नाटक के कारीगरों द्वारा बनाई जाने वाली पारंपरिक कोल्हापुरी चप्पलों से मिलते थे। हैरानी की बात यह थी कि ब्रांड ने अपने किसी भी उत्पाद विवरण या शो नोट्स में इन चप्पलों के भारतीय मूल, सांस्कृतिक विरासत या शिल्पकारों को कोई श्रेय नहीं दिया।
इस घटना ने तुरंत भारतीय सोशल मीडिया यूज़र्स, डिज़ाइनरों, और महाराष्ट्र के स्थानीय कारीगर समुदायों में भारी आक्रोश पैदा कर दिया। लोगों ने प्रादा पर सांस्कृतिक चोरी और भारतीय कारीगरों की मेहनत का लाभ उठाने का आरोप लगाया, जिन्होंने पीढ़ियों से इस शिल्प को जीवित रखा है। यह आक्रोश इसलिए भी अधिक था क्योंकि कोल्हापुरी चप्पल को भारत सरकार द्वारा भौगोलिक संकेत (GI) टैग मिला हुआ है, जो यह सुनिश्चित करता है कि यह उत्पाद अपनी विशिष्ट पहचान और गुणवत्ता के लिए उस विशेष क्षेत्र (कोल्हापुर) से जुड़ा हुआ है।
महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर (MACCIA) ने प्रादा को औपचारिक रूप से पत्र लिखकर ब्रांड की इस हरकत की कड़ी आलोचना की। कोल्हापुर के कारीगरों के एक प्रतिनिधिमंडल ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से भी मुलाकात की और मांग की कि प्रादा पर कानूनी कार्रवाई की जाए और शिल्पकारों को उनकी कला का उचित श्रेय और लाभ मिलना सुनिश्चित हो।
बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय दबाव और आलोचना के बाद, प्रादा ने आखिरकार MACCIA को दिए अपने जवाब में स्वीकार किया कि उनके सैंडल का डिज़ाइन "सदियों पुरानी भारतीय हस्तनिर्मित चप्पलों से प्रेरित" था। ब्रांड ने 'जिम्मेदार डिज़ाइन प्रथाओं' और 'स्थानीय भारतीय कारीगर समुदायों के साथ सार्थक संवाद' स्थापित करने की प्रतिबद्धता भी व्यक्त की। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, प्रादा की एक तकनीकी टीम ने कोल्हापुर का दौरा भी किया, ताकि विनिर्माण प्रक्रिया को समझा जा सके और भविष्य में भारतीय कारीगरों के साथ साझेदारी में एक सीमित संस्करण (limited edition) लॉन्च करने की संभावना तलाशी जा सके।
यह विवाद फैशन की दुनिया में एक बड़ा सवाल छोड़ गया: क्या लक्जरी ब्रांड्स को पारंपरिक और कारीगर समुदायों की कलाकृतियों से प्रेरणा लेने का अधिकार है, जब वे उन्हें कोई श्रेय या वित्तीय लाभ दिए बिना, उनकी कीमत सौ गुना बढ़ा देते हैं? ₹1.2 लाख की चप्पल और ₹38,000 के सेफ्टी पिन की हालिया घटनाएँ इस बात का स्पष्ट उदाहरण हैं कि प्रादा जैसे ब्रांड के लिए ब्रांडिंग और विशिष्टता का मूल्य, उत्पाद की मूल लागत और सांस्कृतिक गरिमा से कहीं अधिक है।












