गडरखा में मनरेगा फर्जीवाड़ा जारी, मास्टर रोल में वही पैटर्न:फर्जी हाजिरी का इंजन थमा नही, 2 से 16 दिसंबर तक एक ही कहानी

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सिद्धार्थनगर जनपद के विकासखंड बढ़नी अंतर्गत ग्राम गडरखा में मनरेगा से जुड़ा फर्जीवाड़ा थमने के बजाय और बेखौफ होता दिख रहा है। पहले सामने आई खबरों और उठे सवालों के बावजूद जमीनी हालात में कोई बदलाव नहीं आया। मास्टर रोल में हाजिरी भरने का वही पैटर्न, वही चेहरे और वही फोटो अब भी रिकॉर्ड में दर्ज हैं। फॉलोअप पड़ताल में सामने आया कि 2 दिसंबर से 16 दिसंबर के बीच हजारों हाजिरियां दर्ज की गईं, लेकिन मास्टर रोल भरने की रफ्तार ज्यों की त्यों बनी रही। हर दिन एक जैसा काम दिखाया गया, लगभग समान संख्या में मजदूर दर्ज किए गए और वही फोटो अलग-अलग तारीखों के साथ सिस्टम में चढ़ाई गई। कागजों में जहां सैकड़ों मजदूर काम करते दिखते हैं, वहीं मौके पर सन्नाटा पसरा रहता है। फोटो और जियो टैगिंग का रिकॉर्ड जमीनी सच्चाई से मेल नहीं खाता। तकनीक, जिसे निगरानी का औजार माना गया था, यहां सिर्फ औपचारिकता बनकर रह गई है। फर्जीवाड़ा उजागर होने के बाद भी नहीं बदला तरीका सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि गड़बड़ी के संकेत सार्वजनिक होने के बाद भी फोटो और जियो टैगिंग की प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं किया गया। वही समूह, वही मुद्रा और वही पृष्ठभूमि अलग-अलग तारीखों में दर्ज होती रही, जिससे यह संकेत मिलता है कि मामला किसी एक स्तर तक सीमित नहीं है। ग्रामीण बोले: नाम कागजों में, लोग गांव में नहीं ग्रामीणों का कहना है कि मास्टर रोल में दर्ज कई मजदूर आज भी गांव में मौजूद नहीं हैं। कुछ लोग वर्षों से बाहर रहकर काम कर रहे हैं, लेकिन रिकॉर्ड में उनकी नियमित उपस्थिति दिखाई जा रही है। मजदूरों की सूची का सत्यापन पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया है। कागजों में पूरा काम, गांव में अधूरा विकास फॉलोअप में यह भी सामने आया कि जिन कार्यों को रिकॉर्ड में पूर्ण या प्रगति पर बताया गया है, वे या तो अधूरे हैं या नाममात्र किए गए हैं। नालियां, रास्ते और अन्य कार्य फाइलों में आगे बढ़ते दिखते हैं, लेकिन गांव में उनका असर नजर नहीं आता। कार्रवाई क्यों नहीं? अधिकारियों की भूमिका पर सवाल इतनी स्पष्ट अनियमितताओं के बाद भी कार्रवाई न होना बड़ा सवाल बन गया है। डीसी मनरेगा, मनरेगा लोकपाल और खंड विकास अधिकारी की भूमिका पर उठ रहे सवाल अब केवल संदेह नहीं, बल्कि सिस्टम की कार्यशैली पर गंभीर टिप्पणी बन चुके हैं। अन्य गांवों में भी अपनाए जाने की चर्चा जानकारों के अनुसार गडरखा में दिख रहा मॉडल जिले के अन्य हिस्सों में भी अपनाए जाने की चर्चा है—तय मजदूर, तय फोटो और तय मास्टर रोल। यदि यही स्थिति बनी रही तो मनरेगा का उद्देश्य सिर्फ आंकड़ों तक सीमित रह जाएगा। स्वतंत्र सत्यापन का अभाव फॉलोअप के दौरान किसी भी स्वतंत्र भौतिक सत्यापन की ठोस प्रक्रिया सामने नहीं आई। न कार्यस्थल का वास्तविक मिलान हुआ और न ही फोटो व नामों की तकनीकी जांच। इससे यह संदेश जा रहा है कि व्यवस्था ने सवालों को नजरअंदाज करना ही बेहतर समझा है। साख पर दाग बनता गडरखा ग्रामीणों की आजीविका से जुड़ी मनरेगा योजना गडरखा में लगातार सवालों के घेरे में है। फर्जी हाजिरी का यह इंजन रुकने का नाम नहीं ले रहा। समय रहते सख्त और निष्पक्ष जांच नहीं हुई तो गडरखा एक गांव की खबर नहीं, बल्कि पूरे जिले में मनरेगा की साख पर स्थायी दाग बन जाएगा।
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