महराजगंज के फरेंदा क्षेत्र में गेहूं की फसल में यूरिया खाद डालना किसानों के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन गया है। कड़ाके की ठंड और सुबह की ओस के कारण खेत गीले और फिसलन भरे रहते हैं, जिससे खाद छिड़कने में काफी कठिनाई होती है। फरेंदा ब्लॉक के कई गांवों में किसान इन दिनों गेहूं की पहली सिंचाई के बाद यूरिया डालने में जुटे हैं। सर्दी का मौसम शुरू होते ही तापमान में गिरावट आई है। सुबह 6 बजे से ही खेतों में घना कोहरा छा जाता है और ओस की ठंडी बूंदें खेतों को पूरी तरह भिगो देती हैं। ऐसे में खाद डालने के लिए किसानों को गीले खेतों में उतरना पड़ता है, जो फिसलन भरा होता है। स्थानीय किसान रामप्रताप ने बताया, “सिंचाई के बाद खेत गीला रहता है और ओस गिरने पर पैर फिसलने का डर रहता है। यूरिया को फसल में समान रूप से छिड़कना आवश्यक है, अन्यथा फसल प्रभावित हो सकती है। इस काम के लिए ठंड सहते हुए 2-3 घंटे खेत में रहना पड़ता है।” फरेंदा के जंगलजोगियाबारी गांव की किसान महिला सुनीता देवी ने कहा कि इस मेहनत से ही अन्न पैदा होता है। उन्होंने स्वास्थ्य का ध्यान रखने की आवश्यकता पर भी जोर दिया, क्योंकि ठंड में काम करना जोखिम भरा हो सकता है। कृषि विशेषज्ञ डॉ. एसएन सिंह के अनुसार, गेहूं की पहली सिंचाई बुवाई के 21-25 दिन बाद करनी चाहिए और प्रति एकड़ 25-30 किलो यूरिया डालना चाहिए। उन्होंने बताया कि गीले खेत में खाद डालने से यह मिट्टी में बेहतर घुलती है। हालांकि, सुरक्षा के लिए किसानों को रबड़ के जूते और गर्म कपड़े पहनने तथा फिसलन से बचने के लिए खेत के किनारे से खाद फेंकने की सलाह दी गई है। जिला कृषि विभाग ने फरेंदा में शिविर लगाकर किसानों को आवश्यक सलाह दी है। यूरिया की कालाबाजारी रोकने के लिए निगरानी बढ़ाई गई है। फरेंदा के ब्लॉक अधिकारी (बीओ) ने बताया कि किसानों को मुफ्त यूरिया वितरण और जैविक खाद के उपयोग पर जोर दिया जा रहा है। साथ ही, सर्दी के मौसम में किसानों के लिए स्वास्थ्य शिविर भी आयोजित किए जा रहे हैं। इन चुनौतियों के बावजूद, किसान अपनी परंपरागत तरीके से खेती जारी रखे हुए हैं। वे ठंडी हवाओं के बीच खेतों में कड़ी मेहनत कर रहे हैं ताकि फसल का उचित उत्पादन सुनिश्चित हो सके।
फरेंदा में गेहूं की फसल में यूरिया डालना चुनौती: कड़ाके की ठंड और ओस के कारण खेतों में काम मुश्किल – Pharenda News
महराजगंज के फरेंदा क्षेत्र में गेहूं की फसल में यूरिया खाद डालना किसानों के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन गया है। कड़ाके की ठंड और सुबह की ओस के कारण खेत गीले और फिसलन भरे रहते हैं, जिससे खाद छिड़कने में काफी कठिनाई होती है। फरेंदा ब्लॉक के कई गांवों में किसान इन दिनों गेहूं की पहली सिंचाई के बाद यूरिया डालने में जुटे हैं। सर्दी का मौसम शुरू होते ही तापमान में गिरावट आई है। सुबह 6 बजे से ही खेतों में घना कोहरा छा जाता है और ओस की ठंडी बूंदें खेतों को पूरी तरह भिगो देती हैं। ऐसे में खाद डालने के लिए किसानों को गीले खेतों में उतरना पड़ता है, जो फिसलन भरा होता है। स्थानीय किसान रामप्रताप ने बताया, “सिंचाई के बाद खेत गीला रहता है और ओस गिरने पर पैर फिसलने का डर रहता है। यूरिया को फसल में समान रूप से छिड़कना आवश्यक है, अन्यथा फसल प्रभावित हो सकती है। इस काम के लिए ठंड सहते हुए 2-3 घंटे खेत में रहना पड़ता है।” फरेंदा के जंगलजोगियाबारी गांव की किसान महिला सुनीता देवी ने कहा कि इस मेहनत से ही अन्न पैदा होता है। उन्होंने स्वास्थ्य का ध्यान रखने की आवश्यकता पर भी जोर दिया, क्योंकि ठंड में काम करना जोखिम भरा हो सकता है। कृषि विशेषज्ञ डॉ. एसएन सिंह के अनुसार, गेहूं की पहली सिंचाई बुवाई के 21-25 दिन बाद करनी चाहिए और प्रति एकड़ 25-30 किलो यूरिया डालना चाहिए। उन्होंने बताया कि गीले खेत में खाद डालने से यह मिट्टी में बेहतर घुलती है। हालांकि, सुरक्षा के लिए किसानों को रबड़ के जूते और गर्म कपड़े पहनने तथा फिसलन से बचने के लिए खेत के किनारे से खाद फेंकने की सलाह दी गई है। जिला कृषि विभाग ने फरेंदा में शिविर लगाकर किसानों को आवश्यक सलाह दी है। यूरिया की कालाबाजारी रोकने के लिए निगरानी बढ़ाई गई है। फरेंदा के ब्लॉक अधिकारी (बीओ) ने बताया कि किसानों को मुफ्त यूरिया वितरण और जैविक खाद के उपयोग पर जोर दिया जा रहा है। साथ ही, सर्दी के मौसम में किसानों के लिए स्वास्थ्य शिविर भी आयोजित किए जा रहे हैं। इन चुनौतियों के बावजूद, किसान अपनी परंपरागत तरीके से खेती जारी रखे हुए हैं। वे ठंडी हवाओं के बीच खेतों में कड़ी मेहनत कर रहे हैं ताकि फसल का उचित उत्पादन सुनिश्चित हो सके।









































