उद्धव ठाकरे, अजित पवार या एकनाथ शिंदे, महाराष्ट्र में कौन बनेगा महामुकाबले का ‘मुख्य’ किरदार?

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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों का इंतज़ार है। बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर सकती है, लेकिन सरकार बनाने के लिए उसे सहयोगियों की ज़रूरत पड़ सकती है। शिवसेना (उद्धव गुट), कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन की नज़रें सत्ता परिवर्तन पर हैं। मुख्यमंत्री पद के लिए कई दावेदार हैं और नतीजों के बाद ही स्थिति स्पष्ट होगी।

बीजेपी के पास ज्यादा विधायक होने के बावजूद गठबंधन में रहना मजबूरी…
निर्दलीय और बागी उम्मीदवारों की संख्या बढ़ने की उम्मीद
विधायकों की संख्या सौ से कम होती है, तो शिंदे और अजित के साथ सरकार…

मुंबई : जनता की अदालत ईवीएम मशीनों में अपना फैसला लिख चुकी है। शनिवार को चुनाव आयोग के कर्मचारी जनता का फैसला सुनाएंगे, लेकिन इस बीच में घड़ी की सुइयां अपनी धुरी पर दो बार पूरी तरह घूम चुकी होंगी। 24 घंटे के इस अंतराल के बाद आने वाला जनादेश कैसा होगा, किस सूरत में कौन-सा किरदार कितना दमदार होगा? आइए! इसका एक आकलन करते हैं:

बीजेपी सबसे बड़ी किरदार
इस खेल की सबसे बड़ी किरदार बीजेपी है। विधानसभा में सबसे ज्यादा विधायक होने के बाद भी ढाई साल सत्ता विहीन और 5 साल से मुख्यमंत्री विहीन है। इस बार भी उसने सबसे ज्यादा उम्मीदवार खड़े किए हैं। ज्यादातर राजनीतिक पंडितों का भी मानना है कि बीजेपी ही अकेली सबसे ज्यादा विधायकों वाली पार्टी होगी, लेकिन कोई यह दावा नहीं कर रहा कि बीजेपी सिर्फ अपने विधायकों के दम पर सरकार बना लेगी।

100 से कम हुए विधायक, तो…
2019 में बीजेपी के 105 विधायक थे। इस बार इतने या इससे ज्यादा के जीतने संभावना कम ही है। अगर बीजेपी के 100 से कम विधायक जीतकर आते हैं, तो खेल दिलचस्प होगा। बीजेपी सत्ता के लिए फिर शिंदे और अजित पर निर्भर हो जाएगी। इस निर्भरता की कीमत उसे फिर मुख्यमंत्री पद देकर चुकानी पड़े, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। मराठा मुख्यमंत्री के रूप में एकनाथ शिंदे और अजित पवार दोनों ही तैयार बैठे हैं। जनता ने इनको कितने नंबर दिए हैं, इस पर सारा खेला निर्भर है।

निर्दलीय होंगे पहली पसंद
इस बार बड़ी संख्या में बागी और निर्दलीयों ने चुनाव लड़ा है, अगर वे अच्छी-खासी संख्या में जीते, तो शिंदे और अजित से पहले बीजेपी उन्हें ही पसंद करेगी। उन्हें साथ लेकर बीजेपी अपना सीएम बनाने की कोशिश करेगी। 1995 में 45 निर्दलीय जीते थे और उन्हीं के दम पर सरकार बनी थी।

कौन होगा सीएम का चेहरा?
अब बड़ा सवाल यह है कि बीजेपी से सीएम पद का चेहरा कौन होगा? अगर निर्दलीयों के दम पर सरकार बनी, तो निर्विवाद रूप से देवेंद्र फडणवीस सीएम पद की पहली पसंद होंगे, क्योंकि निर्दलीयों के साथ सरकार चलाना ‘मेंढक तौलने’ से कम मुश्किल नहीं है। अगर फडणवीस नहीं, तो फिर शिंदे ही हैं, जिन्होंने पिछले ढाई साल में सबको साधने की साधन संपन्नता सिद्ध की है। अगर जिद बीजेपी का सीएम बनाने की हुई, तो फडणवीस से आगे कोई नहीं। निर्दलीयों की ताकत के साथ सरकार बनाने की स्थिति में दूसरा समीकरण ओबीसी का है। महाराष्ट्र में मराठों के अलावा बड़ी ताकत ओबीसी की है। मराठा बीजेपी से खफा हैं। ओबीसी बीजेपी के साथ हैं। इसे साधे रखना बीजेपी की मजबूरी है। बीजेपी 5 साल फडणवीस के रूप में ब्राह्मण और ढाई साल शिंदे के रूप में मराठा सीएम महाराष्ट्र को दे चुकी है। बहुत संभव है कि इस बार मध्य प्रदेश की तरह महाराष्ट्र में भी ओबीसी सीएम आ जाए।

शिंदे का कितना है चांस!
एकनाथ शिंदे के दोबारा सीएम बनने का चांस तभी है, जब उनके 40 विधायक दोबारा चुनाव जीत कर आएं, हो सके तो 40 से ज्यादा भी। दूसरे अजित और निर्दलीयों के खेमे में उनसे कम विधायक रहे और तीसरी बात बीजेपी के विधायकों की संख्या 100 से कम रहे।

दूसरी बड़ी किरदार कांग्रेस
मतदान बाद के रुझान यह संकेत दे रहे हैं कि नतीजों के बाद कांग्रेस दूसरी अकेली सबसे बड़ी पार्टी हो सकती है। उसके साथ शरद पवार और उद्धव ठाकरे की ताकत भी है। अगर जनता का फैसला इन तीनों के हक में आए, तो महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन अटल है।

अगर बहुमत नहीं, तो…
अगर इन तीनों को मिलकर 145 या उससे ज्यादा विधायकों का स्पष्ट और पूर्ण बहुमत नहीं मिला और खेल निर्दलीयों के सपोर्ट के पाले में चला गया, तो मुश्किल हो जाएगा। वजह, साधन संपन्नता जुटाने और सत्ता की सीढ़ी बनाने की ताकत बीजेपी के पास इन तीनों से ज्यादा है। निर्दलीय उसी तरफ फिसलते हैं, जिस तरफ सत्ता की ढलान होती है।

अपना-अपना गणित
उद्धव ठाकरे
1. अपने और अपनी पार्टी के अस्तित्व के लिए उद्धव ठाकरे भी किसी हाल में सत्ता से बाहर रहना बर्दाश्त नहीं कर सकते। सत्ता से बाहर रहने पर उनके कई विधायक पाला बदल सकते हैं। उद्धव के लिए सत्ता इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि उन्हें आने वाले समय में मुंबई महानगरपालिका और अन्य महानगरपालिकाओं की सत्ता चाहिए।

2. ऐसे में, कांग्रेस अगर गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरती है और मुख्यमंत्री पद के लिए आगे बढ़ती है, तो उद्धव किसी दूसरे विकल्प पर भी विचार कर सकते हैं। दूसरा विकल्प अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन माना जा रहा है कि बीजेपी में नरेंद्र मोदी अब भी उद्धव ठाकरे को लेकर कोई बैर भाव पाले हुए नहीं हैं।

अजित पवार
1. अजित के लिए यह विधानसभा चुनाव अस्तित्व को बचाने का चुनाव है, लेकिन उनके मुख्यमंत्री बनने की संभावना शून्य है, इसलिए वह केंद्र में बीजेपी की सरकार होने के कारण बीजेपी के साथ रहने में स्वयं को सुरक्षित समझेंगे।

2. वैसे भी, अजित की एनसीपी केवल 59 सीटों पर ही चुनाव लड़ रही है। इनमें से भी 37 सीटों पर उनका मुकाबला सीधे शरद पवार से है। अगर इन सीटों पर अजित अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते, तो फिर उनके लिए बीजेपी पर आश्रित रहना और जरूरी हो जाएगा। हो सकता है अजित आगे चलकर पत्नी या बेटे के लिए कुछ पाकर महाराष्ट्र में बीजेपी का ही झंडा बुलंद रखें।
एकनाथ शिंदे
1. अगर नतीजों के बाद भी बीजेपी शिंदे को सीएम नहीं बनाती है, तो वह खुद तो बीजेपी के साथ ही रहेंगे, लेकिन उनके विधायक क्या करेंगे, बीजेपी में इस पर हर विधायक के बारे में व्यक्तिगत अध्ययन चल रहा है।

2. अगर बीजेपी के नेतृत्व वाला गठबंधन सरकार नहीं बना पाता है और महाविकास आघाडी में उद्धव को मौका मिलता है, तो बीजेपी मान कर चल रही है कि शिंदे गुट के जीते हुए विधायकों को उद्धव के साथ जाने में कोई परहेज नहीं होगा।

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