बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण का शोर थमा अब 6 नवंबर को 18 जिलों की 121 सीटों पर होगा मतदान

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अनिल मिश्र/ पटना 
बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के लिए प्रचार अभियान का शोर सोमवार शाम 5 बजे थम गया. अब पूरा राज्य 6 नवंबर को होने वाले मतदान की तैयारी में जुट गया है. इस चरण में 18 जिलों की 121 विधानसभा सीटों पर मतदाता अपने-अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करेंगे. इनमें कई दिग्गज नेताओं का राजनीतिक भविष्य दांव पर लगा हुआ है — मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव जैसे बड़े नामों की साख पहले चरण के मतदान में आजमाई जाएगी.

चुनाव आयोग के निर्देश के अनुसार, मतदान सुबह 7 बजे से शुरू होकर अधिकांश विधानसभा क्षेत्रों में शाम 6 बजे तक चलेगा. हालांकि, सहरसा, मुंगेर और लखीसराय जिलों के कुछ विधानसभा क्षेत्रों में सुरक्षा और भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए मतदान का समय शाम 5 बजे तक सीमित रहेगा. इन क्षेत्रों में सिमरी बख्तियारपुर, महिषी, तारापुर, मुंगेर, जमालपुर और सूर्यगढ़ा की 56 बूथों पर मतदाता एक घंटे पहले ही मतदान प्रक्रिया से वंचित हो जाएंगे.

बिहार विधानसभा चुनाव का यह पहला चरण राजनीतिक दृष्टि से सबसे अहम माना जा रहा है, क्योंकि इस दौर में राज्य के मध्य, उत्तर और दक्षिण हिस्से के बड़े जिलों में मतदान होगा. इनमें पटना, नालंदा, बक्सर, भोजपुर, गोपालगंज, सीवान, सारण, मुजफ्फरपुर, वैशाली, दरभंगा, समस्तीपुर, मधेपुरा, सहरसा, खगड़िया, बेगूसराय, मुंगेर, लखीसराय और शेखपुरा जैसे जिले शामिल हैं.

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राजधानी पटना जिले की सीटों पर विशेष ध्यान रहेगा, जहाँ मोकामा, बाढ़, बख्तियारपुर, दीघा, बांकीपुर, कुम्हरार, पटना सिटी, फतुहा, दानापुर, मनेर, फुलवारी शरीफ (अनुसूचित जाति), मसौढ़ी (अनुसूचित जाति), पालीगंज और बिक्रम जैसी सीटों पर मुकाबला दिलचस्प बना हुआ है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू और भाजपा गठबंधन के प्रत्याशी इन क्षेत्रों में एनडीए की साख बचाने के लिए जी-जान लगाए हुए हैं, जबकि महागठबंधन इन सीटों को वापसी के मौके के रूप में देख रहा है.

भोजपुर, बक्सर और गोपालगंज जिलों में भी मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है. भोजपुर की आरा, अगिआंव, शाहपुर, बड़हरा और तरारी सीटों पर एनडीए, महागठबंधन और आजाद उम्मीदवारों के बीच कड़ा संघर्ष है. वहीं बक्सर जिले की राजपुर और डुमरांव सीटें भी राजनीतिक विश्लेषकों के लिए रोचक हैं.

गोपालगंज और सीवान के मैदान में राजद और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिल रहा है. दरौली (अनुसूचित जाति) और जिरादेई जैसे इलाकों में स्थानीय मुद्दे प्रमुख हैं, वहीं महाराजगंज और गोरेयाकोठी सीटों पर प्रत्याशी अपने सामाजिक समीकरणों के भरोसे हैं.

सारण जिले में छपरा, तरैंया, मढौरा और सोनपुर जैसी सीटें राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील मानी जाती हैं. इन इलाकों में मतदाताओं की पसंद का सीधा असर प्रदेश की सियासत पर पड़ता है. इसी तरह मुजफ्फरपुर जिले की 11 सीटों में से बोचहां और सकरा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं, जबकि बाकी सीटों पर जातीय समीकरणों के साथ-साथ रोजगार और शिक्षा जैसे मुद्दे प्रमुख हैं.

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वैशाली, दरभंगा और समस्तीपुर जिलों की सीटों पर भी पहले चरण में वोटिंग होगी. वैशाली की लालगंज और हाजीपुर सीटें राजनीतिक रूप से चर्चित हैं. दरभंगा की दरभंगा ग्रामीण, बहादुरपुर और केवटी सीटों पर राजद, भाजपा और कांग्रेस के बीच दिलचस्प मुकाबला है.

सहरसा और मधेपुरा जिलों की बात करें तो यहाँ यादव-मुस्लिम समीकरण और एनडीए की पिछड़ी जातियों की रणनीति दोनों का इम्तहान है. सहरसा की सिमरी बख्तियारपुर सीट पर मुकाबला खासा तगड़ा है. बेगूसराय जिले में गिरिराज सिंह का प्रभाव क्षेत्र माना जाने वाला इलाका अब भी भाजपा का गढ़ माना जा रहा है, लेकिन स्थानीय असंतोष और महागठबंधन के प्रचार ने समीकरणों को बदलने की कोशिश की है.

मुंगेर, लखीसराय और शेखपुरा में जदयू और राजद के बीच सीधा टकराव है. मुंगेर में शराबबंदी और कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दों पर जनता का मूड देखना दिलचस्प रहेगा. नालंदा जिला — जो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृहनगर क्षेत्र है — में एनडीए के लिए यह चरण प्रतिष्ठा की लड़ाई जैसा है. हरनौत, हिलसा, इस्लामपुर और राजगीर जैसी सीटों पर जनता का रुझान आगामी चरणों के लिए भी संकेत तय करेगा.

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चुनाव आयोग ने राज्य में निष्पक्ष और शांतिपूर्ण मतदान सुनिश्चित करने के लिए व्यापक सुरक्षा व्यवस्था की है. संवेदनशील और अतिसंवेदनशील बूथों पर केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की तैनाती की गई है. मतदाताओं को जागरूक करने के लिए आयोग द्वारा हेल्पलाइन, मोबाइल ऐप और वीवीपैट जागरूकता अभियान भी चलाया जा रहा है.

राजनीतिक दलों ने आखिरी दिन तक जनसभाओं और रोड शो के जरिए जनता से सीधा संवाद किया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने प्रचार अभियान को “विकास और स्थिरता” के मुद्दे पर केंद्रित रखा, वहीं तेजस्वी यादव ने बेरोजगारी और महंगाई को अपना प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया. सम्राट चौधरी ने भाजपा की तरफ से कानून-व्यवस्था और केंद्र की योजनाओं को सामने रखा, जबकि तेज प्रताप यादव ने युवाओं और किसानों को साधने की कोशिश की.

अब राज्य की जनता की नजरें 6 नवंबर पर टिकी हैं, जब 18 जिलों की 121 सीटों पर मतदाता लोकतंत्र के महापर्व में हिस्सा लेंगे. इस चरण में होने वाला मतदान न सिर्फ बिहार के अगले मुख्यमंत्री की दिशा तय करेगा, बल्कि यह भी संकेत देगा कि जनता के मन में विकास, सामाजिक न्याय और नेतृत्व के प्रति किस दल के प्रति भरोसा कायम है.

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