शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव के बीच निवेशकों की सांसें थमीं

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मुंबई. हफ्ते के आखिरी कारोबारी दिन शनिवार, 8 नवंबर 2025 को भारतीय शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव के बीच सत्र के समापन पर माहौल कुछ थमा-थमा सा रहा. सप्ताह भर चले बिकवाली और विदेशी निवेश के उतार-चढ़ाव के बाद अब निगाहें अगले सप्ताह की चाल पर टिकी हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि घरेलू निवेशक जहां रिकॉर्ड मुनाफे के बाद सतर्क रुख अपनाए हुए हैं, वहीं विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) एक बार फिर भारतीय बाजार में नई सक्रियता दिखा रहे हैं. यही कारण है कि बाजार में एक ओर कमजोरी का दबाव नजर आया, तो दूसरी ओर उम्मीद की नई किरण भी दिखी.

पिछले एक सप्ताह में बीएसई 500 की 347 कंपनियों में 12 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की गई, जिससे दलाल स्ट्रीट का मूड लाल रंग में रंगा रहा. आईटी और पावर सेक्टर पर सबसे अधिक दबाव देखा गया, जबकि बैंकिंग और वित्तीय शेयरों में आंशिक मजबूती बनी रही. निफ्टी 50 शुक्रवार को 25,500 के नीचे बंद हुआ, वहीं सेंसेक्स में भी 300 अंकों की गिरावट के साथ समापन हुआ. हालांकि, बाजार विश्लेषक इसे स्वाभाविक सुधार मान रहे हैं. उनका कहना है कि पिछले कुछ सप्ताह में तेज तेजी के बाद यह गिरावट बाजार के लिए आवश्यक ब्रेक जैसी है.

रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर महीने में विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार में 1,46,100 करोड़ रुपये का निवेश किया, जिसमें लगभग 91 प्रतिशत पूंजी वित्तीय क्षेत्र में आई. यह संकेत है कि अंतरराष्ट्रीय निवेशक भारतीय बैंकिंग सेक्टर को लेकर आशावादी हैं. उनका मानना है कि घरेलू उपभोग और ऋण वृद्धि की मजबूत रफ्तार भारत को एशियाई बाजारों में सबसे आकर्षक बनाती है.

इसी बीच, एचएसबीसी ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में कहा है कि भारत एआई आधारित शेयरों से भरे हुए वैश्विक पोर्टफोलियो के लिए सबसे उपयुक्त डाइवर्सिफिकेशन मार्केट है. बैंक ने वर्ष 2026 के अंत तक सेंसेक्स का लक्ष्य 94,000 तय किया है. इससे यह स्पष्ट होता है कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान भारत की दीर्घकालिक आर्थिक क्षमता पर भरोसा बनाए हुए हैं.

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हालांकि, अल्पकालिक परिदृश्य में बाजार के लिए चुनौतियां कम नहीं हैं. सप्ताह के दौरान आईटी और ऊर्जा शेयरों में बिकवाली तेज रही. विश्लेषकों का कहना है कि ग्लोबल मंदी की आशंका और अमेरिकी बाजारों में ब्याज दरों की दिशा को लेकर बनी अनिश्चितता ने निवेशकों को सतर्क कर दिया है. वहीं घरेलू स्तर पर आगामी औद्योगिक उत्पादन (आईआईपी) के आंकड़े और आरबीआई की मौद्रिक नीति समीक्षा पर भी बाजार की नजरें रहेंगी.

निफ्टी के लिए तकनीकी स्तरों की बात करें तो विशेषज्ञों का कहना है कि 25,300 से 25,400 का स्तर मजबूत सपोर्ट का काम कर सकता है, जबकि 25,700 से 25,800 का दायरा फिलहाल रेजिस्टेंस जोन के रूप में काम कर रहा है. अगर निफ्टी इस दायरे को पार नहीं कर पाता, तो आने वाले सप्ताह में हल्की गिरावट देखी जा सकती है. दूसरी ओर, यदि इसमें तेजी आती है और निफ्टी 25,800 के ऊपर क्लोजिंग देता है, तो बाजार में फिर से नई रफ्तार देखी जा सकती है.

बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले सप्ताह में बैंकिंग, फाइनेंशियल सर्विसेज, और तेल-गैस सेक्टर में कुछ सकारात्मक मूवमेंट देखने को मिल सकता है. इन क्षेत्रों में विदेशी निवेशकों की बढ़ती दिलचस्पी और घरेलू मांग की मजबूती इसे मजबूती दे सकती है. वहीं आईटी और पावर शेयरों में अभी भी दबाव बना रह सकता है.

रिलायंस सिक्योरिटीज के मार्केट एनालिस्ट अमन चौधरी का कहना है, “भारतीय बाजार फिलहाल अपने सपोर्ट ज़ोन पर टिके हुए हैं. विदेशी निवेशकों की वापसी से सेंटीमेंट सकारात्मक हुआ है, लेकिन ग्लोबल कारक अब भी बड़ा असर डाल रहे हैं. अगले सप्ताह बाजार की चाल काफी हद तक अमेरिका के मुद्रास्फीति आंकड़ों और डॉलर इंडेक्स पर निर्भर करेगी.”

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विदेशी बाजारों से मिले संकेतों की बात करें तो अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में बदलाव न करने का संकेत दिया है. इससे उभरते बाजारों में पूंजी प्रवाह की संभावना बनी हुई है. वहीं कच्चे तेल की कीमतों में आई नरमी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए राहत लेकर आई है. इससे आने वाले हफ्तों में रुपये पर दबाव कम हो सकता है और मुद्रास्फीति भी नियंत्रण में रह सकती है.

इसके साथ ही, निवेशकों के बीच यह चर्चा भी गर्म है कि क्या बाजार अब भी ओवरवैल्यूड है. कुछ विश्लेषक मानते हैं कि वर्तमान मूल्यांकन उच्च स्तर पर है और छोटे निवेशकों को सतर्क रहना चाहिए. स्मॉल और मिडकैप शेयरों में पिछले कुछ महीनों की तेज बढ़त के बाद अब मुनाफावसूली की संभावना बढ़ी है.

इक्विटी विश्लेषक निधि अग्रवाल का कहना है, “यह समय निवेशकों के लिए संतुलन साधने का है. जिनके पास दीर्घकालिक दृष्टिकोण है, उन्हें मजबूत फंडामेंटल वाली कंपनियों में बने रहना चाहिए, जबकि शॉर्ट टर्म ट्रेडर्स को पोजीशन बनाने से पहले तकनीकी स्तरों पर ध्यान देना चाहिए.”

पिछले कुछ सप्ताह में बाजार की चौड़ाई कमजोर हुई है, यानी बढ़त लेने वाले शेयरों की तुलना में गिरने वाले शेयरों की संख्या अधिक रही है. यह संकेत है कि बाजार में भागीदारी सीमित हो रही है. हालांकि, म्यूचुअल फंडों से लगातार हो रहा इनफ्लो बाजार को नीचे गिरने से रोक रहा है. खुदरा निवेशक अब भी व्यवस्थित निवेश योजना (SIP) के जरिए इक्विटी बाजार में भरोसा बनाए हुए हैं.

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विश्लेषकों का कहना है कि अगले सप्ताह के लिए निवेश रणनीति सावधानी के साथ अवसर खोजने की होनी चाहिए. खासकर बैंकिंग और फाइनेंशियल सेक्टर में ब्रेकआउट की स्थिति बनती दिख रही है. वहीं रियल एस्टेट, इंफ्रास्ट्रक्चर और ऑटो सेक्टर में भी दीर्घकालिक निवेशकों के लिए अवसर हैं.

बाजार के जानकारों का यह भी कहना है कि अब निवेशकों को जल्दबाजी में किसी भी गिरावट को घबराहट के रूप में नहीं लेना चाहिए. भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत है, सरकारी नीतियां स्थिर हैं, और घरेलू खपत लगातार बढ़ रही है. ऐसे में किसी भी गिरावट को लंबी अवधि के निवेश के अवसर के रूप में देखा जा सकता है.

दलाल स्ट्रीट पर हलचल भले ही इस सप्ताह मंद पड़ी हो, लेकिन निवेशकों का उत्साह अभी भी बरकरार है. विदेशी निवेश की वापसी, बैंकिंग क्षेत्र की मजबूती और आर्थिक मोर्चे पर स्थिरता ने बाजार को उम्मीद दी है कि आने वाले सप्ताह में दिशा बदल सकती है. हालांकि, फिलहाल हर निवेशक का ध्यान यही है कि सोमवार को बाजार किस मूड में खुलता है – क्या फिर से तेजी लौटेगी या गिरावट की लहर जारी रहेगी.

बाजार के इस मोड़ पर हर नजर सेंसेक्स और निफ्टी पर टिकी है. निवेशक जानते हैं कि अगले कुछ दिन भारतीय शेयर बाजार के लिए निर्णायक साबित हो सकते हैं. फिलहाल तो दलाल स्ट्रीट पर सन्नाटा जरूर है, लेकिन उस सन्नाटे के पीछे भविष्य की बड़ी हलचल छिपी हुई है — और निवेशकों के चेहरे पर यही सवाल तैर रहा है कि “अगला हफ्ता किसका होगा — बुल्स का या बियर्स का?”

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