पटना.बॉलीवुड की चकाचौंध से लेकर सत्ता के गलियारों तक की यात्रा बहुत कम लोग तय कर पाते हैं, लेकिन चिराग पासवान का सफर इस परिवर्तन का सबसे दिलचस्प उदाहरण माना जा सकता है. एक दशक पहले रोमांटिक फिल्म मिले ना मिले हम में बतौर हीरो नजर आए चिराग, आज बिहार की राजनीति में सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक के रूप में उभरे हैं. दिवंगत केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बेटे चिराग ने अभिनय की दुनिया में कदम तो रखा, पर जल्द ही महसूस कर लिया कि उनकी मंजिल फिल्मों में नहीं, बल्कि अपने राज्य और अपनी राजनीतिक विरासत में है. यही कारण रहा कि उन्होंने मात्र एक असफल फिल्म के बाद अपने करियर की दिशा बदल दी और राजनीति को अपना जीवन समर्पित कर दिया.
फिल्मी दुनिया में उनका सफर 2014 में रिलीज हुई मिले ना मिले हम से शुरू हुआ, जिसमें उनके साथ कंगना रणौत मुख्य भूमिका में थीं. फिल्म एक युवा टेनिस खिलाड़ी की कहानी पर आधारित थी, जो अपने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध एक मॉडल से प्यार कर बैठता है. Tanveer Khan द्वारा निर्देशित यह फिल्म न तो बॉक्स ऑफिस पर चली और न ही समीक्षकों के बीच कोई खास असर छोड़ सकी. फिल्म के अन्य कलाकारों में कबीर बेदी और पूनम ढिल्लों जैसे वरिष्ठ नाम शामिल थे, जिन्होंने चिराग के माता-पिता की भूमिका निभाई थी. इसके अलावा, फिल्म में सारागिका घाटगे, दिलीप ताहिल, नीरू बाजवा और सुरेश मेनन भी महत्वपूर्ण भूमिकाओं में थे.
फिल्म की असफलता के बाद भी चिराग ने कुछ समय बॉलीवुड में बनाए रखने की कोशिश की, लेकिन उनके भीतर की बेचैनी उन्हें लगातार यह याद दिलाती रही कि उनका वास्तविक दायरा और जिम्मेदारी राजनीति में है. वह कई बार कह चुके हैं कि यदि उन्होंने बॉलीवुड को कुछ और साल दिए होते, तो शायद एक अभिनेता के रूप में वे बेहतर मुकाम हासिल कर लेते, लेकिन उन्हें जीवन के बहुत पहले ही समझ आ गया था कि बिहार और वहां की राजनीति उनका इंतजार कर रही है. एक इंटरव्यू में उन्होंने यह भी कहा था कि उनका मन फिल्मों में पूरी तरह रच-बस नहीं पाया और वे अपने पिता की राजनीति में निभाई जा रही अहम भूमिका से बेहद प्रभावित थे.
रामविलास पासवान के निधन के बाद चिराग पर अपने परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की बड़ी जिम्मेदारी आ गई थी. यह वह समय था जब बिहार की राजनीति में कई उतार-चढ़ाव आ रहे थे. ऐसे दौर में चिराग की जिम्मेदारी और भी बढ़ गई. उन्होंने न केवल अपने पिता के बनाए संगठन लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) को संभाला, बल्कि उसकी दिशा और पहुँच को नई पहचान दिलाने की कोशिश की. हालांकि यह यात्रा आसान नहीं रही. पार्टी में हुए विभाजन, गुटबाज़ी और सहयोगी दलों के साथ पैदा हुए तनावों ने उनके नेतृत्व को कई बार चुनौती दी.
इन सबके बावजूद, चिराग की राजनीतिक समझ, प्रदेश की समस्याओं को लेकर उनकी मुखरता और युवाओं में उनकी लोकप्रियता ने उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में एक उल्लेखनीय चेहरा बना दिया. 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी ने 29 सीटों पर चुनाव लड़कर 19 सीटों पर जीत दर्ज की, जो उनके नेतृत्व कौशल और राजनीतिक प्रभाव को दिखाने के लिए काफी था. यह चुनावी परिणाम न केवल उनके लिए, बल्कि पूरे बिहार की राजनीति के लिए एक बड़ा संकेत था कि चिराग अब एक मजबूत राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित हो चुके हैं.
दिलचस्प बात यह है कि जिस फिल्म मिले ना मिले हम से चिराग ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत और समाप्ति दोनों लगभग एक ही साथ की, उसी फिल्म की नायिका कंगना रनौत भी अब राजनीति में एक प्रमुख नाम बन चुकी हैं. कंगना वर्तमान में हिमाचल प्रदेश के मंडी से सांसद हैं. अभिनय में कई सफल फिल्मों और तीन राष्ट्रीय पुरस्कारों के बाद कंगना ने राजनीति में कदम रखकर एक नया अध्याय शुरू किया. आज दोनों ही कलाकार, जो कभी सिल्वर स्क्रीन पर प्रेम कहानी निभा रहे थे, अब दो अलग-अलग राज्यों की राजनीति में अपने-अपने तरीके से सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं.
चिराग पासवान का राजनीतिक सफर जितना संघर्षों और चुनौतियों से भरा रहा, उतना ही प्रेरक भी है. उन्होंने अपनी पार्टी को आधुनिक, युवाओं के हितों और राज्य के विकास पर केंद्रित एजेंडा देने की दिशा में कई प्रयास किए. उन्होंने कई बार कहा है कि वे बिहार को नए अवसरों वाला राज्य बनते देखना चाहते हैं, और इसके लिए वे पारंपरिक राजनीति से अलग सोच को बढ़ावा देना चाहते हैं. तकनीक, शिक्षा, बेरोजगारी, कृषि और महिला सुरक्षा जैसे मुद्दों पर उनकी स्पष्ट राय और आक्रामक शैली ने उन्हें युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाया है.
उनके राजनीतिक भाषण, विरोधियों पर सीधे और तीखे हमले, और आम जनता के मुद्दों को लगातार उठाने का अंदाज़ उन्हें बिहार की राजनीति में एक ऐसे चेहरे के रूप में स्थापित करता है, जो न केवल अगली पीढ़ी की राजनीति का प्रतिनिधित्व करता है, बल्कि सत्ता की राजनीति के पुराने ढर्रे को भी चुनौती देता है.
चिराग पासवान का अभिनेता से नेता बनने का सफर एक ऐसी कहानी है, जिसमें बदलाव, संघर्ष और संकल्प तीनों मिलते हैं. उन्होंने बॉलीवुड की दुनिया को पीछे छोड़कर उस राह को चुना, जहां उनका सफर कठिन था, लेकिन उद्देश्य स्पष्ट. आज वे यह साबित कर चुके हैं कि कभी-कभी जीवन में एक असफलता ही उस दिशा में ले जाती है, जहां व्यक्ति का असली योगदान निहित होता है. बॉलीवुड में कामयाबी भले न मिली हो, लेकिन राजनीति में उनकी उपलब्धियां कहीं अधिक बड़ी और प्रभावशाली हैं.
चिराग पासवान की यह यात्रा न केवल एक अभिनेता के नेता बनने की कहानी है, बल्कि यह भी बताती है कि अपने मूल, अपने राज्य और अपने लोगों के प्रति समर्पण ही किसी भी जनप्रतिनिधि की असली पहचान होती है.



























