नवंबर में देवउठनी एकादशी से विवाह पंचमी तक धार्मिक उल्लास, मार्गशीर्ष माह में शुभ कार्यों की होगी शुरुआत

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नवंबर का महीना इस वर्ष अत्यंत विशेष रहने वाला है. दीपावली और छठ पूजा के उत्सव के बाद भी यह महीना धार्मिक उल्लास और पवित्र पर्वों से भरा रहेगा. हिंदू पंचांग के अनुसार, इसी माह से चातुर्मास का समापन होगा और भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागकर पुनः संसार के कल्याण के कार्यों में प्रवृत्त होंगे. नवंबर की शुरुआत देवउठनी एकादशी के साथ होगी और समापन विवाह पंचमी जैसे शुभ पर्व पर. इस महीने का हर दिन आस्था, श्रद्धा और धार्मिक परंपराओं के रंग में रंगा रहेगा.

कार्तिक मास के समापन और मार्गशीर्ष मास के आरंभ के साथ ही देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान श्री हरि विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं. मान्यता है कि इसी दिन से चार माह से रुके सभी शुभ और मांगलिक कार्य पुनः प्रारंभ किए जाते हैं. यह तिथि हरिप्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जानी जाती है. इसके अगले ही दिन, 2 नवंबर को तुलसी विवाह और चातुर्मास का औपचारिक समापन होगा. इस अवसर पर भक्तगण शालिग्राम और तुलसी माता का विवाह रचाकर देवलोक में मंगल की कामना करते हैं.

नवंबर की तीसरी तारीख को सोम प्रदोष व्रत और बैकुंठ चतुर्दशी का योग रहेगा. इस दिन भगवान शिव और श्रीहरि विष्णु दोनों की संयुक्त पूजा का विशेष महत्व होता है. बैकुंठ चतुर्दशी पर प्रातःकाल गंगा स्नान, दीपदान और रात्रि में शिव-विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ शुभ माना जाता है. इसके बाद 5 नवंबर को देव दीपावली का पर्व मनाया जाएगा. दीपावली के पंद्रह दिन बाद आने वाला यह त्योहार काशी नगरी सहित देशभर के तीर्थस्थलों पर दिव्य दीपों से आलोकित होता है. यह दिन भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर राक्षस के वध के उपलक्ष्य में मनाया जाता है और इसी दिन कार्तिक पूर्णिमा तथा गुरु नानक जयंती भी पड़ रही है.

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6 नवंबर से मार्गशीर्ष या अगहन मास का आरंभ होगा, जिसे भगवान श्रीकृष्ण का प्रिय महीना कहा गया है. इसी माह में गीता जयंती का पर्व भी पड़ता है. 7 नवंबर को जैन समुदाय रोहिणी व्रत का पालन करेगा, जो भगवान वासुपूज्य को समर्पित होता है. इसके तुरंत बाद 8 नवंबर को संकष्टी चतुर्थी का व्रत आएगा, जिसमें भक्त भगवान गणेश की आराधना कर दुखों के निवारण की कामना करेंगे.

12 नवंबर को काल भैरव जयंती का उत्सव मनाया जाएगा. काल भैरव भगवान शिव का उग्र रूप हैं, जो समय और न्याय के अधिपति माने जाते हैं. इस दिन भैरव मंदिरों में विशेष पूजन-अर्चना, भोग और रात्रि जागरण का आयोजन होता है. 15 नवंबर को उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखा जाएगा. इस दिन भगवान विष्णु की आराधना से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. अगले दिन 16 नवंबर को सूर्य के वृश्चिक राशि में प्रवेश के साथ वृश्चिक संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा, जिसे दान-पुण्य और स्नान का विशेष दिन माना गया है.

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17 नवंबर को सोम प्रदोष व्रत रहेगा. इस दिन शिव-पार्वती की आराधना करने से सौभाग्य और समृद्धि प्राप्त होती है. इसके बाद 20 नवंबर को मार्गशीर्ष अमावस्या आएगी, जो पितरों के तर्पण और श्राद्ध कर्म के लिए शुभ दिन है. भक्तजन इस दिन नदी-सरोवरों में स्नान कर दीपदान करते हैं.

नवंबर का सबसे प्रमुख और मंगलमय पर्व विवाह पंचमी 25 नवंबर को मनाया जाएगा. मान्यता है कि त्रेता युग में इसी दिन भगवान श्रीराम और माता सीता का विवाह संपन्न हुआ था. देशभर के राम मंदिरों में इस अवसर पर राम-सीता विवाहोत्सव का भव्य आयोजन किया जाता है. भजन-कीर्तन, कन्यादान और उत्सव के माध्यम से यह तिथि वैवाहिक जीवन में सौहार्द और शुभता का प्रतीक बनती है. माह के अंत में 28 नवंबर को दुर्गाष्टमी व्रत का पर्व आएगा, जब भक्त माता दुर्गा की पूजा कर बल, भक्ति और समृद्धि की कामना करेंगे.

नवंबर का यह महीना धार्मिक पर्वों के साथ-साथ ग्रह-नक्षत्रों की दृष्टि से भी विशेष रहेगा. 2 नवंबर को शुक्र ग्रह तुला राशि में प्रवेश करेंगे, जिससे प्रेम और सौंदर्य से जुड़े कार्यों में वृद्धि होगी. 16 नवंबर को सूर्य वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे और उसी दिन वृश्चिक संक्रांति का योग बनेगा. बुध ग्रह 10 नवंबर को वक्री और 29 नवंबर को मार्गी होंगे. वहीं गुरु कर्क राशि में रहेंगे और 11 नवंबर से वक्री गति में प्रवेश करेंगे. शनि देव मीन राशि में रहेंगे और 28 नवंबर को मार्गी हो जाएंगे, जिससे कर्म और न्याय से जुड़ी परिस्थितियों में सकारात्मक परिवर्तन की संभावना रहेगी. शुक्र 3 से 26 नवंबर तक तुला राशि में और 27 नवंबर से वृश्चिक राशि में गोचर करेंगे. राहु कुंभ राशि में और केतु सिंह राशि में पूरे महीने स्थिति बनाए रखेंगे.

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इस तरह नवंबर 2025 का पूरा महीना भक्ति, श्रद्धा और आध्यात्मिक उल्लास का प्रतीक रहेगा. कार्तिक की पूर्णिमा से लेकर मार्गशीर्ष की अमावस्या तक हर तिथि का धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व है. देवउठनी एकादशी से जब भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागेंगे, उसी क्षण से शुभता का नया चक्र आरंभ होगा. मंदिरों में घंटे-घड़ियाल की ध्वनि, तुलसी विवाह के गीत, देव दीपावली के दीपों की रोशनी और विवाह पंचमी के मंगलगान – यह सब मिलकर नवंबर को एक आध्यात्मिक आनंद और उत्सवों के समागम का महीना बना देंगे.

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