पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, यानी बुधवार, 19 नवंबर, 2025 का दिन, सनातन धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण और शक्ति से भरा माना जाता है। यह दिवस भगवान शिव के रौद्र स्वरूप, काल भैरव को समर्पित कालाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। देश भर के मंदिरों और घरों में, विशेष रूप से काशी (वाराणसी) और उज्जैन में, भक्तों का सैलाब उमड़ा हुआ है, जो अपने आराध्य को प्रसन्न कर भय, कष्ट और शत्रु बाधाओं से मुक्ति पाने की कामना कर रहे हैं। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह प्राचीन हिंदू काल गणना (पंचांग) और शुभ-अशुभ मुहूर्तों के महत्व को भी आधुनिक जीवनशैली में स्थापित करता है। भक्तों के लिए यह दिन स्वयं के भीतर की नकारात्मकता और आलस्य को समाप्त करने तथा जीवन की कठिन राहों पर विजय प्राप्त करने का संकल्प लेने का अवसर है।
काल भैरव को भगवान शिव का वह स्वरूप माना जाता है, जो अंधकार, समय और मृत्यु पर नियंत्रण रखते हैं। उन्हें अक्सर 'काशी के कोतवाल' की उपाधि से विभूषित किया जाता है, जिनकी अनुमति के बिना कोई भी काशी नगरी में वास नहीं कर सकता। कालाष्टमी का व्रत और पूजन मुख्य रूप से मध्य रात्रि में किया जाता है, जिसे निशिता काल की पूजा कहा जाता है। इस दिन भक्त कठोर उपवास रखते हैं और भगवान भैरव की प्रतिमा के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाते हैं, उन्हें नारियल, फूल, और विशेष रूप से मदिरा का भोग (तामसिक पूजा में) या दही-जलेबी का भोग (सात्विक पूजा में) अर्पित करते हैं। यह माना जाता है कि जो भक्त इस दिन पूरी श्रद्धा से काल भैरव की उपासना करता है, उसे सभी प्रकार के आकस्मिक संकटों और नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा मिलती है, और जीवन में स्थिरता आती है।
इस विशेष दिन के लिए, ज्योतिषियों और पंचांग निर्माताओं ने भक्तों को शुद्ध और फलदायक पूजा सुनिश्चित करने हेतु विभिन्न शुभ और अशुभ मुहूर्तों का विस्तृत विवरण जारी किया है। पंचांग के अनुसार, 19 नवंबर को दिन भर में कुछ ऐसे समय अंतराल हैं जिनका ध्यान रखना अनिवार्य है। पूजा के लिए सबसे पवित्र और शुभ माने जाने वाले मुहूर्तों में अभिजीत मुहूर्त है, जो दोपहर $11:43$ बजे से शुरू होकर $12:26$ बजे तक चलेगा। इसके अलावा, विजय मुहूर्त, जो दोपहर $01:54$ बजे से $02:37$ बजे तक रहेगा, भी किसी भी नए या शुभ कार्य की शुरुआत के लिए अत्यंत श्रेष्ठ माना गया है। रात्रि पूजा के लिए, निशिता काल $11:39$ बजे से $12:31$ बजे (20 नवंबर की सुबह) तक सबसे महत्वपूर्ण समय रहेगा, क्योंकि भैरव जी की पूजा इसी समय सबसे अधिक फलदायी होती है।
हालांकि, शुभ मुहूर्तों के साथ-साथ कुछ अशुभ काल का ज्ञान भी आवश्यक है ताकि उनसे बचा जा सके। 19 नवंबर को राहु काल दोपहर $12:05$ बजे से $01:25$ बजे तक रहेगा, इस अवधि में किसी भी नए कार्य का आरंभ, महत्वपूर्ण लेन-देन या यात्रा शुरू करने से परहेज करने की सलाह दी गई है। इसी प्रकार, यमगंड काल सुबह $08:09$ बजे से $09:29$ बजे तक रहेगा, जिसे भी अशुभ माना जाता है। एक और महत्वपूर्ण पहलू दिन का नक्षत्र है, जो सुबह पूर्वा फाल्गुनी है और दोपहर $01:46$ बजे के बाद उत्तरा फाल्गुनी में प्रवेश करेगा। पूर्वाफाल्गुनी का अर्थ है 'पूर्व का शुभ फल', जो पूजा-पाठ और कलात्मक कार्यों के लिए अच्छा माना जाता है, जबकि उत्तरा फाल्गुनी शांति और स्थिरता प्रदान करती है। दिन का योग 'वैधृति' ($11:51$ AM तक) है, जिसे सामान्यतः शुभ नहीं माना जाता है, इसलिए अधिकांश भक्त पूजा की शुरुआत $11:51$ AM के बाद ही करने को प्राथमिकता दे रहे हैं।
इस अवसर पर, उज्जैन के प्रसिद्ध काल भैरव मंदिर में विशेष आयोजन किए गए हैं, जहाँ हजारों भक्त भैरवनाथ को मदिरा अर्पित करने की अनूठी परंपरा का निर्वाह करते हैं। मंदिर के पुजारी, पंडित लोकेश व्यास ने बताया, "काल भैरव की आराधना का उद्देश्य भय का नाश करना है। आज की दुनिया में तनाव, असुरक्षा और मानसिक चिंताएँ ही सबसे बड़े राक्षस हैं। भक्त यहाँ आकर काल भैरव से इन्हीं आंतरिक शत्रुओं से लड़ने की शक्ति मांगते हैं। हमारे लिए पंचांग और मुहूर्त सिर्फ समय नहीं हैं, बल्कि यह ऊर्जा के प्रवाह को समझने का विज्ञान है ताकि हमारी पूजा का प्रभाव अधिकतम हो।"
कालाष्टमी के महत्व को केवल भय से मुक्ति तक ही सीमित नहीं किया जा सकता। यह दिन तंत्र साधना और गूढ़ आध्यात्मिक अनुष्ठानों के लिए भी विशेष माना जाता है। देश के कई हिस्सों में तांत्रिक और अघोरी संप्रदाय के लोग इस रात को विशेष सिद्धियां प्राप्त करने के लिए अनुष्ठान करते हैं। हालांकि, सामान्य गृहस्थ भक्त सात्विक तरीके से व्रत रखते हैं और भैरव चालीसा, भैरव कवच का पाठ करते हैं। कई भक्त इस दिन अपने पितरों की शांति के लिए भी अनुष्ठान करते हैं, क्योंकि भैरव को तंत्र-मंत्र के देवता और पितरों के उद्धारकर्ता के रूप में भी जाना जाता है।
यह देखने में आ रहा है कि आधुनिकता की दौड़ में भाग रहे युवा भी अब अपनी जड़ों की ओर लौट रहे हैं। आईटी सेक्टर में कार्यरत 28 वर्षीय अंशुल सिंह ने बताया, "जब मैं बड़ी चुनौतियों या अत्यधिक तनाव का सामना करता हूँ, तो मुझे लगता है कि कुछ चीजें तर्क से परे हैं। कालाष्टमी पर भैरव जी की पूजा से एक मानसिक बल मिलता है, यह विश्वास मिलता है कि मेरे ऊपर एक अदृश्य रक्षक की छत्रछाया है। मुहूर्तों का ध्यान रखना मेरे लिए समय सारणी का हिस्सा है, यह दर्शाता है कि हम अपनी परंपराओं के प्रति कितने गंभीर हैं।"
19 नवंबर की कालाष्टमी भक्तों के लिए केवल एक उपवास का दिन नहीं है, बल्कि यह सनातन परंपरा के गहरे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक ज्ञान का प्रकटीकरण है। पंचांग के नियमों और मुहूर्तों के पालन के माध्यम से, भक्त काल भैरव की शक्ति का आह्वान कर रहे हैं ताकि वे जीवन के 'काल' (समय और भय) पर विजय प्राप्त कर सकें। यह त्योहार भारत की उस अंतर्निहित आध्यात्मिक शक्ति को दर्शाता है जो हर चुनौती का सामना करने के लिए तैयार रहती है, बशर्ते वह श्रद्धा और नियम के मार्ग पर चले।

































