बर्डपुर स्थित श्री साईं फार्मा क्लीनिक में गर्भस्थ शिशु की मौत और कथित अवैध ऑपरेशन के मामले में प्रशासनिक कार्रवाई हुई है। दैनिक भास्कर में खबर प्रकाशित होने के बाद जिलाधिकारी शिवशरणप्पा जी.एन. ने मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए मुख्य चिकित्सा अधिकारी को तत्काल जांच के आदेश दिए हैं। जिलाधिकारी के निर्देश पर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. रजत कुमार चौरसिया ने बर्डपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अधीक्षक डॉ. सुबोध चंद्र को प्राथमिक जांच सौंपी है। उन्हें इस प्रकरण की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया है। जांच में क्लीनिक के पंजीकरण की वैधता, वहां किए गए उपचार, डिलीवरी और कथित ऑपरेशन की प्रक्रिया की वैधानिकता पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। साथ ही, शिकायत में लगाए गए सभी आरोपों की भी गहनता से पड़ताल की जाएगी। यह कार्रवाई तब सामने आई है जब पीड़ित आशीष द्वारा पहले ही सीएमओ कार्यालय में लिखित शिकायत दी जा चुकी थी। उस समय सीएमओ ने “जानकारी नहीं होने” की बात कही थी। मीडिया में मामला उजागर होने और जिलाधिकारी के संज्ञान के बाद जांच के आदेश ने स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सूत्रों के अनुसार, जांच में यह भी देखा जाएगा कि श्री साईं फार्मा क्लीनिक का पंजीकरण केवल ओपीडी सेवाओं के लिए था या नहीं। इसके अलावा, वहां डिलीवरी और “छोटा ऑपरेशन” किस नियम के तहत किया गया, और अल्ट्रासाउंड, डिलीवरी तथा टांके लगाने की प्रक्रिया किसने संपन्न की। आशा कार्यकर्ता की भूमिका और शिशु की मौत व महिला की बिगड़ती हालत के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों की पहचान भी जांच का हिस्सा होगी। इस ताजा घटना ने जिले में पहले से चल रहे फर्जी डिग्री और अवैध अस्पतालों के आरोपों को फिर से चर्चा में ला दिया है। इटवा के लाइफ केयर हॉस्पिटल का एक पुराना मामला अभी तक लंबित है, जहां डॉक्टर ने स्वयं अपनी डिग्री के दुरुपयोग की शिकायत की थी। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि क्या यह जांच केवल एक क्लीनिक तक सीमित रहेगी या पूरे जिले में संचालित कथित अवैध अस्पतालों पर भी व्यापक कार्रवाई की जाएगी। जांच के दायरे में ये पॉइंट शामिल सूत्रों के अनुसार जांच में यह भी देखा जाएगा कि श्री साईं फार्मा क्लिनिक का पंजीकरण केवल ओपीडी के लिए था या नहीं। वहां डिलीवरी और “छोटा ऑपरेशन” किस नियम के तहत किया गया। अल्ट्रासाउंड, डिलीवरी और टांके लगाने की प्रक्रिया किसने की।
सिद्धार्थनगर में बच्चे की मौत पर डीएम का एक्शन:बाद श्री साईं फार्मा क्लीनिक की जांच के आदेश
बर्डपुर स्थित श्री साईं फार्मा क्लीनिक में गर्भस्थ शिशु की मौत और कथित अवैध ऑपरेशन के मामले में प्रशासनिक कार्रवाई हुई है। दैनिक भास्कर में खबर प्रकाशित होने के बाद जिलाधिकारी शिवशरणप्पा जी.एन. ने मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए मुख्य चिकित्सा अधिकारी को तत्काल जांच के आदेश दिए हैं। जिलाधिकारी के निर्देश पर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. रजत कुमार चौरसिया ने बर्डपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अधीक्षक डॉ. सुबोध चंद्र को प्राथमिक जांच सौंपी है। उन्हें इस प्रकरण की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया है। जांच में क्लीनिक के पंजीकरण की वैधता, वहां किए गए उपचार, डिलीवरी और कथित ऑपरेशन की प्रक्रिया की वैधानिकता पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। साथ ही, शिकायत में लगाए गए सभी आरोपों की भी गहनता से पड़ताल की जाएगी। यह कार्रवाई तब सामने आई है जब पीड़ित आशीष द्वारा पहले ही सीएमओ कार्यालय में लिखित शिकायत दी जा चुकी थी। उस समय सीएमओ ने “जानकारी नहीं होने” की बात कही थी। मीडिया में मामला उजागर होने और जिलाधिकारी के संज्ञान के बाद जांच के आदेश ने स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सूत्रों के अनुसार, जांच में यह भी देखा जाएगा कि श्री साईं फार्मा क्लीनिक का पंजीकरण केवल ओपीडी सेवाओं के लिए था या नहीं। इसके अलावा, वहां डिलीवरी और “छोटा ऑपरेशन” किस नियम के तहत किया गया, और अल्ट्रासाउंड, डिलीवरी तथा टांके लगाने की प्रक्रिया किसने संपन्न की। आशा कार्यकर्ता की भूमिका और शिशु की मौत व महिला की बिगड़ती हालत के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों की पहचान भी जांच का हिस्सा होगी। इस ताजा घटना ने जिले में पहले से चल रहे फर्जी डिग्री और अवैध अस्पतालों के आरोपों को फिर से चर्चा में ला दिया है। इटवा के लाइफ केयर हॉस्पिटल का एक पुराना मामला अभी तक लंबित है, जहां डॉक्टर ने स्वयं अपनी डिग्री के दुरुपयोग की शिकायत की थी। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि क्या यह जांच केवल एक क्लीनिक तक सीमित रहेगी या पूरे जिले में संचालित कथित अवैध अस्पतालों पर भी व्यापक कार्रवाई की जाएगी। जांच के दायरे में ये पॉइंट शामिल सूत्रों के अनुसार जांच में यह भी देखा जाएगा कि श्री साईं फार्मा क्लिनिक का पंजीकरण केवल ओपीडी के लिए था या नहीं। वहां डिलीवरी और “छोटा ऑपरेशन” किस नियम के तहत किया गया। अल्ट्रासाउंड, डिलीवरी और टांके लगाने की प्रक्रिया किसने की।









































