भारत की प्राचीन पूजा-पद्धतियों में आरती को सबसे प्रभावशाली और ऊर्जावान कर्मकांड माना गया है। आरती केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि ऐसी वैज्ञानिक और आध्यात्मिक प्रक्रिया है जो मनुष्य की चेतना को देवत्व से जोड़ती है। शास्त्रों के अनुसार आरती का उद्देश्य देवता के गुण, ऊर्जा और आभा को अपने भीतर आत्मसात करना है। हर देवता का एक विशिष्ट बीजमंत्र होता है, और जब दीपक की थाली उसी बीजमंत्र की आकृति के अनुसार घुमाई जाती है, तो भक्त और देवता के बीच एक अदृश्य ऊर्जावान संबंध बनता है। यही कारण है कि हमारे ऋषि-मुनियों ने पूजा के अंत में आरती को अनिवार्य माना है।
“आरती घुमाना एक साधना है, केवल रस्म नहीं। दीपक के चारों ओर जो परिक्रमा होती है, वह प्रकाश को भीतर जगाने का प्रतीक है। जैसे-जैसे दीपक घुमता है, वैसे-वैसे भक्त की चेतना दिव्यता के प्रकाश में डूबने लगती है।” आरती करते समय थाली से देवता के बीजमंत्र की आकृति बनाना सर्वश्रेष्ठ माना गया है। उदाहरण के तौर पर श्रीराम की आरती में ‘रां’ बीजमंत्र का आकार बनाया जाए तो अधिक आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है। देवी सरस्वती के लिए ‘ऐं’ और लक्ष्मी के लिए ‘श्रीं’ बीजमंत्र का प्रयोग करना चाहिए, जबकि गणेशजी की आरती में ‘गं’ बीजमंत्र का आकार बनाना शुभ होता है।
कई बार भक्तों को यह ज्ञान नहीं होता कि किस देवता का कौन-सा बीजमंत्र है। ऐसे में सबसे सर्वमान्य और प्रभावशाली मंत्र ‘ॐ’ को आरती में शामिल किया जा सकता है। आरती करते हुए ‘ॐ’ का आकार दीपक से बनाना सर्वोत्तम माना गया है, क्योंकि ‘ॐ’ समस्त देवी-देवताओं की मूल ध्वनि है। शास्त्रों में कहा गया है कि यह ध्वनि परब्रह्म का प्रतीक है।
आरती करते समय दीपक को घुमाने की एक निश्चित पद्धति भी बताई गई है। पहले दीपक को देवता के चरणों से घुटनों तक चार बार घुमाना चाहिए। इसके बाद नाभि के सामने दो बार, फिर मुखमंडल के सामने एक बार और अंत में पूरे शरीर के चारों ओर सात बार घुमाना चाहिए। इस विधि का गहरा संबंध शरीर के सात ऊर्जा चक्रों से है। यह क्रम ऊर्जा संतुलन को स्थिर करता है और भक्त की आत्मा को दिव्यता से जोड़ देता है।
धार्मिक दृष्टि से आरती करने का यह क्रम भक्त और भगवान के बीच सामंजस्य का प्रतीक है, जबकि वैज्ञानिक दृष्टि से यह प्रक्रिया ऊर्जा तरंगों का एक आदान-प्रदान है। आधुनिक विज्ञान ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है कि हर मनुष्य के शरीर से एक विशिष्ट ऊर्जा क्षेत्र या ओरा निकलता है। इसी आभा को किर्लियन फोटोग्राफी द्वारा देखा जा सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार जब दीपक की ज्योति के सामने भक्त आरती करता है, तो उसकी आभा और देवता की आभा में एकरूपता आने लगती है। इस दौरान शरीर से निकलने वाली तरंगें संतुलित हो जाती हैं, और मनुष्य के भीतर स्थिरता, शांति और एकाग्रता का भाव उत्पन्न होता है।
वैज्ञानिक शोधों में पाया गया है कि दीपक की लौ से निकलने वाली ऊर्जा वायु में उपस्थित सूक्ष्मजीवों को नष्ट करती है। घी या तेल से जलने वाली लौ वातावरण को शुद्ध करती है और उसमें मौजूद नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त कर देती है। इसीलिए आरती केवल भक्ति का नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और शुद्धता का भी प्रतीक है।
पूजाविदों का कहना है कि आरती करते समय दीपक, कपूर और फूलों की सुगंध वातावरण में एक विशेष तरंग उत्पन्न करती है, जो मनुष्य की मानसिक अवस्था को सकारात्मक बनाती है। जब भक्त आरती की थाली घुमाता है, तो उसका ध्यान प्रकाश और लय में एकाग्र हो जाता है। यह ध्यानावस्था मानसिक तनाव को कम करती है और आत्मबल बढ़ाती है।
आयुर्वेदाचार्य और ऊर्जा विज्ञान विशेषज्ञ डॉ. मोहित जोशी बताते हैं, “आरती एक प्रकार की ऊर्जा चिकित्सा है। दीपक की लौ मनुष्य के चारों ओर के चुंबकीय क्षेत्र को सक्रिय करती है, जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इसलिए कहा जाता है कि आरती के दर्शन मात्र से भी आयु और आरोग्य की प्राप्ति होती है।”
आरती केवल देवता की आराधना नहीं, बल्कि अपने भीतर छिपे दिव्य तत्व को पहचानने की प्रक्रिया है। जब कोई व्यक्ति भगवान या सद्गुरु की आरती करता है, तो उसकी आभा धीरे-धीरे उस ऊर्जावान आभा में विलीन होती जाती है। दीपक इस प्रक्रिया में एक उत्प्रेरक (catalyst) की तरह कार्य करता है, जो भक्त की चेतना को उच्चतर स्तर पर ले जाता है।
शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि आरती करने के बाद उसके दर्शन करना और दोनों हाथों से उसकी ज्योति लेना अत्यंत शुभ होता है। जो व्यक्ति श्रद्धा से आरती को देखता है और उसे माथे से लगाता है, वह अपनी अनेक पीढ़ियों का उद्धार करता है। भगवान विष्णु के परम पद की प्राप्ति तक का मार्ग इस आरती के प्रकाश से आलोकित होता है।
कहा जाता है कि आरती देखने से शत्रुओं की वृद्धि का शमन होता है। यहाँ शत्रु केवल बाहरी नहीं, बल्कि भीतर के — जैसे काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार। जब व्यक्ति आरती करता है, तो उसके भीतर के ये विकार धीरे-धीरे शांत होते जाते हैं। दीपज्योति का प्रकाश उन अंधकारों को मिटा देता है जो मनुष्य के जीवन में भ्रम और तनाव पैदा करते हैं।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, शाम के समय दीपक जलाकर आरती करने से देवी लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। यह परिवार में सुख, समृद्धि और सौभाग्य का संचार करती है। आरती करते समय मन और विचारों को स्थिर रखना आवश्यक है, क्योंकि यह प्रक्रिया केवल बाहरी नहीं बल्कि भीतरी साधना है।
आरती की परंपरा जितनी पुरानी है, उतनी ही प्रासंगिक आज भी है। यह केवल पूजा का एक हिस्सा नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक ऊर्जा-संतुलन प्रक्रिया है जो मनुष्य को सकारात्मक विचारों, निर्मल भावनाओं और शांत ऊर्जा से भर देती है। दीपक का प्रकाश न केवल मंदिर को प्रकाशित करता है, बल्कि श्रद्धालु के भीतर की चेतना को भी उजागर करता है।
इसलिए जब अगली बार आप आरती करें, तो इसे केवल पूजा का औपचारिक हिस्सा न समझें। इसे उस क्षण के रूप में जिएं, जब आपका अस्तित्व दिव्यता के प्रकाश से एकाकार हो रहा हो। आरती की लौ में केवल घी या कपूर नहीं जलता, उसमें मनुष्य का अहंकार, भय और अंधकार भी जलकर समाप्त होता है — और बचता है केवल प्रकाश, जो आत्मा का वास्तविक स्वरूप है।



























