कहा जाता है कि दुर्योधन से शादी होने से पहले उसकी पत्नी भानुमति किसी को मन ही मन चाहती थी. उससे शादी भी करना चाहती थी लेकिन ऐसा हो नहीं सका. लेकिन साफ्ट कॉर्नर तो बना ही रहा. जब महाभारत के युद्ध में दुर्योधन की मृत्यु हो गई तो उसने उसी शख्स से शादी कर ली, जिसे वह मन ही मन चाहती थी.
दुर्योधन की पत्नी अतीव सुंदरी थी. बुद्धिमान थी. शादी से पहले वह जिस पुरुष से वह शादी करना चाहती थीं, जिसे पसंद करती थीं, वैसा वह नहीं कर पाईं. समय ने उन्हें दुर्योधन की पत्नी बना दिया. नाम था भानुमति. युद्ध में पति के मारे जाने के बाद जीवन ने उनके सामने फिर एक रास्ता खोला. वह जिसे चाहती थीं. उसे पति बनाने का मौका मिला. और ये शख्स एक पांडव था. कौरवों का प्रबल शत्रु
महाभारत के मुख्य पात्र दुर्योधन के बारे में बहुत लिखा और कहा गया है लेकिन क्या आपको मालूम है कि उनकी पत्नी कौन थी, जिसे वह बहुत प्यार करते थे. उसका महाभारत के युद्ध में पति समेत कौरवों की मृत्यु के बाद क्या हुआ. दुर्योधन की पत्नी का नाम भानुमति था, जो अपूर्व सुंदरी थी
आंचलिक कथाओं में ये कहा गया कि जब दुर्योधन नहीं रहा तो भानुमति ने अर्जुन से विवाह कर लिया. कहा जाता है कि दुर्योधन से विवाह करने से पहले वह मन ही मन अर्जुन को चाहती थीं. हालांकि अर्जुन से विवाह के कोई पुख्ता साक्ष्य महाभारत या उसकी उत्तर कथा वाले ग्रंथों में नहीं मिलते.
महाभारत के मुताबिक दुर्योधन की पत्नी का नाम भानुमति था. महाभारत में दुर्योधन की पत्नी का तीन बार ज़िक्र मिलता है. शांति पर्व में बताया गया है कि दुर्योधन ने कर्ण की मदद से राजा चित्रांगद की बेटी भानुमति का स्वयंवर से अपहरण करके विवाह कर लिया था. बाद में, स्त्री पर्व में भी दुर्योधन की सास गांधारी ने भानुमति का ज़िक्र किया है. भानुमती के एक बेटा और एक बेटी थी
शांति पर्व में ऋषि नारद दुर्योधन और कर्ण की मित्रता के बारे में एक कहानी सुनाते हुए बताते हैं कि किस तरह कर्ण की मदद से दुर्योधन ने कलिंग राजा चित्रांगद की बेटी का अपहरण कर शादी की थी. भानुमति के बारे में उल्लेख हुआ है कि वह ताजिंदगी कृष्ण की पूजा करती रही. बेशक उसके पति दुर्योधन ने कई बार कृष्ण को खरीखोटी सुनाई, अपमान भी किया लेकिन भानुमति के लिए वह हमेशा आराध्य रहे. यहां तक कि पति के निधन के बाद भी वह उनकी भक्त बनी रही
भानुमति के बारे में उल्लेख किया गया है कि वह ताजिंदगी कृष्ण की पूजा करती रही. बेशक उसके पति दुर्योधन ने कई बार कृष्ण को खरीखोटी सुनाई, अपमान भी किया लेकिन भानुमति के लिए वह हमेशा आराध्य रहे. यहां तक कि पति के निधन के बाद भी वह उनकी भक्त बनी रही. महाभारत के स्त्री पर्व में दुर्योधन की मां गांधारी , कृष्ण से अपनी पुत्रवधू का वर्णन इस प्रकार करती हैं. भानुमति के बेटे का नाम लक्ष्मण था, जो खुद महाभारत के युद्ध में मारा गया. बेटी का नाम लक्ष्मणा था
गांधारी कृष्ण से कहती हैं, हे कृष्ण! देखो, ये दृश्य मेरे पुत्र की मृत्यु से भी अधिक दुःखदायी है. दुर्योधन की प्रिय पत्नी महाबुद्धिमान कन्या है, देखो वह कैसे अपने पति और बेटे के लिए विलाप कर रही है. अब सवाल ये उठता है कि भानुमति ने पति दुर्योधन के सबसे बड़े दुश्मन पांडु पुत्र अर्जुन से क्यों विवाह कर लिया. भानुमति जितनी रूपवती थी, उतनी ही चतुर भी.
कहा जाता है कि जब महाभारत का युद्ध तय हो गया, तब भानुमति को पता था कि कौरवों का सर्वनाश हो जाएगा. अपने कुनबे को बचाने के लिए उसने ही भगवान श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को अपनी पुत्री लक्ष्मणा को भगाकर ले जाने की युक्ति सुझाई
एक अन्य कथा के अनुसार साम्ब जब लक्ष्मणा का अपहरण कर फरार हो गया तो भानुमति ने दुर्योधन को अपने अपहरण की याद दिलाई और साम्ब से लक्ष्मणा के विवाह में अहम भूमिका निभाई. भानुमति ने अपने कुनबे को बचाने के लिए हर वो असंगत कार्य किया, हर उस चीज को जोड़ा, जिसका जुड़ना संभव नहीं था. इसीलिए कहीं का ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा. संबंधित कहावत बनी
पुत्र की मृत्यु से लक्ष्मणा को गहरा झटका लगा था, महाभारत के युद्ध में अभिमन्युू के हाथों दुर्योधन के पुत्र की मृत्यु हुई थी. इसके बाद भी भानुमति को मालूम था कि खुद को सुरक्षित रखने के लिए अर्जुन से विवाह कर लेना चाहिए. भगवान कृष्ण ने इसमें खास भूमिका अदा की. उन्होंने अर्जुन और भानुमति का विवाह कराया
इसके पीछे एक कहानी और कही जाती है कि भानुमती शल्य की बेटी थी, जो नकुल और सहदेव के चाचा थे. वह पहले अर्जुन से ही शादी करना चाहती थी. जब स्वयंवर हुआ तो अर्जुन उसमें आए ही नहीं, तब उसने पिता की इच्छा थी कि वह दुर्योधन से शादी करे तो उसने वैसा ही किया लेकिन पति के निधन के बाद अर्जुन की नौवीं पत्नी बनना पसंद किया. इसकी वजह ये भी थी कि अब कोई लड़ाई नहीं हो और कुनबे में शांति बनी रहे.
महाभारत में युद्ध के बाद की उत्तर कथा ज्यादा नहीं मिलती, लिहाजा किसी बड़े ग्रंथ में अर्जुन और भानुमति के विवाह की कोई जानकारी नहीं मिलती. लेकिन ये बात एकदम तय है कि महाभारत युद्ध में भीम के हाथों दुर्योधन की मृत्यु के बाद पांडवों ने भानुमति का सम्मान किया. वह अपने भविष्य को लेकर अनिश्चित थी. उसने कौरव और पांडव परिवारों को एकजुट करने की कोशिश की. कुछ जानकारियां ये भी कहती हैं कि वह पति के निधन के बाद विधवा रहीं.
कथाएं ये भी कहती हैं कि भानुमति ने अपने ससुराल में रहकर धृतराष्ट्र की सेवा की. धृतराष्ट्र के साथ गंगा नदी के किनारे रहकर तपस्या की.बाद में भानुमति ने गंगा में समाधि ले ली. एक तमिल लोककथा है, जिसमें बताया गया कि दुर्योधन के कहने पर कर्ण अक्सर भानुमति की देखभाल के लिए उसके पास आ जाता था. कर्ण और भानुमती ने पासा खेलना शुरू किया. धीरे-धीरे कर्ण जीतने लगा. इसी बीच दुर्योधन लौटा. कमरे में प्रवेश किया. पति को अंदर आते देख भानुमती सम्मान से खड़ी हो गई. कर्ण को पता नहीं लगा. उसको लगा कि भानुमति इसलिए उठ गई क्योंकि हारना नहीं चाहती.
कर्ण ने भानुमती की शॉल पकड़कर खींचा तो शॉल के मोती बिखर गए. इससे भानुमति की स्थिति बहुत विचित्र हो गई, वह स्तब्ध हो गई कि अब पति पता नहीं क्या सोचेगा और करेगा. तब दुर्योधन ने समझदारी का परिचय देते हुए दोनों को अप्रिय स्थिति से बचा लिया. उसने पत्नी से कहा, "क्या मुझे सिर्फ मोतियों को इकट्ठा करना चाहिए या क्या आप चाहेंगी कि मैं उन्हें भी पिरोऊँ?" दरअसल दुर्योधन को अपनी पत्नी पर बहुत विश्वास था.
शिवाजी सावंत के उपन्यास मृत्युंजय में , जो कर्ण के जीवन पर आधारित है, उसमें लिखा है कि भानुमती की एक दासी थी जिसका नाम सुप्रिया था, जो उसके बहुत करीब थी. जब दुर्योधन और कर्ण ने भानुमती का अपहरण किया तो सुप्रिया भी साथ चली आई. जब भानुमती ने दुर्योधन को अपना जीवनसाथी स्वीकार कर लिया तो सुप्रिया ने कर्ण को पति चुना. हालांकि सुप्रिया ने कर्ण के युद्ध में वीरगति प्राप्त करने के बाद ताजिंदगी विधवा रहने का ही फैसला किया. हालांकि उसे भी दूसरा विवाह कर लेने की सलाह दी गई थी.
































