श्रावस्ती के कटरा स्थित बौद्ध तपोस्थली शुक्रवार को मलेशिया से आए अनुयायियों से गुलजार रही। बौद्ध भिक्षु देवानंद के नेतृत्व में इन अनुयायियों ने बोधि वृक्ष की पारंपरिक विधि से पूजा-अर्चना की। इस अवसर पर एक बौद्ध सभा का भी आयोजन किया गया। सभा को संबोधित करते हुए बौद्ध भिक्षु देवानंद ने जेतवन परिसर के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि बौद्ध धर्म ग्रंथ विनय पिटक में जेतवन की विस्तृत व्याख्या है। आनंद बोधि वृक्ष बोधगया के उस पीपल वृक्ष की शाखा है, जिसके नीचे भगवान बुद्ध को आत्मज्ञान प्राप्त हुआ था। जब गौतम बुद्ध श्रावस्ती आए, तो उनके शिष्य आनंद ने उसी वृक्ष की एक शाखा लाकर जेतवन में रोपित की थी, जिसे अब आनंद बोधि के नाम से जाना जाता है। भगवान बुद्ध ने इसी वृक्ष के नीचे भिक्षुओं के साथ तपस्या करते हुए और धर्म शिक्षा देते हुए 24 वर्षावास (बारिश के मौसम में बिताया गया समय) व्यतीत किए थे। यह वृक्ष आज भी अपने मूल स्वरूप में मौजूद है और इसे लोहे के एंगल लगाकर संरक्षित किया गया है। जेतवन महाविहार में स्थित गंधकुटी मूल रूप से चंदन की लकड़ी से बनी सात मंजिला इमारत थी, जिसका निर्माण अनाथपिंडक ने करवाया था। माना जाता है कि भगवान बुद्ध ने अपने जीवन के सर्वाधिक वर्षावास इसी कुटी में बिताए और यहीं सबसे अधिक उपदेश दिए। इस स्थान का कण-कण बुद्ध की करुणा और ज्ञान से ओत-प्रोत है। चंदन की सुगंध के कारण ही इसे गंधकुटी नाम दिया गया था। गंधकुटी को श्रावस्ती का सबसे महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है और यह अब ईंटों से बने मंदिरनुमा स्तूप के रूप में मौजूद है।
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