नए साल 2026 की शुरुआत के साथ ही बसंत पंचमी को लेकर लोगों के मन में जिज्ञासा बनी हुई है कि यह पावन पर्व 23 जनवरी को मनाया जाएगा या 24 जनवरी को। खासतौर पर शिक्षा, कला, संगीत और अध्यात्म से जुड़े लोगों के लिए यह दिन बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। बसंत पंचमी न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा पर्व है, बल्कि यह ऋतु परिवर्तन और सकारात्मक ऊर्जा का भी प्रतीक है। इसी वजह से हर साल इस दिन को लेकर पंचांग और मुहूर्त को लेकर सवाल उठते हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार बसंत पंचमी माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। शास्त्रों में वर्णन है कि इसी दिन सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी ने ज्ञान, बुद्धि और संगीत की देवी मां सरस्वती को प्रकट किया था। इसलिए इस पर्व को मां सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। बसंत पंचमी को श्री पंचमी के नाम से भी जाना जाता है और इसे विद्या, विवेक और वाणी की आराधना का विशेष दिन माना गया है।
पंचांग के अनुसार वर्ष 2026 में माघ शुक्ल पंचमी तिथि की शुरुआत 22 जनवरी को दोपहर 3 बजकर 20 मिनट से होगी और इसका समापन 23 जनवरी को दोपहर 2 बजकर 20 मिनट पर होगा। उदया तिथि को मान्यता दिए जाने के कारण बसंत पंचमी का पर्व 23 जनवरी 2026 को ही मनाना शुभ रहेगा। इसी दिन मां सरस्वती की पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्व रहेगा। ऐसे में 24 जनवरी को बसंत पंचमी मानने का भ्रम सही नहीं माना जा रहा है।
बसंत पंचमी का महत्व केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है। यह पर्व सर्दियों के विदा होने और बसंत ऋतु के आगमन का संकेत देता है। खेतों में सरसों के पीले फूल, पेड़ों पर नई कोपलें और मौसम में आई हल्की गर्माहट इस ऋतु परिवर्तन को दर्शाती है। यही कारण है कि बसंत पंचमी के दिन पीले रंग का विशेष महत्व होता है। लोग पीले या सफेद वस्त्र धारण करते हैं और पीले रंग के पकवानों का भोग मां सरस्वती को अर्पित करते हैं।
पूजा विधि की बात करें तो माना जाता है कि बसंत पंचमी के दिन विधि-विधान और सच्चे मन से मां सरस्वती की पूजा करने से ज्ञान, एकाग्रता और बुद्धि का विकास होता है। इस दिन प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद पूजा स्थल को शुद्ध किया जाता है। मां सरस्वती की प्रतिमा या चित्र को पीले या सफेद वस्त्र पर स्थापित कर षोडशोपचार विधि से पूजा की जाती है। मां को सफेद और पीले फूल, अक्षत, चंदन, पुस्तक, कलम और वाद्य यंत्र अर्पित किए जाते हैं। छात्र-छात्राएं विशेष रूप से मां सरस्वती से विद्या और सफलता का आशीर्वाद मांगते हैं।
बसंत पंचमी का एक और विशेष पहलू इसका अबूझ मुहूर्त होना है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह दिन अबूझ मुहूर्त माना जाता है, यानी इस दिन बिना पंचांग देखे किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत की जा सकती है। शिक्षा की शुरुआत, बच्चों का विद्यारंभ संस्कार, लेखन कार्य, संगीत और कला साधना, नए व्यवसाय या रचनात्मक कार्यों की शुरुआत के लिए यह दिन अत्यंत शुभ माना गया है। यही वजह है कि कई लोग इस दिन नई किताबें खरीदते हैं, बच्चों को अक्षर ज्ञान कराते हैं और कला-साधना का संकल्प लेते हैं।
समाज में बसंत पंचमी का सांस्कृतिक महत्व भी कम नहीं है। स्कूलों, कॉलेजों और शिक्षण संस्थानों में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। कहीं सरस्वती वंदना गूंजती है तो कहीं पीले रंग से सजी हुई रंगोली और सजावट बसंत के आगमन का संदेश देती है। संगीत और कला से जुड़े लोगों के लिए यह दिन प्रेरणा और साधना का प्रतीक बन जाता है।
वर्ष 2026 में बसंत पंचमी 23 जनवरी को मनाई जाएगी और यह दिन धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से विशेष फलदायी माना जा रहा है। सही तिथि, विधि-विधान और अबूझ मुहूर्त की जानकारी के साथ अगर इस दिन मां सरस्वती की आराधना की जाए, तो इसे ज्ञान, विवेक और सकारात्मकता से भरे नए आरंभ का प्रतीक माना जाता है।

































