सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में हिन्दी के प्रख्यात कवि-आलोचक प्रो. बजरंग बिहारी तिवारी ने ‘शब्द, साहित्य और मनुष्य’ विषय पर विद्वत वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि शब्द को समझना एक साधना है और शब्दों के दार्शनिक गलियारे से गुजरने के लिए शब्द साधना दृष्टि प्रदान करती है। प्रो. तिवारी ने शब्द साधना के क्रम में संस्कृत की परंपरा में परा, पश्यन्ती, मध्यमा और वैखरी की चर्चा के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने संस्कृत के सुप्रसिद्ध आचार्यों और उनकी कृतियों का भी उल्लेख किया। अपने वक्तव्य में प्रोफेसर तिवारी ने समकालीन संस्कृत साहित्य पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने जयशंकर प्रसाद की कृति में व्यक्त पर्यावरण विषयक चिंताओं के समसामयिक महत्व पर चर्चा करते हुए कहा कि पर्यावरण संरक्षण आज हमारे लिए एक बड़ी चुनौती है, जिसे स्वीकारना हमारी जिम्मेदारी है। उन्होंने आगाह किया कि दूषित होती पर्यावरणीय स्थितियों के कारण साहित्य और पाठक की आने वाली पीढ़ियों के मध्य संवाद कठिन होता जा रहा है। यह स्थिति भविष्य में हमारे गौरवशाली मध्यकालीन साहित्य के महत्व को समझने, बताने और पढ़ने-पढ़ाने में बड़ी बाधा उत्पन्न कर सकती है। कार्यक्रम में अतिथि परिचय डॉ. रेनू त्रिपाठी ने दिया, जबकि हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ. सत्येन्द्र कुमार दुबे ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. हरीशकुमार शर्मा ने आभार ज्ञापन किया। इस अवसर पर महाविद्यालयों के प्राध्यापकों में प्रो. प्रकाशचन्द्र गिरि, प्रो. शैलेन्द्र नाथ मिश्र, डॉ. राणा प्रताप तिवारी, डॉ. विपिन यादव, डॉ. राघवेन्द्र सिंह, डॉ. विजय निषाद सहित विश्वविद्यालय के शिक्षकों आनंद, ममता, सुजाता और बड़ी संख्या में विद्यार्थी व शोधार्थी उपस्थित रहे। कार्यक्रम के अंत में विभागाध्यक्ष ने मुख्य अतिथि प्रोफेसर बजरंग बिहारी तिवारी को गौतम बुद्ध की प्रतिमा का स्मृति-चिह्न भेंट किया और पुनः पधारने के आग्रह के साथ कार्यक्रम के विश्राम की घोषणा की।
शब्द साधना पर कवि-आलोचक का व्याख्यान:सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में 'शब्द, साहित्य और मनुष्य' विषय पर की चर्चा
सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में हिन्दी के प्रख्यात कवि-आलोचक प्रो. बजरंग बिहारी तिवारी ने ‘शब्द, साहित्य और मनुष्य’ विषय पर विद्वत वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि शब्द को समझना एक साधना है और शब्दों के दार्शनिक गलियारे से गुजरने के लिए शब्द साधना दृष्टि प्रदान करती है। प्रो. तिवारी ने शब्द साधना के क्रम में संस्कृत की परंपरा में परा, पश्यन्ती, मध्यमा और वैखरी की चर्चा के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने संस्कृत के सुप्रसिद्ध आचार्यों और उनकी कृतियों का भी उल्लेख किया। अपने वक्तव्य में प्रोफेसर तिवारी ने समकालीन संस्कृत साहित्य पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने जयशंकर प्रसाद की कृति में व्यक्त पर्यावरण विषयक चिंताओं के समसामयिक महत्व पर चर्चा करते हुए कहा कि पर्यावरण संरक्षण आज हमारे लिए एक बड़ी चुनौती है, जिसे स्वीकारना हमारी जिम्मेदारी है। उन्होंने आगाह किया कि दूषित होती पर्यावरणीय स्थितियों के कारण साहित्य और पाठक की आने वाली पीढ़ियों के मध्य संवाद कठिन होता जा रहा है। यह स्थिति भविष्य में हमारे गौरवशाली मध्यकालीन साहित्य के महत्व को समझने, बताने और पढ़ने-पढ़ाने में बड़ी बाधा उत्पन्न कर सकती है। कार्यक्रम में अतिथि परिचय डॉ. रेनू त्रिपाठी ने दिया, जबकि हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ. सत्येन्द्र कुमार दुबे ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. हरीशकुमार शर्मा ने आभार ज्ञापन किया। इस अवसर पर महाविद्यालयों के प्राध्यापकों में प्रो. प्रकाशचन्द्र गिरि, प्रो. शैलेन्द्र नाथ मिश्र, डॉ. राणा प्रताप तिवारी, डॉ. विपिन यादव, डॉ. राघवेन्द्र सिंह, डॉ. विजय निषाद सहित विश्वविद्यालय के शिक्षकों आनंद, ममता, सुजाता और बड़ी संख्या में विद्यार्थी व शोधार्थी उपस्थित रहे। कार्यक्रम के अंत में विभागाध्यक्ष ने मुख्य अतिथि प्रोफेसर बजरंग बिहारी तिवारी को गौतम बुद्ध की प्रतिमा का स्मृति-चिह्न भेंट किया और पुनः पधारने के आग्रह के साथ कार्यक्रम के विश्राम की घोषणा की।









































