मार्गशीर्ष अमावस्या पर धार्मिक आस्था का अनुशीलन बढ़ा, पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार दूध दान और पूजा-विधि को लेकर दिखी श्रद्धा

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मार्गशीर्ष मास की अमावस्या, जो इस वर्ष 20 नवंबर गुरुवार को पड़ रही है, को लेकर देशभर में धार्मिक गतिविधियों की विशेष हलचल दिख रही है. परंपरागत मान्यताओं के अनुसार यह तिथि न केवल आध्यात्मिक साधना के लिए बल्कि ग्रह दोषों की शांति और पारिवारिक सौभाग्य की वृद्धि के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है. अमावस्या का यह दिन ऊर्जा परिवर्तन का विशेष अवसर माना जाता है और भक्त इससे जुड़े अनुष्ठानों का बड़ी श्रद्धा से पालन करते हैं.

सुबह से ही अनेक स्थानों पर लोग नदी, तालाब और कुओं के किनारे पहुंचकर दूध दान की परंपरा निभाते दिखे. पौराणिक मान्यताओं में यह स्पष्ट उल्लेख है कि अमावस्या के दिन बहते जल में कुछ बूंद दूध अर्पित करना जीवन में आ रही रुकावटों और परेशानियों को कम करता है. इसी विश्वास के साथ कई लोग जौ को दूध में भिगोकर प्रवाहित करने की विधि भी अपनाते दिखाई दिए, जिसे सौभाग्य बढ़ाने वाला माना जाता है. धार्मिक कथाओं के अनुसार दूध और जौ का यह संयोजन सकारात्मक ग्रह-ऊर्जा को बढ़ाता है और घर-परिवार की समृद्धि को शक्तिशाली बनाता है.

दोपहर और संध्या के समय पीपल वृक्ष की पूजा भी आज व्यापक रूप से की जा रही है. लोग पीपल में जल चढ़ा रहे हैं, परिक्रमा कर रहे हैं और मिश्री व दूध मिलाकर अर्घ्य अर्पित कर रहे हैं. पीपल वृक्ष की अमावस्या पर विशेष पूजा के बारे में यह मान्यता है कि इससे शनिदेव के प्रकोप में कमी आती है, साथ ही भगवान नारायण और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है. शास्त्रों में पीपल को देववृक्ष कहा गया है, और अमावस्या के दिन इसकी पूजा को अत्यंत शुभ बताया गया है.

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इस तिथि से जुड़ी मनाही भी आज लोगों के बीच चर्चा का विषय रही. परंपरागत शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार अमावस्या के दिन तुलसी और बिल्वपत्र नहीं तोड़े जाते. इन पौधों को देवस्वरूप माना जाता है और अमावस्या पर इन्हें स्पर्श करने से भी बचने की सलाह दी जाती है. घरों में सुबह से ही सफाई और अनावश्यक वस्तुओं को हटाने का कार्य भी देखा गया. मान्यता है कि अमावस्या के दिन कबाड़ बेचना या घर की अव्यवस्था दूर करना नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त कर मन और स्थान दोनों को पवित्र बनाता है.

आध्यात्मिक उपदेशों में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि अमावस्या के दिन दांपत्य संबंध नहीं रखने चाहिए. मान्यता है कि यह काल शरीर और मन की स्थिरता के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता. कई धार्मिक विद्वानों ने इस परंपरा को संयम और तपस्या से जोड़ते हुए बताया कि अमावस्या, विशेषकर मार्गशीर्ष अमावस्या, आत्मसंयम और आध्यात्मिक एकाग्रता का दिन है, इसलिए इसे सांसारिक भोगों से दूर रखकर साधना के लिए उपयोग करना अधिक लाभकारी होता है.

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शाम के समय घरों में और सार्वजनिक मंदिरों में घी के दीप जलाने की तैयारियां भी जोरों पर हैं. विशेष रूप से घर के मंदिर में और तुलसी के पौधे के निकट दीपक प्रज्वलित करने की परंपरा आज व्यापक रूप से निभाई जा रही है. धार्मिक विश्वास के अनुसार अमावस्या की शाम को प्रज्वलित दीप न केवल अंधकार पर प्रकाश का प्रतीक है, बल्कि इससे माता लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती है. कई पुराणों में उल्लेख है कि घी का दीप अमावस्या की ऊर्जा को संतुलित कर घर में स्थिर लक्ष्मी का वास सुनिश्चित करता है.

आज की अमावस्या पर शहरों व गांवों में वातावरण में एक विशेष अध्यात्मिक भाव देखा जा रहा है. लोग अपने-अपने तरीकों से पूजा, दान और साधना के इन पारंपरिक अनुष्ठानों का पालन कर रहे हैं. विद्वानों का कहना है कि मार्गशीर्ष मास स्वयं ही पुण्यकारी माना जाता है, और इसके भीतर पड़ने वाली अमावस्या साधना, मनोवृत्तियों के शोधन और ग्रहशांति के लिए उत्तम अवसर प्रदान करती है.

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कई धार्मिक संस्थानों और पंडितों ने आज के दिन को आत्मचिंतन और नकारात्मकता त्यागने का उत्तम अवसर बताया. उन्होंने कहा कि अमावस्या का महत्व केवल आस्था तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मिक ऊर्जा को स्थिर करने और जीवन में संतुलन लाने का समय भी है. इसी कारण दूध दान से लेकर दीपदान तक सभी परंपराएं किसी न किसी रूप में मन और परिवेश दोनों का शुद्धिकरण करती हैं.

कुल मिलाकर मार्गशीर्ष अमावस्या ने लोगों को धार्मिक आस्था से जोड़ते हुए सामाजिक और आध्यात्मिक स्तर पर सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न की है. श्रद्धालुओं की भीड़, मंदिरों में दीपक की लौ और पानी के किनारे किए जा रहे दान-पुण्य के अनुष्ठान यह दर्शाते हैं कि आधुनिक समय में भी परंपराएं समाज के मनोबल और विश्वास को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाती हैं.

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