सौर और पवन ऊर्जा ने थाम दी कोयले की रफ्तार जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली उत्पादन पहली बार ठहरा

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दुनिया की ऊर्जा कहानी में 2025 एक मील का पत्थर साबित हो रहा है. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा थिंक टैंक एम्बर की नई रिपोर्ट ने वैश्विक बिजली उत्पादन के मोर्चे पर एक ऐतिहासिक बदलाव की तस्वीर पेश की है. रिपोर्ट के मुताबिक, इस वर्ष के पहले नौ महीनों में जितनी नई बिजली मांग बढ़ी, उतनी ही मांग सौर और पवन ऊर्जा से पूरी हो गई. इसका सीधा अर्थ यह है कि 2025 में पहली बार जीवाश्म ईंधन से बिजली उत्पादन में कोई बढ़ोतरी दर्ज नहीं हुई. दशकों से ऊर्जा वृद्धि का पर्याय रहे कोयला, तेल और गैस के लिए यह बदलाव केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि वैश्विक ऊर्जा व्यवस्था के बदलते चरित्र का संकेत माना जा रहा है.

एम्बर की ताज़ा विश्लेषण रिपोर्ट कहती है कि जनवरी से सितंबर 2025 के बीच सौर ऊर्जा उत्पादन में 31 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिससे 498 टेरावॉट-घंटा बिजली बनी. पवन ऊर्जा ने भी मजबूत भूमिका निभाई और 7.6 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 137 टेरावॉट-घंटा अतिरिक्त बिजली जोड़ी. दोनों स्रोतों ने मिलकर 635 टेरावॉट-घंटा की अतिरिक्त स्वच्छ बिजली पैदा की, जबकि इसी अवधि में वैश्विक बिजली मांग मात्र 603 टेरावॉट-घंटा बढ़ी. यह पहली दफा हुआ है जब स्वच्छ ऊर्जा की वृद्धि मांग से अधिक रही, और पारंपरिक जीवाश्म ईंधनों के लिए ऊर्जा बाज़ार में नई जगह बनाना संभव नहीं हुआ.

रिपोर्ट बताती है कि सौर और पवन ऊर्जा अब दुनिया की कुल बिजली का 17.6 प्रतिशत योगदान दे रहे हैं, जो पिछले वर्ष की तुलना में 2.4 प्रतिशत की बढ़त है. जब सभी स्वच्छ स्रोतों—जलविद्युत, बायोएनर्जी और परमाणु—को शामिल किया जाए तो लो-कार्बन स्रोतों का हिस्सा बढ़कर 43 प्रतिशत तक पहुँच गया है. विशेषज्ञों का कहना है कि बिजली उत्पादन में यह बदलाव जलवायु नीति का परिणाम होने के साथ-साथ बाजार और तकनीक की परिपक्वता का संकेत भी है. स्वच्छ ऊर्जा अब केवल विकल्प नहीं रह गई, बल्कि ऊर्जा वृद्धि की मुख्य प्रेरक शक्ति बन चुकी है.

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इस वैश्विक परिवर्तन का सबसे बड़ा योगदान चीन और भारत की तरफ से आया है. दुनिया की कुल बिजली मांग का बड़ा हिस्सा रखने वाले इन दोनों देशों ने जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं. चीन में इस साल जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली उत्पादन 1.1 प्रतिशत घटा है. भारत में यह गिरावट 3.3 प्रतिशत तक रही, जो इस रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक ऊर्जा समीकरण को स्थिर रखने में निर्णायक रही. भारत में सौर और पवन ऊर्जा की रिकॉर्ड वृद्धि के साथ-साथ मौसम में अतिरिक्त गर्मी न रहने से बिजली मांग पर दबाव कम आया. दोनों देशों में नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार की गति ने वैश्विक स्तर पर कोयला आधारित बिजली की वृद्धि को थामने में अहम भूमिका निभाई.

एम्बर के सीनियर डेटा विश्लेषक निकोलस फुलघम का कहना है कि यह रुझान वैश्विक ऊर्जा भविष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. उनके अनुसार, “रिकॉर्ड सौर ऊर्जा वृद्धि और जीवाश्म ईंधन की स्थिरता यह दिखाती है कि स्वच्छ ऊर्जा अब ऊर्जा क्षेत्र की वास्तविक ताकत बन चुकी है. चीन के आंकड़े दर्शाते हैं कि नई मांग को पूरा करने के लिए अब कोयले पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं रही.” ऊर्जा विश्लेषकों के मुताबिक, यह बदलाव अचानक नहीं आया है, बल्कि बीते दशक में सौर और पवन तकनीक की लागत में भारी कमी, सरकारों की प्रोत्साहन नीतियाँ और कंपनियों की निवेश प्राथमिकताओं ने मिलकर यह बुनियाद तैयार की.

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इस परिवर्तन में जलवायु की भूमिका भी कम नहीं रही. पिछले वर्ष की तुलना में 2025 में गर्मी अपेक्षाकृत कम रही, जिससे दुनिया के कई क्षेत्रों में कूलिंग की जरूरत घटी. रिपोर्ट बताती है कि बिजली की कुल मांग में सिर्फ 2.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, जबकि 2024 में यह आंकड़ा 4.9 प्रतिशत था. कम तापमान ने न केवल मांग को नियंत्रित रखा बल्कि ऊर्जा संक्रमण के असर को भी अधिक स्पष्ट रूप से उभरने का मौका दिया. विशेषज्ञों का कहना है कि ऊर्जा संक्रमण तब अधिक प्रभावी होता है जब स्वच्छ ऊर्जा की वृद्धि और मांग का स्तर संतुलित हो, और इस साल का मौसम इस संतुलन का एक महत्वपूर्ण कारक साबित हुआ.

एम्बर की रिपोर्ट यह भी रेखांकित करती है कि यह पहला अवसर है जब वैश्विक ऊर्जा प्रणाली बिना किसी महामारी, आर्थिक मंदी या बड़े आपातकालीन झटके के स्वच्छ ऊर्जा के सहारे स्थिर बनी रही. 2020 में महामारी के दौरान मांग में गिरावट के कारण जीवाश्म ईंधनों की खपत घट गई थी, लेकिन उस स्थिति को असामान्य माना गया था. 2025 का यह बदलाव पूरी तरह सामान्य परिस्थितियों में आया है और इसलिए इसे ऊर्जा क्षेत्र के “क्लीन ग्रोथ” के नए युग की शुरुआत कहा जा रहा है.

विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि अगर मौजूदा गति बनी रही तो अगले कुछ वर्षों में दुनिया जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली उत्पादन में स्थायी गिरावट देख सकती है. कई देशों में कोयला संयंत्र बंद करने की योजनाएँ पहले से प्रगति पर हैं, वहीं यूरोप और एशिया में बड़े पैमाने पर सौर और पवन परियोजनाओं की स्थापना तेज़ी से बढ़ रही है. रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि स्वच्छ ऊर्जा अब केवल जलवायु समाधान नहीं, बल्कि वैश्विक ऊर्जा अर्थव्यवस्था का केंद्रीय स्तंभ बनती जा रही है.

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विश्लेषक यह भी चेतावनी देते हैं कि यह सकारात्मक रुझान तभी टिकाऊ रहेगा जब सरकारें स्वच्छ ऊर्जा ढांचे में निवेश बढ़ाती रहें और ग्रिड सुधारों पर तेजी से काम करें. बढ़ती मात्रा में सौर और पवन बिजली को ग्रिड में समाहित करने के लिए मजबूत संरचना, ऊर्जा भंडारण तकनीकें और नीतिगत स्पष्टता जरूरी है. कई देशों में ग्रिड बाधाएँ नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार की गति को सीमित कर सकती हैं. इसीलिए रिपोर्ट का निष्कर्ष यह भी कहता है कि ऊर्जा संक्रमण केवल उत्पादन बढ़ाने का मामला नहीं, बल्कि पूरी प्रणाली को आधुनिक बनाने का प्रश्न है.

इसके बावजूद, 2025 की यह तस्वीर दुनिया के लिए उम्मीद का एक बड़ा संकेत है. पहली बार स्वच्छ ऊर्जा ने न केवल बराबरी की, बल्कि नई बिजली मांग को पूरी तरह अकेले संभाल लिया. इससे यह संदेश मिलता है कि जलवायु संकट का समाधान तकनीकी रूप से संभव है और व्यावहारिक रूप से लागू भी हो रहा है. अगर देश इसी दिशा में कदम बनाए रखते हैं, तो आने वाले दशक में ऊर्जा परिवर्तन की यह गति वैश्विक उत्सर्जन घटाने और धरती के तापमान को नियंत्रित रखने में निर्णायक भूमिका निभा सकती है.

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