सिद्धार्थनगर के कृषि विज्ञान केंद्र सोहना में मंगलवार को फसल अवशेष प्रबंधन पर जनपद स्तरीय जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस दौरान केंद्र के वैज्ञानिकों ने किसानों को फसल अवशेष जलाने से होने वाले दुष्प्रभावों पर विस्तार से चर्चा की और उन्हें इसके उचित प्रबंधन के लिए प्रेरित किया। डॉ. शेष नारायण सिंह ने बताया कि फसल अवशेष जलाने से मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीवों की संख्या कम हो जाती है। इसके साथ ही, मिट्टी के पोषक तत्व घटते हैं, मिट्टी कठोर हो जाती है, और उसकी जल धारण क्षमता में कमी आती है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जीवांश पदार्थ की मात्रा घटने से मिट्टी धीरे-धीरे बंजर होने लगती है, जिससे उपज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। केंद्र के बीज वैज्ञानिक डॉ. सर्वजीत ने कहा कि फसल अवशेषों को जलाने से मिट्टी का स्वास्थ्य खराब हो रहा है और पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। उन्होंने किसानों को सलाह दी कि वे फसल अवशेषों को खेत में ही डीकंपोजर की सहायता से सड़ाएं। डॉ. सर्वजीत ने हैप्पी सीडर, मल्चर, रोटावेटर, सुपर सीडर और स्मार्ट सीडर जैसे कृषि यंत्रों का उपयोग कर फसल अवशेष प्रबंधन करने पर जोर दिया। उन्होंने किसानों से अपने-अपने गांवों में फसल अवशेष जलाने से होने वाले नुकसान के बारे में अन्य किसानों को जागरूक करने का भी आग्रह किया। मृदा वैज्ञानिक डॉ. प्रवेश कुमार ने प्राकृतिक खेती के महत्व पर प्रकाश डाला। उद्यान वैज्ञानिक डॉ. प्रवीण कुमार मिश्र ने बताया कि फसल अवशेषों का उपयोग सब्जियों की खेती और फलों के बगीचों में पलवार (मल्चिंग) के रूप में करने से खरपतवार नियंत्रण में मदद मिलती है, पानी की बचत होती है और उत्पादन में वृद्धि होती है। कार्यक्रम सहायक श्रीमती नीलम सिंह ने कृषकों को जैविक तरीके से सब्जी उत्पादन की जानकारी दी। इस कार्यक्रम में राम नारायण, रबी गिरी, राधेश्याम, मुकेश कुमार मिश्र, अशोक कुमार सहित कई किसानों ने सक्रिय रूप से भाग लिया।
फसल अवशेष प्रबंधन पर जिला स्तरीय जागरूकता कार्यक्रम:सिद्धार्थनगर में कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को किया प्रेरित
सिद्धार्थनगर के कृषि विज्ञान केंद्र सोहना में मंगलवार को फसल अवशेष प्रबंधन पर जनपद स्तरीय जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस दौरान केंद्र के वैज्ञानिकों ने किसानों को फसल अवशेष जलाने से होने वाले दुष्प्रभावों पर विस्तार से चर्चा की और उन्हें इसके उचित प्रबंधन के लिए प्रेरित किया। डॉ. शेष नारायण सिंह ने बताया कि फसल अवशेष जलाने से मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीवों की संख्या कम हो जाती है। इसके साथ ही, मिट्टी के पोषक तत्व घटते हैं, मिट्टी कठोर हो जाती है, और उसकी जल धारण क्षमता में कमी आती है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जीवांश पदार्थ की मात्रा घटने से मिट्टी धीरे-धीरे बंजर होने लगती है, जिससे उपज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। केंद्र के बीज वैज्ञानिक डॉ. सर्वजीत ने कहा कि फसल अवशेषों को जलाने से मिट्टी का स्वास्थ्य खराब हो रहा है और पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। उन्होंने किसानों को सलाह दी कि वे फसल अवशेषों को खेत में ही डीकंपोजर की सहायता से सड़ाएं। डॉ. सर्वजीत ने हैप्पी सीडर, मल्चर, रोटावेटर, सुपर सीडर और स्मार्ट सीडर जैसे कृषि यंत्रों का उपयोग कर फसल अवशेष प्रबंधन करने पर जोर दिया। उन्होंने किसानों से अपने-अपने गांवों में फसल अवशेष जलाने से होने वाले नुकसान के बारे में अन्य किसानों को जागरूक करने का भी आग्रह किया। मृदा वैज्ञानिक डॉ. प्रवेश कुमार ने प्राकृतिक खेती के महत्व पर प्रकाश डाला। उद्यान वैज्ञानिक डॉ. प्रवीण कुमार मिश्र ने बताया कि फसल अवशेषों का उपयोग सब्जियों की खेती और फलों के बगीचों में पलवार (मल्चिंग) के रूप में करने से खरपतवार नियंत्रण में मदद मिलती है, पानी की बचत होती है और उत्पादन में वृद्धि होती है। कार्यक्रम सहायक श्रीमती नीलम सिंह ने कृषकों को जैविक तरीके से सब्जी उत्पादन की जानकारी दी। इस कार्यक्रम में राम नारायण, रबी गिरी, राधेश्याम, मुकेश कुमार मिश्र, अशोक कुमार सहित कई किसानों ने सक्रिय रूप से भाग लिया।









