आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कुमारगंज (अयोध्या) द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती में सात दिवसीय मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन हो गया। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान (अटारी), कानपुर द्वारा वित्त पोषित आर्या परियोजना के अंतर्गत आयोजित इस कार्यक्रम में 25 युवाओं और किसानों ने भाग लिया। इसका उद्देश्य उन्हें स्वरोजगार से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाना था। समापन सत्र में उप निदेशक कृषि, बस्ती अशोक कुमार गौतम मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। उन्होंने प्रतिभागियों को मधुमक्खी पालन के महत्व और इससे होने वाले लाभों के बारे में जानकारी दी। प्रशिक्षण के दौरान कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों और विषय विशेषज्ञों ने मधुमक्खी पालन के सैद्धांतिक और व्यावहारिक पहलुओं पर विस्तार से जानकारी दी। इसमें मधुमक्खियों की प्रमुख प्रजातियाँ, मधुमक्खी बक्सों की स्थापना, कॉलोनी प्रबंधन, रानी मधुमक्खी का महत्व, शहद उत्पादन की वैज्ञानिक विधियाँ, मोम एवं अन्य उप-उत्पादों का संग्रह, रोग एवं कीट प्रबंधन, शहद की गुणवत्ता, पैकेजिंग एवं विपणन जैसे महत्वपूर्ण विषय शामिल थे। केंद्र के प्रभारी अधिकारी डॉ. पी. के. मिश्रा ने बताया कि मधुमक्खी पालन से युवाओं और कृषकों को अतिरिक्त आय का सशक्त स्रोत मिलता है। साथ ही, फसलों में परागण बढ़ने से उत्पादन एवं गुणवत्ता में भी उल्लेखनीय वृद्धि होती है। भूमि संरक्षण अधिकारी डॉ. राज मंगल चौधरी ने प्रतिभागियों को मधुमक्खी बक्सों का निरीक्षण, शहद निष्कर्षण तथा आवश्यक उपकरणों के प्रयोग का व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया। उन्होंने मधुमक्खी पालन में माइग्रेशन के महत्व पर भी प्रकाश डाला। प्रशिक्षण कोर्स कोऑर्डिनेटर एवं फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डॉ. प्रेम शंकर ने मधुमक्खी पालन को युवाओं के लिए एक सशक्त स्वरोजगार विकल्प बताया। उन्होंने आधुनिक बॉक्स प्रबंधन, शहद की गुणवत्ता बनाए रखने तथा बाजार से जुड़ाव की सरल तकनीकों की जानकारी दी। गृह विज्ञान वैज्ञानिक डॉ. अंजलि वर्मा ने शहद को पोषक एवं औषधीय खाद्य पदार्थ बताते हुए महिलाओं के लिए इससे जुड़े मूल्य संवर्धन की संभावनाओं पर चर्चा की। शस्य विज्ञान वैज्ञानिक हरिओम मिश्रा ने मधुमक्खी पालन को कृषि के साथ जोड़कर आय बढ़ाने का प्रभावी साधन बताया।
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