नवाबगंज के तराई इलाकों में अपनी विशेष महक और सुगंध के लिए मशहूर काला नमक धान की खेती अब विलुप्त होने की कगार पर है। अधिक पैदावार वाली धान की किस्मों पर किसानों के बढ़ते रुझान के कारण इसकी खेती में भारी कमी आई है। कभी नवाबगंज क्षेत्र काला नमक चावल के उत्पादन के लिए बेजोड़ माना जाता था। जलवायु संकट और पिछले मौसम में कम बारिश जैसे विभिन्न कारणों से यह पारंपरिक धान अपनी पहचान खोता जा रहा है। हालांकि, नवाबगंज क्षेत्र के कुछ किसान अभी भी इस किस्म को बचाने का प्रयास कर रहे हैं। काला नमक धान का उत्पादन भले ही कम हो, लेकिन बाजार में इसकी कीमत अन्य धान की किस्मों से काफी अधिक है, जिससे किसानों को बेहतर मुनाफा मिलता है। अपनी प्राकृतिक खुशबू और गुणवत्ता के लिए यह चावल इतना प्रसिद्ध था कि ब्रिटिश काल में भी इसकी काफी मांग थी। वर्तमान में, नवाबगंज क्षेत्र के शंकरपुर और सबुना गांवों के किसान रामलाल जैसे कई अन्य किसान (जैसे उमरिया और नंदा गांव में) अपने खेतों में काला नमक धान उगाकर इसके अस्तित्व को बचाए हुए हैं। धोबाही के किसान हरीश कुमार सिंह ने बताया कि काला नमक धान को तैयार होने में 130 से 140 दिन लगते हैं। देर से पकने वाली किस्म होने के कारण इसे अधिक पानी की आवश्यकता होती है। किसानों का कहना है कि इस बार भी नवाबगंज क्षेत्र से काला नमक की सुगंध आ रही है, जो इसके सफल उत्पादन का संकेत है। इसके उत्पादन से किसानों की आय दोगुनी होती है और बाजार में इसकी हमेशा अच्छी मांग बनी रहती है।
काला नमक धान की खेती विलुप्त होने की कगार पर: अधिक पैदावार वाली किस्मों के कारण घट रहा रकबा – Ramnagar Semra(Nanpara) News
नवाबगंज के तराई इलाकों में अपनी विशेष महक और सुगंध के लिए मशहूर काला नमक धान की खेती अब विलुप्त होने की कगार पर है। अधिक पैदावार वाली धान की किस्मों पर किसानों के बढ़ते रुझान के कारण इसकी खेती में भारी कमी आई है। कभी नवाबगंज क्षेत्र काला नमक चावल के उत्पादन के लिए बेजोड़ माना जाता था। जलवायु संकट और पिछले मौसम में कम बारिश जैसे विभिन्न कारणों से यह पारंपरिक धान अपनी पहचान खोता जा रहा है। हालांकि, नवाबगंज क्षेत्र के कुछ किसान अभी भी इस किस्म को बचाने का प्रयास कर रहे हैं। काला नमक धान का उत्पादन भले ही कम हो, लेकिन बाजार में इसकी कीमत अन्य धान की किस्मों से काफी अधिक है, जिससे किसानों को बेहतर मुनाफा मिलता है। अपनी प्राकृतिक खुशबू और गुणवत्ता के लिए यह चावल इतना प्रसिद्ध था कि ब्रिटिश काल में भी इसकी काफी मांग थी। वर्तमान में, नवाबगंज क्षेत्र के शंकरपुर और सबुना गांवों के किसान रामलाल जैसे कई अन्य किसान (जैसे उमरिया और नंदा गांव में) अपने खेतों में काला नमक धान उगाकर इसके अस्तित्व को बचाए हुए हैं। धोबाही के किसान हरीश कुमार सिंह ने बताया कि काला नमक धान को तैयार होने में 130 से 140 दिन लगते हैं। देर से पकने वाली किस्म होने के कारण इसे अधिक पानी की आवश्यकता होती है। किसानों का कहना है कि इस बार भी नवाबगंज क्षेत्र से काला नमक की सुगंध आ रही है, जो इसके सफल उत्पादन का संकेत है। इसके उत्पादन से किसानों की आय दोगुनी होती है और बाजार में इसकी हमेशा अच्छी मांग बनी रहती है।



























