राष्ट्रीय धार्मिक डेस्क: हिन्दू धर्म में काल के अधिष्ठाता और भगवान शिव के उग्र रूप माने जाने वाले काल भैरव को समर्पित अति महत्वपूर्ण पर्व भैरव अष्टमी इस वर्ष 12 नवंबर, बुधवार को धूमधाम से मनाया जाएगा। यह पावन दिन भगवान भैरव के प्राकट्य दिवस के रूप में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान भैरव की विधिवत पूजा-अर्चना करने से न केवल व्यक्ति को सभी प्रकार के भय, शत्रु बाधा और दुर्भाग्य से मुक्ति मिलती है, बल्कि काल भी उसके अधीन हो जाता है। तंत्र-मंत्र साधना और दैवीय शक्ति प्राप्त करने वालों के लिए यह दिन विशेष फलदायी माना जाता है, क्योंकि भैरव स्वयं 'क्षेत्रपाल' यानी स्थान के रक्षक हैं और इनकी कृपा से नकारात्मक शक्तियां दूर रहती हैं। संपूर्ण देश में, खासकर काशी (वाराणसी) में, जहाँ बाबा विश्वनाथ के मुख्य द्वार पर भैरव विराजमान हैं, इस पर्व का विशेष महत्व है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भैरव शिव का ही रौद्र और संहारक स्वरूप हैं, जिनका प्राकट्य अहंकार को नष्ट करने के लिए हुआ था। इनकी पूजा करने से शिव की प्रसन्नता सहज ही प्राप्त होती है, और इसीलिए भैरव को शिव का 'रुद्र अवतार' कहा जाता है। भैरव अष्टमी पर भक्तगण विशेष रूप से काले तिल, उड़द की दाल, सरसों का तेल और मदिरा (तंत्र साधना में) अर्पित करते हैं। मध्यरात्रि में पूजा करने का विधान है, जिसे 'काल पूजा' कहा जाता है। मान्यता है कि इस समय की गई पूजा से भैरव अति शीघ्र प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं। इसके साथ ही, भैरवनाथ को प्रसन्न करने के लिए उनके प्रिय वाहन श्वान (कुत्ता) को भोजन कराने का भी विधान है। इस दिन कुत्तों को रोटी, दूध या मिठाई खिलाना अत्यंत शुभ माना जाता है, जिससे सभी तरह की बाधाएं दूर होती हैं।
भगवान भैरव की पूजा आठ प्रमुख रूपों में की जाती है, जिन्हें अष्ट भैरव कहा जाता है। प्रत्येक रूप विशेष मनोकामना की पूर्ति और अलग-अलग कष्टों से मुक्ति प्रदान करता है। इन आठ रूपों की उपासना से मिलने वाले फल और उनके स्वरूपों का वर्णन धार्मिक ग्रंथों में विस्तार से मिलता है, जिनकी पूजा का महत्व भैरव अष्टमी पर कई गुना बढ़ जाता है।
कपाल भैरव इस अष्ट भैरव श्रृंखला में महत्वपूर्ण हैं। इस रूप में भगवान का शरीर चमकीला है और उनकी सवारी हाथी है। कपाल भैरव अपने चार हाथों में त्रिशूल, तलवार, शस्त्र और एक पात्र धारण करते हैं। जिन लोगों के कार्य कानूनी दांवपेच या मुकदमों में अटक गए हैं, या जिनके कार्य बार-बार रुक जाते हैं, उन्हें कपाल भैरव की पूजा-अर्चना करने से विशेष लाभ मिलता है। माना जाता है कि इनकी कृपा से कानूनी कार्रवाइयाँ बंद हो जाती हैं और रुके हुए कार्य पूरे होते हैं।
अगला रूप है क्रोध भैरव, जिनका शरीर गहरे नीले रंग का है और उनकी तीन आँखें हैं। इनका वाहन गरुड़ है और इन्हें दक्षिण-पश्चिम दिशा का स्वामी माना जाता है। जीवन में अत्यधिक संघर्ष, परेशानी और बुरे वक्त से जूझ रहे लोगों के लिए क्रोध भैरव की पूजा वरदान साबित होती है। इनकी पूजा-अर्चना करने से मनुष्य को सभी विपत्तियों और बुरे वक्त से लड़ने की अपार क्षमता प्राप्त होती है, और वह साहस के साथ चुनौतियों का सामना कर पाता है।
असितांग भैरव को कलात्मक क्षमताओं और ज्ञान की वृद्धि के लिए पूजा जाता है। इन्होंने गले में सफेद कपालों की माला पहन रखी है और हाथ में भी एक कपाल धारण किए हुए हैं। तीन आँखों वाले इस भैरव की सवारी हंस है, जो ज्ञान और विवेक का प्रतीक है। असितांग भैरव की पूजा-अर्चना करने से मनुष्य में निहित कलात्मक क्षमताएँ विकसित होती हैं, जिससे साहित्य, संगीत और ललित कला के क्षेत्र में सफलता मिलती है।
शत्रु बाधा और विजय प्राप्ति के लिए चंद भैरव की पूजा का विधान है। इस रूप में भगवान की तीन आँखें हैं और उनकी सवारी मोर है, जो चंचलता और गति का प्रतीक है। चंद भैरव एक हाथ में तलवार, दूसरे में पात्र, तीसरे में तीर और चौथे हाथ में धनुष लिए हुए हैं। इनकी पूजा करने से भक्तों को शत्रुओं पर विजय मिलती है और हर बुरी परिस्थिति या प्रतिस्पर्धा से लड़ने की शक्ति और क्षमता आती है।
विद्यार्थियों और ज्ञान की तलाश में जुटे साधकों के लिए गुरु भैरव की उपासना अत्यंत फलदायी है। यह भगवान का नग्न रूप है, जिनके हाथ में कपाल, कुल्हाड़ी और तलवार है, और इनकी सवारी बैल है। गुरु भैरव के शरीर पर सर्प लिपटा हुआ है। गुरु भैरव की पूजा करने से अच्छी विद्या, उच्च शिक्षा और श्रेष्ठ ज्ञान की प्राप्ति होती है।
संहार भैरव का स्वरूप नग्न है, और उनके सिर पर कपाल स्थापित है। इनकी तीन आँखें हैं और वाहन कुत्ता है। संहार भैरव आठ भुजाओं से युक्त हैं और उनके शरीर पर साँप लिपटा हुआ है। इनकी पूजा करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। यह रूप मुक्ति और पापों के विनाश का प्रतीक है।
मानव मन की नकारात्मकता और बुराइयों को दूर करने के लिए उन्मत्त भैरव की पूजा की जाती है। यह शांत स्वभाव का प्रतीक है। इनकी पूजा-अर्चना करने से मनुष्य की सारी नकारात्मकता और बुराइयां खत्म हो जाती हैं। भैरव के इस रूप का स्वरूप भी शांत और सुखद है। उन्मत भैरव के शरीर का रंग हल्का पीला है और उनका वाहन घोड़ा है।
अंत में, भीषण भैरव की पूजा-अर्चना विशेष रूप से बुरी आत्माओं, भूतों और नकारात्मक ऊर्जाओं से छुटकारा पाने के लिए की जाती है। भीषण भैरव अपने एक हाथ में कमल, दूसरे में त्रिशूल, तीसरे हाथ में तलवार और चौथे में एक पात्र पकड़े हुए हैं। इनका वाहन शेर है, जो शक्ति और निर्भीकता का प्रतीक है। इनकी पूजा करने से भक्त को तंत्र-मंत्र और बुरी शक्तियों के भय से मुक्ति मिलती है।
भैरव अष्टमी पर ये आठ रूप अपने भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करने और उन्हें जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति दिलाने के लिए तत्पर रहते हैं।

































