गेहूं की बुवाई का मौसम शुरू होते ही कृषि विभाग ने किसानों को अहम सलाह दी है। इसका उद्देश्य कम लागत में गेहूं की अच्छी पैदावार सुनिश्चित करना है। कृषि विज्ञान केंद्र सोहना के डॉक्टर मारकंडेय सिंह ने बताया कि वैज्ञानिक तरीकों से बुवाई और देखभाल करके किसान बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। किसानों को सलाह दी गई है कि वे समय पर उपयुक्त प्रजाति के बीज का चयन करें। फफूंद जनित रोगों से बचाव के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 2.5 ग्राम कारबेडिजिम या 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी बायोपेस्टिसाइड से उपचारित करें। इसके बाद बीज को जैव उर्वरक और नैनो डीएपी से उपचारित करके बुवाई करनी चाहिए। डॉक्टर सिंह ने उर्वरकों के प्रयोग के संबंध में मृदा परीक्षण और मृदा स्वास्थ्य कार्ड की संस्तुतियों का पालन करने पर जोर दिया। प्रति बीघा खेत में 24 किलोग्राम यूरिया, 14 किलोग्राम डीएपी और 6 किलोग्राम एमओपी का प्रयोग लाभकारी होता है। बुवाई के समय कुल डीएपी, एमओपी और यूरिया का एक तिहाई भाग (लगभग 8 किलोग्राम) अवश्य डालें। शेष यूरिया की एक तिहाई मात्रा पहली सिंचाई के बाद और अंतिम एक तिहाई मात्रा 55 से 60 दिन बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए। दूसरी टॉप ड्रेसिंग में दानेदार यूरिया की जगह नैनो यूरिया का छिड़काव करने की सलाह दी गई है। आधुनिक कृषि यंत्रों जैसे सीड कम फर्टी ड्रिल, सुपरसीडर या हैप्पी सीडर से बुवाई करने पर बीज और उर्वरक का सही स्थान पर प्रयोग होता है। इससे बीज की बचत होती है और पौधों की वृद्धि भी बेहतर होती है। गेहूं की फसल में बुवाई के 21वें दिन पहली हल्की सिंचाई करनी चाहिए। इस समय पौधे की जड़ें अत्यधिक संवेदनशील होती हैं। समय पर सिंचाई करने से पौधों की बढ़वार और दाने का विकास अच्छा होता है। गेहूं का प्रमुख खरपतवार फेलरिस माइनर, जिसे ‘गेहूं का मामा’ भी कहते हैं, यदि समय पर नियंत्रित न किया जाए तो पैदावार को काफी प्रभावित करता है। इसका उचित और समय पर नियंत्रण आवश्यक है।
कृषि विभाग ने गेहूं बुवाई के लिए सलाह दी:डुमरियागंज में 21वें दिन पहली हल्की सिंचाई करने को कहा
गेहूं की बुवाई का मौसम शुरू होते ही कृषि विभाग ने किसानों को अहम सलाह दी है। इसका उद्देश्य कम लागत में गेहूं की अच्छी पैदावार सुनिश्चित करना है। कृषि विज्ञान केंद्र सोहना के डॉक्टर मारकंडेय सिंह ने बताया कि वैज्ञानिक तरीकों से बुवाई और देखभाल करके किसान बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। किसानों को सलाह दी गई है कि वे समय पर उपयुक्त प्रजाति के बीज का चयन करें। फफूंद जनित रोगों से बचाव के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 2.5 ग्राम कारबेडिजिम या 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी बायोपेस्टिसाइड से उपचारित करें। इसके बाद बीज को जैव उर्वरक और नैनो डीएपी से उपचारित करके बुवाई करनी चाहिए। डॉक्टर सिंह ने उर्वरकों के प्रयोग के संबंध में मृदा परीक्षण और मृदा स्वास्थ्य कार्ड की संस्तुतियों का पालन करने पर जोर दिया। प्रति बीघा खेत में 24 किलोग्राम यूरिया, 14 किलोग्राम डीएपी और 6 किलोग्राम एमओपी का प्रयोग लाभकारी होता है। बुवाई के समय कुल डीएपी, एमओपी और यूरिया का एक तिहाई भाग (लगभग 8 किलोग्राम) अवश्य डालें। शेष यूरिया की एक तिहाई मात्रा पहली सिंचाई के बाद और अंतिम एक तिहाई मात्रा 55 से 60 दिन बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए। दूसरी टॉप ड्रेसिंग में दानेदार यूरिया की जगह नैनो यूरिया का छिड़काव करने की सलाह दी गई है। आधुनिक कृषि यंत्रों जैसे सीड कम फर्टी ड्रिल, सुपरसीडर या हैप्पी सीडर से बुवाई करने पर बीज और उर्वरक का सही स्थान पर प्रयोग होता है। इससे बीज की बचत होती है और पौधों की वृद्धि भी बेहतर होती है। गेहूं की फसल में बुवाई के 21वें दिन पहली हल्की सिंचाई करनी चाहिए। इस समय पौधे की जड़ें अत्यधिक संवेदनशील होती हैं। समय पर सिंचाई करने से पौधों की बढ़वार और दाने का विकास अच्छा होता है। गेहूं का प्रमुख खरपतवार फेलरिस माइनर, जिसे ‘गेहूं का मामा’ भी कहते हैं, यदि समय पर नियंत्रित न किया जाए तो पैदावार को काफी प्रभावित करता है। इसका उचित और समय पर नियंत्रण आवश्यक है।









