गेंदा की खेती : अक्टूबर का महीना बेहतर, किसानों के लिए मुनाफे का सुनहरा अवसर, जानें कैसे करें

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गेंदा की उन्नत खेती न केवल किसानों को साधारण खेती से अधिक लाभ देती है, बल्कि उन्हें कम समय में बेहतर आर्थिक स्थिरता भी प्रदान करती है। यही कारण है कि गेंदा की खेती किसानों के लिए आय का एक सुनहरा अवसर साबित हो रही है।

भारत में गेंदा का फूल अपनी सजावटी खूबसूरती और धार्मिक महत्व के कारण सालभर मांग में रहता है। शादियों, त्योहारों और पूजा-पाठ में इसका उपयोग इतनी अधिक मात्रा में होता है कि इसकी खेती किसानों के लिए तेजी से मुनाफा कमाने का साधन बनती जा रही है। खासकर अक्टूबर का महीना गेंदा की खेती शुरू करने के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। इस समय मौसम संतुलित रहता है, जिससे पौधे तेजी से बढ़ते हैं और फूलों की गुणवत्ता भी बेहतरीन मिलती है।

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खेत की तैयारी और मिट्टी
गेंदा की खेती के लिए दोमट मिट्टी को सबसे अच्छा माना जाता है। इसके लिए खेत की 2–3 बार गहरी जुताई कर मिट्टी को भुरभुरी और उपजाऊ बनाना जरूरी है। आखिरी जुताई के समय 15–20 टन गोबर की सड़ी हुई खाद खेत में मिला दी जाती है। इसके बाद क्यारियां बनाकर पौधे लगाने की तैयारी की जाती है। अक्टूबर में सबसे पहले नर्सरी तैयार की जाती है, जहां बीज बोए जाते हैं। लगभग 25–30 दिन बाद पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं।

रोपाई और सिंचाई
गेंदा की पौध रोपाई कतार से कतार 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर पर करनी चाहिए। गेंदा की फसल को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन समय-समय पर हल्की सिंचाई जरूरी है। पहली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद और इसके बाद 10–12 दिन के अंतराल पर की जाती है। इससे पौधों की जड़ों को पर्याप्त नमी मिलती है और फूलों का विकास अच्छा होता है।

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खाद और कीट प्रबंधन
फूलों की गुणवत्ता और अधिक पैदावार के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का संतुलित प्रयोग करना जरूरी है। अक्टूबर में मौसम अनुकूल होने के बावजूद गेंदा की फसल पर तना गलन, पत्ती झुलसा और एफिड जैसे रोगों का प्रकोप हो सकता है। इसके लिए नीम के तेल का छिड़काव सबसे प्रभावी उपाय माना जाता है। खेत को साफ-सुथरा रखने के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई भी करनी चाहिए ताकि कीट-पतंगों का खतरा न हो।

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पैदावार और लाभ
गेंदा की फसल रोपाई के लगभग 60–70 दिन बाद फूल देना शुरू कर देती है। अक्टूबर में बोई गई फसल दिसंबर से फरवरी तक बेहतर पैदावार देती है। इस दौरान शादियों और त्योहारों का सीजन होने से फूलों की मांग और दाम दोनों ऊंचे रहते हैं। किसानों को प्रति हेक्टेयर हजारों किलो फूलों की पैदावार मिल सकती है, जिसे स्थानीय मंडियों और बड़े बाजारों में ऊंचे दाम पर बेचा जा सकता है।

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