महराजगंज के फरेंदा क्षेत्र में भेड़ पालकों को कड़ाके की सर्दी का सामना करना पड़ रहा है। गलन भरी ठंड में सैकड़ों भेड़ों का पेट भरना उनके लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है। दिन-रात भेड़ों के झुंड के पीछे भटकना उनके लिए मजदूरी से भी कठिन कार्य साबित हो रहा है। फरेंदा ब्लॉक के जंगलों और खेतों में रामू गड़रिया जैसे भेड़ पालक इन दिनों सुबह से शाम तक भेड़ों के झुंड के पीछे घूमते रहते हैं। तापमान 4-5 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है और सर्द हवाएं चलती हैं। ऐसे में 200-300 भेड़ों को चारा खिलाना आवश्यक होता है। गीले कपड़े, फिसलन भरी राहें और रात में ठंड से कांपते हुए भी उन्हें भेड़ों को चराना पड़ता है, जो उनकी दैनिक दिनचर्या का हिस्सा है। एक भेड़ पालक के अनुसार, “सैकड़ों भेड़ें हैं, यदि एक भी भूखी रह जाए तो पूरा झुंड बिखर जाता है।” घास की कमी के कारण उन्हें दूर-दूर तक भटकना पड़ता है। सैकड़ों भेड़ों को नियंत्रित रखना, उन्हें जंगली जानवरों से बचाना और ठंड में उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखना आसान नहीं होता। दिन भर चलने से उनके पैर सुन्न हो जाते हैं और हाथ जम जाते हैं। रात में भूख से बेचैन भेड़ें उन्हें जगा देती हैं, और यह सिलसिला चलता रहता है। मुसहर समुदाय से संबंध रखने वाले ये पालक पहले भेड़िहारी गांव जैसे केंद्रों से जुड़े थे, लेकिन अब आर्थिक मजबूरी के कारण वे सैकड़ों भेड़ें पाल रहे हैं। उनके कच्चे घरों में बच्चे और महिलाएं भी ठंड से ठिठुरते रहते हैं। उनकी आय मुख्य रूप से ऊन बेचने या भेड़ों की बिक्री से होती है, लेकिन सर्दी के मौसम में बीमारियाँ उन्हें घेर लेती हैं। एक परिवार की कहानी बताते हुए कहा गया कि पिता बाहर होते हैं और बेटा बीमार, फिर भी वे हार नहीं मानते। उनका कहना है कि सरकारी योजनाएं उन तक नहीं पहुंच पाती हैं। इन विपरीत परिस्थितियों के बावजूद, भेड़ पालक अपनी आजीविका के लिए संघर्ष जारी रखे हुए हैं।
महराजगंज में भेड़ पालकों पर सर्दी का प्रकोप: गलन भरी ठंड में भेड़ों का पेट भरना जानलेवा चुनौती – Pharenda News
महराजगंज के फरेंदा क्षेत्र में भेड़ पालकों को कड़ाके की सर्दी का सामना करना पड़ रहा है। गलन भरी ठंड में सैकड़ों भेड़ों का पेट भरना उनके लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है। दिन-रात भेड़ों के झुंड के पीछे भटकना उनके लिए मजदूरी से भी कठिन कार्य साबित हो रहा है। फरेंदा ब्लॉक के जंगलों और खेतों में रामू गड़रिया जैसे भेड़ पालक इन दिनों सुबह से शाम तक भेड़ों के झुंड के पीछे घूमते रहते हैं। तापमान 4-5 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है और सर्द हवाएं चलती हैं। ऐसे में 200-300 भेड़ों को चारा खिलाना आवश्यक होता है। गीले कपड़े, फिसलन भरी राहें और रात में ठंड से कांपते हुए भी उन्हें भेड़ों को चराना पड़ता है, जो उनकी दैनिक दिनचर्या का हिस्सा है। एक भेड़ पालक के अनुसार, “सैकड़ों भेड़ें हैं, यदि एक भी भूखी रह जाए तो पूरा झुंड बिखर जाता है।” घास की कमी के कारण उन्हें दूर-दूर तक भटकना पड़ता है। सैकड़ों भेड़ों को नियंत्रित रखना, उन्हें जंगली जानवरों से बचाना और ठंड में उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखना आसान नहीं होता। दिन भर चलने से उनके पैर सुन्न हो जाते हैं और हाथ जम जाते हैं। रात में भूख से बेचैन भेड़ें उन्हें जगा देती हैं, और यह सिलसिला चलता रहता है। मुसहर समुदाय से संबंध रखने वाले ये पालक पहले भेड़िहारी गांव जैसे केंद्रों से जुड़े थे, लेकिन अब आर्थिक मजबूरी के कारण वे सैकड़ों भेड़ें पाल रहे हैं। उनके कच्चे घरों में बच्चे और महिलाएं भी ठंड से ठिठुरते रहते हैं। उनकी आय मुख्य रूप से ऊन बेचने या भेड़ों की बिक्री से होती है, लेकिन सर्दी के मौसम में बीमारियाँ उन्हें घेर लेती हैं। एक परिवार की कहानी बताते हुए कहा गया कि पिता बाहर होते हैं और बेटा बीमार, फिर भी वे हार नहीं मानते। उनका कहना है कि सरकारी योजनाएं उन तक नहीं पहुंच पाती हैं। इन विपरीत परिस्थितियों के बावजूद, भेड़ पालक अपनी आजीविका के लिए संघर्ष जारी रखे हुए हैं।









































