सिद्धार्थनगर में कागजों में मजदूरों की भीड़, जमीन पर सन्नाटा:गडरखा गांव से उजागर हुआ मनरेगा का सिस्टम-आधारित फर्जी मॉडल

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सिद्धार्थनगर जनपद में मनरेगा अब रोजगार का नहीं, बल्कि आंकड़ों का खेल बनता जा रहा है। विकासखंड बढ़नी के ग्राम गडरखा में सामने आई स्थिति ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यहां फर्जी हाजिरी अब अपवाद नहीं, बल्कि एक तयशुदा प्रणाली बन चुकी है। 2 दिसंबर से 16 दिसंबर के बीच करीब 3000 मजदूरों की हाजिरी मास्टर रोल में दर्ज होना इस बात का संकेत है कि कागजों में विकास की रफ्तार जमीन से कई गुना तेज दिखाई जा रही है। गडरखा गांव में हर दिन एक ही कार्य दिखाया गया और हर दिन सैकड़ों मजदूरों की उपस्थिति दर्ज होती रही। संख्या लगभग स्थिर रही, चेहरे नहीं बदले और फोटो का दृश्य भी लगभग एक जैसा रहा। इससे स्पष्ट होता है कि हाजिरी वास्तविक काम के आधार पर नहीं, बल्कि पहले से तय स्क्रिप्ट के अनुसार भरी गई। फोटो बना हथियार, जियो टैगिंग बनी ढाल मास्टर रोल में लगे फोटो इस पूरे तंत्र की पोल खोलते हैं। वही मजदूर, वही समूह और वही स्थिति—बस नाम अलग-अलग दर्ज। एक ही फोटो को अलग-अलग एंगल से या फोटो से फोटो खींचकर जियो टैगिंग के नाम पर सिस्टम में चढ़ा दिया गया। तकनीक, जो पारदर्शिता के लिए लाई गई थी, यहां फर्जीवाड़े की ढाल बनती दिख रही है। गांव में नदारद मजदूर, रिकॉर्ड में मौजूद मास्टर रोल में दर्ज कई नाम ऐसे हैं, जिनका गांव से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है। कुछ लोग वर्षों से दिल्ली, मुंबई और अन्य शहरों में रहकर काम कर रहे हैं, लेकिन रिकॉर्ड में वे गडरखा गांव में मनरेगा कार्य करते दिखाई दे रहे हैं। इससे यह साफ होता है कि मजदूरों की सूची भी वास्तविकता से कट चुकी है। विकास बनाम लीपापोती जमीनी स्तर पर बड़े कार्यों का अभाव साफ दिखाई देता है। जिन कार्यों को रिकॉर्ड में बड़े पैमाने पर पूरा दिखाया गया है, वे या तो अधूरे हैं या केवल नाममात्र किए गए हैं। खेत, नालियां और रास्ते कागजों में चमक रहे हैं, जबकि जमीन पर सन्नाटा पसरा हुआ है। नीचे से ऊपर तक सिस्टम की चुप्पी इतनी बड़ी संख्या में फर्जी हाजिरी दर्ज होना सामान्य गलती नहीं मानी जा सकती। यह एक संगठित व्यवस्था की ओर इशारा करता है, जहां हर स्तर पर चुप्पी बनी हुई है। डीसी मनरेगा, खंड विकास अधिकारी और मनरेगा लोकपाल की भूमिका पर सवाल इसलिए खड़े हो रहे हैं क्योंकि बिना प्रशासनिक संरक्षण के यह मॉडल लंबे समय तक चलना संभव नहीं माना जाता। गडरखा सिर्फ एक उदाहरण स्थानीय जानकारों के अनुसार गडरखा गांव कोई अकेला मामला नहीं है। यही पैटर्न जिले के अन्य गांवों में भी अपनाया जा रहा है—तय मजदूर, तय फोटो और तय मास्टर रोल। यदि व्यापक जांच हुई, तो यह मॉडल पूरे जिले में फैला हुआ मिल सकता है। भरोसे की योजना पर संकट मनरेगा जैसी योजना ग्रामीणों की आजीविका और सम्मान से जुड़ी है। गडरखा में सामने आई तस्वीर यह दिखाती है कि वास्तविक मजदूर योजना से बाहर हैं और कागजों के मजदूर पूरे सिस्टम पर कब्जा किए हुए हैं। इससे योजना की विश्वसनीयता और उद्देश्य दोनों पर गंभीर संकट खड़ा हो गया है। अब आवश्यकता है कि मास्टर रोल, फोटो साक्ष्य और जियो टैगिंग डेटा की तकनीकी और भौतिक जांच एक साथ की जाए। यदि इस सिस्टम-आधारित फर्जी मॉडल पर समय रहते रोक नहीं लगी, तो गडरखा की कहानी पूरे जिले में मनरेगा के भविष्य पर गहरा सवाल बन जाएगी।
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