बांग्लादेश में एक हिंदू युवक की नृशंस हत्या ने न सिर्फ वहां अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि भारत में भी इस घटना को लेकर जबरदस्त आक्रोश देखने को मिल रहा है. 27 वर्षीय दीपू चंद्र दास की हत्या की खबर सामने आते ही सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक विरोध का माहौल बन गया. मुंबई समेत कई शहरों में विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल जैसे संगठनों ने प्रदर्शन कर बांग्लादेश में हो रही हिंसा की कड़ी निंदा की और वहां की अंतरिम सरकार से दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की.
घटना बांग्लादेश के मयमनसिंह जिले की है, जहां कथित तौर पर ईशनिंदा के आरोप में दीपू चंद्र दास को भीड़ ने बेरहमी से पीट-पीटकर मार डाला. आरोप है कि हत्या के बाद उसके शव को आग के हवाले कर दिया गया. यह घटना 18 दिसंबर को हुई, लेकिन इसके वीडियो और तस्वीरें सामने आने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता और गुस्सा दोनों बढ़ते चले गए. अल्पसंख्यक समुदायों ने इसे बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा के लिए एक और भयावह संकेत बताया है.
भारत में इस घटना का असर सीधे कूटनीतिक स्तर तक पहुंच गया. भारत ने एक सप्ताह के भीतर दूसरी बार बांग्लादेश के उच्चायुक्त को तलब किया, जबकि ढाका ने भी भारत के दूतावास की सुरक्षा को लेकर भारत के राजदूत को समन जारी किया. इन कदमों को दोनों देशों के रिश्तों में बढ़ते तनाव के तौर पर देखा जा रहा है. हालांकि, इसी बीच पूर्व राजनयिक महेश सचदेव ने संकेत दिए हैं कि हालात को संभालने और तनाव कम करने की कोशिशें भी चल रही हैं.
महेश सचदेव का कहना है कि किसी भी देश के लिए दूसरे देश के उच्चायुक्त को तलब करना एक गंभीर कूटनीतिक संदेश होता है. यह इस बात का संकेत है कि दोनों पक्ष किसी खास घटनाक्रम को लेकर अपनी चिंता उच्चतम स्तर पर दर्ज कराना चाहते हैं. उनके मुताबिक, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार मौजूदा हालात को और बिगड़ने से रोकना चाहती है और भारत भी सकारात्मक संकेत मिलने पर उसी भावना से आगे बढ़ने को तैयार है.
इस बीच बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भी दीपू चंद्र दास की हत्या पर गहरा दुख जताया है. शिक्षा सलाहकार सीआर अब्रार ने पीड़ित परिवार से मुलाकात कर संवेदना व्यक्त की और भरोसा दिलाया कि सरकार इस मामले में न्याय सुनिश्चित करेगी. उन्होंने इसे एक जघन्य आपराधिक कृत्य बताया और कहा कि किसी भी आरोप, अफवाह या विचारधारा के नाम पर हिंसा को正 ठहराया नहीं जा सकता. सरकार की ओर से पीड़ित परिवार को आर्थिक और सामाजिक सहायता देने की भी घोषणा की गई है.
बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के कार्यालय ने भी आधिकारिक बयान जारी कर इस हत्या की निंदा की और कहा कि कानून का राज हर हाल में कायम रहेगा. बयान में यह भी स्पष्ट किया गया कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा और मामले की निष्पक्ष जांच कराई जाएगी. हालांकि, जमीनी हकीकत और बार-बार सामने आ रही ऐसी घटनाओं ने अल्पसंख्यक समुदाय के भरोसे को गहरी चोट पहुंचाई है.
भारत में विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों का कहना है कि यह सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ लगातार हो रही हिंसा की कड़ी का हिस्सा है. प्रदर्शनकारियों ने भारत सरकार से मांग की कि वह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को मजबूती से उठाए और बांग्लादेश पर अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का दबाव बनाए. मुंबई में हुए प्रदर्शन के दौरान बांग्लादेश सरकार के खिलाफ नारेबाजी हुई और दोषियों को सजा दिलाने की मांग दोहराई गई.
कूटनीतिक जानकारों का मानना है कि भारत और बांग्लादेश के रिश्ते ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से बेहद अहम रहे हैं. ऐसे में दोनों देशों के बीच बढ़ता तनाव किसी के भी हित में नहीं है. महेश सचदेव ने इसे “इट टेक्स टू टैंगो” की स्थिति बताया, यानी तनाव कम करने के लिए दोनों पक्षों की इच्छा और सहयोग जरूरी है. उनका कहना है कि बांग्लादेशी नेतृत्व को भारत के खिलाफ बेबुनियाद आरोपों से बचना चाहिए और आंतरिक हालात को संभालने पर ध्यान देना चाहिए.
दीपू चंद्र दास की हत्या ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की ओर खींचा है. मानवाधिकार संगठनों ने भी इस घटना की निंदा करते हुए स्वतंत्र और पारदर्शी जांच की मांग की है. सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या सिर्फ बयान और आश्वासन ही काफी हैं, या फिर जमीनी स्तर पर सख्त कार्रवाई और सुरक्षा के ठोस इंतजाम भी देखने को मिलेंगे.
फिलहाल, भारत और बांग्लादेश दोनों ही देश सार्वजनिक रूप से तनाव कम करने की बात कर रहे हैं, लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि दीपू चंद्र दास की हत्या ने रिश्तों में खटास पैदा कर दी है. भारत में उबाल और बांग्लादेश में अंतरिम सरकार की सफाई, दोनों मिलकर इस बात का संकेत दे रहे हैं कि आने वाले दिनों में यह मुद्दा सिर्फ एक आपराधिक घटना नहीं, बल्कि एक बड़ा कूटनीतिक और मानवीय सवाल बना रहेगा. जनता की नजर अब इस पर टिकी है कि क्या दोषियों को वास्तव में सजा मिलेगी और क्या बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों को सुरक्षित भविष्य का भरोसा मिल पाएगा.

































