ब्रह्मांड की अनंत गहराइयों में ग्रहों की चाल केवल गणनाओं का विषय नहीं है बल्कि यह मनुष्य के कर्मों और उनके प्रतिफलों का एक ऐसा जीवंत दस्तावेज है जिसे चाहकर भी मिटाया नहीं जा सकता। ज्योतिष शास्त्र के पन्नों को जब हम पलटते हैं तो वहां एक ऐसा नाम उभरता है जिसके जिक्र मात्र से ही अच्छे-अच्छों के पसीने छूट जाते हैं और वह नाम है राहु। अक्सर लोग सवाल करते हैं कि आखिर राहु इंसान को इतनी बेरहमी से प्रताड़ित क्यों करता है और क्यों किसी का जीवन अचानक नरक के समान कष्टकारी हो जाता है। इस जिज्ञासा का समाधान केवल कुंडली के खानों में नहीं बल्कि मनुष्य के अपने किए गए उन कार्यों में छिपा है जिन्हें वह समाज की नजरों से बचाकर करता है। यह एक अकाट्य और कड़वा सत्य है कि प्रकृति का न्याय कभी अधूरा नहीं रहता और जब बात राहु की आती है तो वह एक ऐसे कठोर न्यायाधीश की भूमिका में होता है जो अपराधी को रूह कांपने वाली सजा सुनाता है। धार्मिक मान्यताओं और ज्योतिषीय रहस्यों के अनुसार राहु का प्रकोप उन लोगों पर सबसे अधिक गिरता है जो धोखेबाज, दगाबाज या विश्वासघाती होते हैं। जब कोई व्यक्ति किसी का कर्ज लेकर वापस नहीं करता या किसी मजबूर की सहायता के नाम पर लिया गया पैसा डकार जाता है, तो वह अनजाने में राहु की उस क्रूरता को न्योता दे रहा होता है जो आने वाले समय में उसके अस्तित्व को झकझोर कर रख देगी।
राहु को शास्त्रों में राक्षस माना गया है और इसी राक्षसी प्रवृत्ति के कारण उसकी सजा देने की शैली भी अत्यंत भयानक होती है। जब कोई इंसान समाज, कुल और शास्त्रों की मर्यादाओं का उल्लंघन कर निकृष्ट और निंदनीय कार्यों में लिप्त हो जाता है, तब राहु उसके जीवन में प्रवेश कर सबसे पहले उसकी मति भ्रष्ट करता है। राहु की प्रताड़ना का पहला चरण मानसिक होता है जहां वह इंसान की निर्णय शक्ति को पूरी तरह नष्ट कर देता है। पागलपन, अनिद्रा और मस्तिष्क की चेतना का शून्य हो जाना राहु के वे हथियार हैं जिनके चलते इंसान खुद अपने हाथों से अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना शुरू कर देता है। यह स्थिति इतनी भयावह होती है कि व्यक्ति को सही और गलत का अंतर समझ आना बंद हो जाता है और वह विनाश की ओर बढ़ने लगता है। यदि किसी व्यक्ति के कर्म अत्यंत घृणित हैं, तो राहु का दंड अगले जन्म तक उसका पीछा नहीं छोड़ता। कई बार देखा गया है कि कोई बच्चा पैदा होते ही मानसिक रूप से विक्षिप्त होता है या बचपन में ही उसकी चेतना लुप्त हो जाती है। यह राहु का ही वह भुगतान है जो उसे दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर कर देता है। वह बच्चा अपने ही घर से भटक जाता है और उसे याद भी नहीं रहता कि उसके माता-पिता कौन हैं। वह जानवरों की भांति रोटी के एक-एक टुकड़े के लिए भटकता है और अंत में किसी लावारिस हालत में दम तोड़ देता है। यह दृश्य भले ही हृदय विदारक हो, लेकिन ज्योतिष इसे पूर्व जन्म के संचित कर्मों का राहु द्वारा किया गया कठोर निपटारा मानता है।
राहु का न्याय केवल व्यक्तिगत नहीं होता बल्कि यह पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाला एक ऐसा ऋण है जिसे चुकाना ही पड़ता है। बाप के किए गए पापों का फल पुत्र को और पुत्र के कर्मों का फल पौत्र को भोगना पड़ता है। यह सीढ़ी दर सीढ़ी चलता रहने वाला भुगतान राहु की उस शक्ति को दर्शाता है जो भौतिकवाद और इच्छाओं के जाल में फंसाकर अंततः इंसान को शून्य पर लाकर खड़ा कर देती है।
कुंडली के बारह भावों में राहु का बैठना जीवन के अलग-अलग पहलुओं को प्रभावित करता है। कहीं यह शत्रुहन्ता बनाता है तो कहीं कुटुंब का नाश कर देता है।
राहु प्रथम भाव में शत्रुनाशक अल्प संतति,मस्तिष्क रोगी स्वार्थी, सेवक प्रवृत्ति का बनाता है।
राहु दूसरे भाव में कुटुम्ब नाशक, अल्प संतति ,मिथ्या भाषी कृपण और शत्रु हन्ता बनाता है।
राहु तीसरे भाव में विवेकी, बलिष्ठ, विद्वान और व्यवसायी बनाता है।
राहु चौथे भाव में स्वभाव से क्रूर कम बोलने वाला असंतोषी और माता को कष्ट देने वाला होता है।
राहु पंचम भाग्यवान कर्मठ कुलनाशक और जीवन साथी को सदा कष्ट देने वाला होता है।
राहु छठे भाव में बलवान धैर्यवान दीर्घवान अनिष्टकारक और शत्रुहन्ता बनाता है।
राहु सप्तम भाव में चतुर लोभी वातरोगी दुष्कर्म प्रवृत्त एकाधिक विवाह और बेशर्म बनाता है।
राहु आठवें भाव में कठोर परिश्रमी बुद्धिमान कामी गुप्त रोगी बनाता है।
राहु नवें भाव में सदगुणी परिश्रमी लेकिन भाग्य में अंधकार देने वाला होता है।
राहु दसवें भाव में व्यसनी शौकीन सुन्दरियों पर आसक्त नीच कर्म करने वाला होता है
राहु ग्यारहवें भाव में मंदमति लाभहीन परिश्रम करने वाला अनिष्ट्कारक और सतर्क रखने वाला बनाता है।
राहु बारहवें भाव में मंदमति विवेकहीन दुर्जनों की संगति करवाने वाला बनाता है।
राहु को केवल कष्ट देने वाला कहना गलत होगा क्योंकि वह भ्रम और माया का भी कारक है। आज के आधुनिक दौर में तकनीक, इंटरनेट, मीडिया और राजनीति के क्षेत्र में जो ऊंचाइयां दिखती हैं, वे राहु की ही देन हैं। राहु भौतिक सुखों और महत्वाकांक्षाओं का वह जुनून पैदा करता है जो इंसान को और अधिक पाने की अंतहीन दौड़ में शामिल कर देता है। लेकिन जब यह महत्वाकांक्षा मर्यादा पार कर जाती है, तब राहु का अशुभ प्रभाव शुरू होता है। आर्थिक हानि, अचानक होने वाले बड़े नुकसान और रिश्तों में पैदा होने वाली दरारें राहु के ही संकेत हैं। स्वास्थ्य के मोर्चे पर भी राहु पेट की समस्याओं, सिरदर्द और नाखूनों के टूटने जैसी व्याधियों के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की दक्षिण-पश्चिम दिशा यानी नैऋत्य कोण राहु का स्थान है और यदि इस दिशा में दोष हो, तो राहु की प्रताड़ना और बढ़ जाती है। जनता के मन में यह सवाल हमेशा रहता है कि क्या इस भीषण दंड से बचने का कोई उपाय है? ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि राहु से बचने का एकमात्र मार्ग सत्य, ईमानदारी और सात्विक जीवन है। दूसरों के हक को मारना और छल-कपट करना राहु को सक्रिय करता है। जो लोग दान-पुण्य और संयम के साथ रहते हैं, राहु उनके लिए शोधक का कार्य करता है। अंततः राहु का संदेश यही है कि मनुष्य अपने कर्मों के प्रति सजग रहे, क्योंकि ब्रह्मांड की इस अदालत में वकील भले ही मिल जाए, लेकिन राहु जैसे न्यायाधीश से बचने के लिए केवल शुद्ध कर्म ही ढाल बन सकते हैं।
राहु दोष निवारण और शांति के अचूक उपाय
राहु की प्रताड़ना और उसके द्वारा दिए गए कष्टों से मुक्ति पाने के लिए भारतीय ज्योतिष और शास्त्रों में कई ऐसे सरल उपाय बताए गए हैं, जिन्हें अपनाकर व्यक्ति अपने जीवन में छाई मानसिक और आर्थिक शांति को वापस पा सकता है। चूंकि राहु भ्रम और अंधकार का कारक है, इसलिए इसके उपायों का मुख्य उद्देश्य इंसान की चेतना को जागृत करना और उसे सात्विकता की ओर ले जाना होता है। राहु को शांत करने का सबसे पहला और प्रभावशाली तरीका है 'दान'। शास्त्रों के अनुसार, राहु का प्रभाव कम करने के लिए शनिवार के दिन काले तिल, उड़द की दाल, काला कपड़ा या लोहे की वस्तुओं का दान करना चाहिए। इसके अलावा, यदि कोई व्यक्ति अत्यधिक मानसिक भ्रम या अनिद्रा से जूझ रहा है, तो उसे सोते समय अपने सिरहाने जो (Barley) रखकर सोना चाहिए और अगले दिन सुबह उसे पक्षियों को डाल देना चाहिए या बहते जल में प्रवाहित करना चाहिए। यह उपाय राहु की नकारात्मक तरंगों को सोखने में बहुत कारगर माना जाता है।
मंत्रों की शक्ति राहु जैसे मायावी ग्रह को नियंत्रित करने में अद्भुत भूमिका निभाती है। राहु के बीज मंत्र "ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः" का नियमित जाप करने से व्यक्ति की निर्णय शक्ति वापस आने लगती है और मस्तिष्क में छाई धुंध छंटने लगती है। इसके अतिरिक्त, राहु के अधिष्ठात्री देवता भगवान शिव और मां दुर्गा को माना गया है। जो व्यक्ति नियमित रूप से 'शिव चालीसा' का पाठ करता है या 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का जाप करता है, उस पर राहु की क्रूर दृष्टि का प्रभाव स्वतः ही कम होने लगता है। मां दुर्गा की उपासना और 'अर्गला स्तोत्र' का पाठ करने से राहु जनित भय और शत्रुओं का नाश होता है। यदि घर में राहु के कारण क्लेश बढ़ रहा हो, तो रोज सुबह और शाम कपूर जलाना चाहिए, क्योंकि कपूर की खुशबू और अग्नि राहु के नकारात्मक प्रभाव को सोख लेती है।
व्यक्तिगत आदतों में बदलाव भी राहु को शांत करने का एक बड़ा हथियार है। ज्योतिषीय परामर्शों में अक्सर कहा जाता है कि जिस व्यक्ति का राहु खराब हो, उसे अपनी रसोई में बैठकर ही भोजन करना चाहिए। इससे राहु की उग्रता शांत होती है। साथ ही, राहु के दुष्प्रभाव से बचने के लिए व्यक्ति को नीले और काले रंग के कपड़ों से परहेज करना चाहिए और अधिक से अधिक सफेद या हल्के रंगों का प्रयोग करना चाहिए। माथे पर सफेद चंदन का तिलक लगाना राहु की गर्मी को शांत कर मानसिक शीतलता प्रदान करता है। पशु-पक्षियों की सेवा, विशेषकर काले कुत्ते को रोटी खिलाना और कौवों को दाना डालना राहु के प्रकोप को कम करने के सबसे पुराने और सिद्ध उपायों में से एक है। ये छोटे-छोटे बदलाव और श्रद्धापूर्वक किए गए उपाय राहु के 'कर्म फल' की कठोरता को कम कर जीवन में सौभाग्य का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

































