बलरामपुर के सोहेलवा जंगल से सटे सीमावर्ती गांवों में जंगली जानवरों का खतरा बढ़ गया है। हाल ही में दो महिलाओं की मौत के बाद इलाके में दहशत का माहौल है। लोग दिन निकलने तक घरों से बाहर निकलने से कतरा रहे हैं, खासकर महिलाएं। इस खतरे के कारण जंगल से सटे गांवों का सामान्य जनजीवन प्रभावित हुआ है। खेत, जंगल और नदी तक जाने वाले रास्ते सुनसान हो गए हैं। पहले जो महिलाएं निडर होकर पूजा-पाठ, लकड़ी लाने या अन्य दैनिक कार्यों के लिए जंगल जाती थीं, वे अब अकेले जाने से डर रही हैं। अब महिलाएं समूह बनाकर और हाथों में कुल्हाड़ी लेकर ही बाहर निकल रही हैं। स्थानीय महिलाओं ने बताया कि कुछ दिन पहले रात में घर के बाहर कुत्तों के भौंकने की आवाज सुनकर उनकी नींद खुली। टॉर्च की रोशनी में उन्होंने देखा कि दरवाजे के पास एक धारीदार, ऊंचे कद का बाघ खड़ा था। उनका कहना है कि वे घर से बाहर नहीं निकलीं, जिससे एक बड़ी घटना टल गई। इस घटना के बाद से पूरे गांव में भय का माहौल है। जंगली जानवरों के डर का असर अब स्थानीय आस्था और परंपराओं पर भी दिखाई दे रहा है। गांव में बारिश न होने पर महिलाएं पहले जंगल पार कर नदी तक जाती थीं। वहां से गंगाजल लाकर कुओं और मंदिरों में चढ़ाया जाता था। अच्छी बारिश और फसल होने पर दोबारा नदी जाकर जल लौटाने की भी परंपरा है। हालांकि, इस बार जंगली जानवरों(बाघ)के डर के कारण महिलाएं नदी तक जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही हैं। इन परिस्थितियों में महिलाओं ने सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) की चौकी के पास ही अपनी परंपरागत पूजा करना सुरक्षित समझा।यह दर्शाता है कि एक ओर उनकी आस्था है, वहीं दूसरी ओर जान का खतरा भी है। सोहेलवा जंगल का यह खतरा अब सीमावर्ती गांवों की दैनिक वास्तविकता बन गया है। ग्रामीण प्रशासन से सुरक्षा की मांग कर रहे हैं, ताकि इन गांवों में सामान्य जीवन बहाल हो सके।
जंगली जानवरों के डर से बदलीं परंपराएं:सोहेलवा क्षेत्र में महिलाएं चौकी के पास कर रहीं पूजा, ग्रामीणों ने सुरक्षा की मांग की
बलरामपुर के सोहेलवा जंगल से सटे सीमावर्ती गांवों में जंगली जानवरों का खतरा बढ़ गया है। हाल ही में दो महिलाओं की मौत के बाद इलाके में दहशत का माहौल है। लोग दिन निकलने तक घरों से बाहर निकलने से कतरा रहे हैं, खासकर महिलाएं। इस खतरे के कारण जंगल से सटे गांवों का सामान्य जनजीवन प्रभावित हुआ है। खेत, जंगल और नदी तक जाने वाले रास्ते सुनसान हो गए हैं। पहले जो महिलाएं निडर होकर पूजा-पाठ, लकड़ी लाने या अन्य दैनिक कार्यों के लिए जंगल जाती थीं, वे अब अकेले जाने से डर रही हैं। अब महिलाएं समूह बनाकर और हाथों में कुल्हाड़ी लेकर ही बाहर निकल रही हैं। स्थानीय महिलाओं ने बताया कि कुछ दिन पहले रात में घर के बाहर कुत्तों के भौंकने की आवाज सुनकर उनकी नींद खुली। टॉर्च की रोशनी में उन्होंने देखा कि दरवाजे के पास एक धारीदार, ऊंचे कद का बाघ खड़ा था। उनका कहना है कि वे घर से बाहर नहीं निकलीं, जिससे एक बड़ी घटना टल गई। इस घटना के बाद से पूरे गांव में भय का माहौल है। जंगली जानवरों के डर का असर अब स्थानीय आस्था और परंपराओं पर भी दिखाई दे रहा है। गांव में बारिश न होने पर महिलाएं पहले जंगल पार कर नदी तक जाती थीं। वहां से गंगाजल लाकर कुओं और मंदिरों में चढ़ाया जाता था। अच्छी बारिश और फसल होने पर दोबारा नदी जाकर जल लौटाने की भी परंपरा है। हालांकि, इस बार जंगली जानवरों(बाघ)के डर के कारण महिलाएं नदी तक जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही हैं। इन परिस्थितियों में महिलाओं ने सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) की चौकी के पास ही अपनी परंपरागत पूजा करना सुरक्षित समझा।यह दर्शाता है कि एक ओर उनकी आस्था है, वहीं दूसरी ओर जान का खतरा भी है। सोहेलवा जंगल का यह खतरा अब सीमावर्ती गांवों की दैनिक वास्तविकता बन गया है। ग्रामीण प्रशासन से सुरक्षा की मांग कर रहे हैं, ताकि इन गांवों में सामान्य जीवन बहाल हो सके।









































