बस्ती। मनोरमा नदी, जो कभी अपनी निर्मल धारा और पौराणिक महत्व के लिए जानी जाती थी, अब गंदगी और जलकुंभी के बोझ तले दब गई है। यह नदी अपने उद्धार की प्रतीक्षा कर रही है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मनोरमा नदी महाराजा दशरथ के पुत्रकामेष्टि यज्ञ की साक्षी रही है। उद्दालक ऋषि ने इसे अपनी कनिष्ठा उंगली से प्रकट किया था। यह नदी नकटेश्वर महादेव, मखौड़ाधाम, रामरेखा और हनुमान बाग चकोही जैसे कई पौराणिक स्थलों के पास से गुजरती है। एक समय था जब इस नदी के प्रवाह में मछलियों की चपलता और कछुओं का धीरज देखा जाता था। कार्तिक पूर्णिमा और चैत्र पूर्णिमा पर श्रद्धालु इसके पवित्र जल में स्नान कर अपने पाप धोते थे। आज यह नदी कूड़े-कचरे और जलकुंभी से पटी पड़ी है। नदी की इस दुर्दशा का मुख्य कारण मानवीय लापरवाही है। कुछ लोग इसमें कूड़ा-कचरा डालते हैं, जबकि कुछ कारखाने अपना गंदा और बदबूदार कचरा सीधे नदी में प्रवाहित कर रहे हैं। यह नदी गोंडा जनपद के तिर्रे तालाब से निकलकर लगभग 114 किलोमीटर की दूरी तय करती हुई लालगंज में कुवानों नदी में मिलती है। नदी के उद्धार के लिए पूर्व में कई प्रयास किए गए हैं। वर्ष 2019 में प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वयं अपने हाथों से इसकी सफाई का बीड़ा उठाया था। इसके बाद तत्कालीन जिलाधिकारी प्रियंका निरंजन ने भी फावड़ा चलाकर सफाई अभियान चलाया। विधायक अजय सिंह ने भी अपने समर्थकों के साथ नदी की धारा में उतरकर सफाई का संकल्प लिया था। हालांकि, ये सभी अभियान और संकल्प अधूरे रह गए। मनोरमा नदी आज भी अपने पुराने पवित्र और निर्मल स्वरूप को पाने के लिए किसी उद्धारक की तलाश में है।









































