भगवान विष्णु और ग्रहों के स्वामी सूर्य देव को समर्पित पौष मास में कुछ खास तिथियां बेहद चमत्कारी और मानव कल्याण के लिए होती हैं. पौष शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि सूर्य देव को समर्पित है. मार्तंड सप्तमी एक तिथि नहीं बल्कि संपूर्ण जगत को ऊर्जा देने वाले सूर्य देव की विशेष कृपा प्राप्त करने का पर्व है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन ग्रहों के स्वामी का प्राकट्य हुआ था. रोगों से छुटकारा, आरोग्यता और प्रकाश की ओर ले जाने वाले सूर्य देव को समर्पित इस दिन उनकी आराधना, पूजा पाठ और स्तोत्र आदि का पाठ करने से चमत्कारी लाभ होते हैं. साल 2025 के आखिरी सप्ताह में मार्तंड सप्तमी का पर्व मनाया जाएगा. मार्तंड सप्तमी के दिन सूर्य देव को कुंडली में मजबूत करने और सभी समस्याओं से छुटकारा पाने का बेहद ही खास दिन होता है.
इनके लिए जरूरी
हरिद्वार के विद्वान धर्माचार्य और शास्त्रों के जानकार पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं कि 27 दिसंबर को मार्तंड सप्तमी की खास तिथि का आगमन होगा. जिन जातकों की कुंडली में सूर्य देव नीचे स्थान में विराजमान हैं या ऐसे भाव में बैठे हैं जहां से उनका नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है तो मार्तंड सप्तमी के दिन सूर्य देव को अर्घ्य देने, उनकी स्तुति करने और स्तोत्र आदि का पाठ करने मात्र से लाभ मिलता है. हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, पौष शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को ग्रहों के स्वामी सूर्य देव का प्राकट्य होने की मान्यता बताई गई है.
27 दिसंबर शनिवार को मार्तंड सप्तमी का व्रत किया जाएगा. यह व्रत करने से जीवन में खुशहाली का अनुभव और परिवार में सुख समृद्धि, आरोग्यता बनी रहेगी. 27 दिसंबर शनिवार को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने दैनिक कार्यों से निवृत होकर मार्तंड सप्तमी के व्रत का संकल्प करें और स्नान आदि करने के बाद गंगा के जल में तिल, जौ, गुड़ आदि डालकर सूर्य देव को अर्घ्य दें. इसके बाद सूर्य देव के बीज मंत्र ‘ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः’ का 108 बार जाप करें और वैदिक मंत्रों से सूर्य देव की उपासना करें. मार्तंड सप्तमी के दिन आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने से सभी शारीरिक रोगों, दु:खों और समस्याओं से मुक्ति मिलती है. इसके अलावा सूर्य देव कुंडली में मजबूत होकर आरोग्यता, आत्मविश्वास में वृद्धि और करियर को मजबूत कर देते हैं. आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ मार्तंड सप्तमी के दिन करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है.
वैदिक मंत्र:
ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च।
हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् ॥

































