श्रावस्ती के कटरा में कंबोडिया से आए बौद्ध अनुयायियों ने पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ बुद्ध पूजा-अर्चना की। इस दौरान उन्होंने शांति, करुणा और मानवता का संदेश दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता बौद्ध भिक्षु देवानंद ने की। पूजा के दौरान बौद्ध भिक्षु देवानंद ने उपस्थित श्रद्धालुओं को अंगुलिमाल के जीवन से जुड़ा एक प्रेरक प्रसंग सुनाया। उन्होंने बताया कि अंगुलिमाल ने 999 लोगों की हत्या की थी और वह जंगलों में कठोर जीवन जी रहा था। देवानंद के अनुसार, अंगुलिमाल अपने अपराधों का प्रायश्चित करना चाहता था। इसी समय भगवान बुद्ध ने उसे सही मार्ग दिखाने का निर्णय लिया। एक दिन जब बुद्ध अंगुलिमाल और उसकी माँ के पास पहुँचे, तो गाँव वालों ने उन्हें क्षेत्र के खतरनाक होने की चेतावनी दी। बुद्ध चेतावनी के बावजूद आगे बढ़ते रहे। जब अंगुलिमाल ने अपनी माँ को आते देखा, तो वह दुविधा में था। तभी बुद्ध उसके सामने प्रकट हुए। अंगुलिमाल ने बुद्ध पर हमला करने का प्रयास किया, लेकिन उन तक पहुँच नहीं सका और उनसे ‘रुकिए!’ कहा। बुद्ध ने शांत स्वर में उत्तर दिया, ‘मैं स्थिर हूँ, अंगुलिमाल। क्या तुम भी स्थिर हो?’ उन्होंने अंगुलिमाल को दया, करुणा और अहिंसा का उपदेश देते हुए समझाया कि वे स्वयं सभी जीवों पर दया कर स्थिर हैं, जबकि अंगुलिमाल हिंसा के मार्ग पर चलते हुए भीतरी अशांति में भटक रहा है। भिक्षु देवानंद ने बताया कि बुद्ध के वचनों से प्रभावित होकर अंगुलिमाल ने अपनी तलवार फेंक दी और उनके चरणों में गिरकर शरण ली। बाद में उसने बुद्ध का भिक्षु बनकर शांतिपूर्ण जीवन का मार्ग अपनाया। कार्यक्रम में मौजूद बौद्ध अनुयायियों ने इस कथा को ज्ञान, क्षमा और आत्म-परिवर्तन का महत्वपूर्ण संदेश बताया। पूजा के समापन के बाद, सभी अनुयायियों ने विश्व शांति और सद्भाव के लिए प्रार्थना की।
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